कर्नाटक के दावणगेरे जिले में एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जो समाज के संवेदनहीन होने का आईना दिखाती है। 77 साल की गिरीजम्मा को अपनी पेंशन के लिए 2 किलोमीटर तक रेंगना पड़ा। बेसहारा और बुढ़ापे की लाठी बनीं इस महिला के लिए पेंशन ही सहारा थी, जिसे अचानक रोक दिया गया।
कुनीबेलेकेरे गांव की रहने वाली गिरीजम्मा के पास अपना गुजारा करने का कोई और साधन नहीं है। वह पूरी तरह से पेंशन पर निर्भर थीं, जो उन्हें पोस्ट ऑफिस के जरिए मिलती थी। पिछले दो महीनों से उनकी पेंशन बिना किसी सूचना के रुक गई। बिन पैसों के बस या ऑटोरिक्शा का किराया चुका पाने में असमर्थ, गिरीजम्मा ने 2 किलोमीटर तक रेंगकर पोस्ट ऑफिस पहुंचने का फैसला किया।
क्यों उठाना पड़ा ऐसा कदम?
मीडिया से बात करते हुए गिरीजम्मा ने कहा, "मुझे हर महीने 10,000 रुपये की पेंशन मिलनी चाहिए थी, लेकिन पिछले दो महीनों से मुझे नहीं मिली। बस या ऑटोरिक्शा के लिए पैसे न होने के कारण मैंने दो किलोमीटर तक रेंगने का फैसला किया।" उन्होंने कहा कि वह हर महीने पोस्ट ऑफिस से पेंशन लेती थीं, लेकिन नवंबर 2023 से बिना किसी सूचना के यह रुक गई। सड़क पर रेंगने से उनके पैरों में छाले पड़ गए हैं, लेकिन यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि अधिकारियों ने उनकी समस्या का समाधान किया है या नहीं।
इसी तरह की एक और घटना
ओडिशा में आठ महीने पहले भी ऐसी ही एक घटना सामने आई थी। 70 वर्षीय सूर्य हरिजन को नंगे पैर तेज धूप में जलते हुए कई किलोमीटर चलना पड़ा। उनके पास सहारा के लिए सिर्फ एक टूटी हुई कुर्सी थी। ओडिशा के नबरंगपुर जिले में अपनी पेंशन लेने के लिए उन्होंने यह तकलीफ उठाई।
खबरों के मुताबिक, पहले सरकार पेंशन नकद देती थी, लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने के लिए इसे सीधे बैंक खातों में ट्रांसफर करने का फैसला लिया गया। उस समय अधिकारियों ने भरोसा दिया था कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बूढ़ी महिला को फिर से ऐसी तकलीफ न उठानी पड़े।
गिरीजम्मा का यह दर्दनाक किस्सा हमें एक बार फिर से सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने समाज के सबसे कमजोर तबके के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। एक तरफ सरकार डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दे रही है, वहीं दूसरी तरफ गरीबों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पेंशन जैसे जरूरी भुगतान में किसी तरह का व्यवधान न आए। साथ ही, बैंकों और अन्य संस्थानों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बूढ़े लोगों को अपने अधिकारों के लिए इस तरह की तकलीफ न उठानी पड़े। हमें म्मीद है कि गिरीजम्मा के मामले पर जल्द ही कार्रवाई होगी और उन्हें उनकी पेंशन मिल सकेगी। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे कई गिरीजम्मा हैं जो अपनी आवाज नहीं उठा सकते। उनकी समस्याओं के बारे में भी सोचना चाहिए और उनके लिए कारगर कदम उठाने चाहिए।