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केरल सरकार की जेंडर न्यूट्रल पाठ्यपुस्तकों की पहल क्यों जरूरी थी?

जानें कि कैसे केरल सरकार की जेंडर न्यूट्रल पाठ्यपुस्तकें बच्चों में लिंग समानता को बढ़ावा दे रही हैं और भारतीय शिक्षा प्रणाली में लिंग भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास कर रही हैं।

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Vaishali Garg
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Why Kerala Gender Neutral Textbook Initiative Was Long Overdue: केरल राज्य सरकार ने एक नई पहल शुरू की है: रचनात्मक पाठ्यपुस्तकों में जेंडर न्यूट्रल संदेश देकर बच्चों के मन में जेंडर न्यूट्रैलिटी की अवधारणा को विकसित करना।

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केरल सरकार की जेंडर न्यूट्रल पाठ्यपुस्तकों की पहल क्यों जरूरी थी?

भारतीय शिक्षा में लिंग भेदभाव

भारतीय शिक्षा प्रणाली में वर्षों से लिंग भेदभाव की गहरी जड़ें रही हैं। पाठ्यपुस्तकें अक्सर पुरुषों को प्रमुख और महिलाओं को अधीनस्थ भूमिकाओं में दिखाती हैं। यह विचार बच्चों के मन में गहराई से बैठ जाता है और उनके स्वयं और दूसरों के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित करता है। 

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कुछ उदाहरण

2017 में, महाराष्ट्र की कक्षा 12 की पाठ्यपुस्तकों ने दहेज की मांग को "कुरूपता" से जोड़कर आक्रोश उत्पन्न किया। इसी तरह, 2006 में राजस्थान की एक पाठ्यपुस्तक ने गृहिणियों की तुलना गधों से की थी। 

UNESCO की रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में महिलाओं और लड़कियों का कम प्रतिनिधित्व होता है, और जब उन्हें शामिल किया जाता है, तो वे अक्सर पुराने लिंग भूमिकाओं में होती हैं।

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जेंडर न्यूट्रल पाठ्यपुस्तकों की आवश्यकता

बच्चों के प्रारंभिक वर्षों में उनके द्वारा ग्रहण की गई अवधारणाएं उनके जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव डालती हैं। खासकर स्कूल के वातावरण में, जहां युवा मन सबसे अधिक प्रभावशाली होते हैं, उन्हें प्राप्त संदेश स्थायी प्रभाव छोड़ सकते हैं।

केरल की पहल

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केरल राज्य सरकार ने 2021 तक पाठ्यपुस्तकों से सेक्सिस्ट भाषा को हटाने का वादा किया था। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा, "घरेलू हिंसा की हालिया घटनाओं के मद्देनजर, केरल ने अधिक कड़े कदम उठाने का फैसला किया है ताकि एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण किया जा सके।"

इसके तहत केरल सरकार ने रचनात्मक पाठ्यपुस्तकों में जेंडर न्यूट्रल संदेश देने की पहल की है। उदाहरण के तौर पर, तीसरी कक्षा की मलयालम पाठ्यपुस्तक में रसोई में नारियल कद्दूकस करते हुए और अपनी बेटी के लिए स्नैक्स बनाते हुए पिता की तस्वीर दिखाई गई है।

बच्चों और शिक्षकों की प्रतिक्रिया

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विथुरा की एक निचली प्राथमिक छात्रा, पवित्रा कृष्णा ने कहा, "मैंने अपनी नई मलयालम पाठ्यपुस्तक में रसोई में नारियल कद्दूकस करते हुए पिता की तस्वीर देखी। मैंने यह तस्वीर अपने पिता को दिखाई और पूछा कि वह घर पर ऐसा क्यों नहीं करते।"

शिक्षक भी इस पहल को सकारात्मक कदम के रूप में देख रहे हैं। राजधानी शहर की शिक्षिका, सिंधु ने कहा, "हमारे समाज में यह सामान्य धारणा है कि खाना पकाना और घर का काम केवल महिलाओं की जिम्मेदारी है। लेकिन नई पाठ्यपुस्तकों के अध्याय और तस्वीरें यह संदेश देती हैं कि खाना पकाना और अन्य घरेलू कामकाज पिता और माता दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है।"

केरल की यह पहल एक बड़े आंदोलन की शुरुआत है - एक ऐसा आंदोलन जहां हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जेंडर का हो, को सफलता प्राप्त करने का अवसर मिलेगा। केरल सरकार का यह कदम न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जेंडर समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

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