Why Bombay High Court Ruled Comments About Wife's Cooking Is Not Cruelty: शादी के बाद महिला को ससुराल में इसलिए सताया गया कि वह खाना बनाना नहीं जानती? क्या खाना न बना पाना 'पत्नी के प्रति क्रूरता' माना जा सकता है? हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले ने इस सवाल का जवाब दिया है, जिससे महिलाओं के अधिकारों और घरेलू हिंसा के मुद्दों पर बहस छिड़ गई है।
हाल ही में एक महिला द्वारा ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। महिला ने शिकायत में आरोप लगाया था कि उसे न खाना बनाने के लिए लगातार ताने दिए जाते थे और घर से निकाल दिया गया। वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि किसी महिला को खाना बनाना नहीं आता, यह बात भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत क्रूरता के दायरे में नहीं आती।
क्या था पूरा मामला?
संगली की एक महिला ने अपने पति के भाई और चचेरे भाई के खिलाफ बीते साल जनवरी में एफआईआर दर्ज कराई थी। उसका आरोप था कि शादी के कुछ ही महीनों बाद ससुराल वालों ने खाना न बनाने के लिए उसे प्रताड़ित किया और फिर घर से निकाल दिया। इस मामले में महिला ने आईपीसी की धारा 406 (गिरफ्तारी), 504 (जानबूझ कर अपमान करना), 506 (आपराधिक धमकी) और 34 (सामान्य इरादे के लिए कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) के तहत शिकायत दर्ज कराई थी।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और नितिन बोरकर की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा, "यह कहने की जरूरत नहीं है कि छोटे-मोटे झगड़े आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता के दायरे में नहीं आते।" कोर्ट ने यह भी कहा कि "पत्नी को खाना बनाना नहीं आता", यह बात आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता की परिभाषा में नहीं आती।
कोर्ट ने आगे कहा कि धारा 498ए के तहत क्रूरता साबित करने के लिए यह साबित करना होता है कि महिला को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाया गया है या आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया है। इस मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं पाया गया। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि दहेज प्रताड़ना को क्रूरता माना जा सकता है, लेकिन इस मामले में ऐसी कोई शिकायत नहीं थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। कुछ लोग इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं, वहीं कुछ इसे महिलाओं के खिलाफ भेदभाव मान रहे हैं। हालांकि, कोर्ट ने यह फैसला साफ तौर पर कहा है कि छोटे-मोटे झगड़े को क्रूरता नहीं माना जाएगा। इसलिए, इस मामले में यह ध्यान देना जरूरी है कि कोर्ट ने सिर्फ इस एक बिंदु पर ही फैसला सुनाया है और अन्य सभी परिस्थितियों को केस-टू-केस आधार पर देखा जाएगा।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्यों कहा- पत्नी का खाना न बनाना क्रूरता नहीं!
न्यूज़: शादी के बाद महिला को ससुराल में इसलिए सताया गया कि वह खाना बनाना नहीं जानती? क्या खाना न बना पाना 'पत्नी के प्रति क्रूरता' माना जा सकता है? हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले ने इस सवाल का जवाब दिया है।
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Why Bombay High Court Ruled Comments About Wife's Cooking Is Not Cruelty: शादी के बाद महिला को ससुराल में इसलिए सताया गया कि वह खाना बनाना नहीं जानती? क्या खाना न बना पाना 'पत्नी के प्रति क्रूरता' माना जा सकता है? हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले ने इस सवाल का जवाब दिया है, जिससे महिलाओं के अधिकारों और घरेलू हिंसा के मुद्दों पर बहस छिड़ गई है।
हाल ही में एक महिला द्वारा ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। महिला ने शिकायत में आरोप लगाया था कि उसे न खाना बनाने के लिए लगातार ताने दिए जाते थे और घर से निकाल दिया गया। वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि किसी महिला को खाना बनाना नहीं आता, यह बात भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत क्रूरता के दायरे में नहीं आती।
क्या था पूरा मामला?
संगली की एक महिला ने अपने पति के भाई और चचेरे भाई के खिलाफ बीते साल जनवरी में एफआईआर दर्ज कराई थी। उसका आरोप था कि शादी के कुछ ही महीनों बाद ससुराल वालों ने खाना न बनाने के लिए उसे प्रताड़ित किया और फिर घर से निकाल दिया। इस मामले में महिला ने आईपीसी की धारा 406 (गिरफ्तारी), 504 (जानबूझ कर अपमान करना), 506 (आपराधिक धमकी) और 34 (सामान्य इरादे के लिए कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) के तहत शिकायत दर्ज कराई थी।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और नितिन बोरकर की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा, "यह कहने की जरूरत नहीं है कि छोटे-मोटे झगड़े आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता के दायरे में नहीं आते।" कोर्ट ने यह भी कहा कि "पत्नी को खाना बनाना नहीं आता", यह बात आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता की परिभाषा में नहीं आती।
कोर्ट ने आगे कहा कि धारा 498ए के तहत क्रूरता साबित करने के लिए यह साबित करना होता है कि महिला को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाया गया है या आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया है। इस मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं पाया गया। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि दहेज प्रताड़ना को क्रूरता माना जा सकता है, लेकिन इस मामले में ऐसी कोई शिकायत नहीं थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। कुछ लोग इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं, वहीं कुछ इसे महिलाओं के खिलाफ भेदभाव मान रहे हैं। हालांकि, कोर्ट ने यह फैसला साफ तौर पर कहा है कि छोटे-मोटे झगड़े को क्रूरता नहीं माना जाएगा। इसलिए, इस मामले में यह ध्यान देना जरूरी है कि कोर्ट ने सिर्फ इस एक बिंदु पर ही फैसला सुनाया है और अन्य सभी परिस्थितियों को केस-टू-केस आधार पर देखा जाएगा।