भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान: शिल्पकार तो बनीं, लेकिन MSME में नेतृत्व क्यों नहीं

भारत में 50% से अधिक कारीगर महिलाएँ हैं, लेकिन MSME में उनकी भागीदारी केवल 22% है। जानिए क्यों महिलाएँ उद्यमिता में पीछे हैं और उन्हें सशक्त बनाने के लिए क्या बदलाव जरूरी हैं।

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Vaishali Garg
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भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान: शिल्पकार तो बनीं, लेकिन MSME में नेतृत्व क्यों नहीं

Image Credit: India Development Review

1 फरवरी को जारी हुए आर्थिक सर्वेक्षण 2025 ने भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया। रिपोर्ट के अनुसार, देश में 50% से अधिक कारीगर महिलाएँ हैं, लेकिन इसके बावजूद सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 22% है।

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विश्व बैंक की एक रिपोर्ट (Gupta et al., 2024) का हवाला देते हुए सर्वेक्षण में बताया गया कि खादी क्षेत्र में कार्यरत लगभग 4.96 लाख लोगों में से 80% महिलाएँ हैं, जबकि रेशम उत्पादन में 50% से अधिक श्रमिक महिलाएँ हैं। हस्तशिल्प उद्योग में भी महिलाओं की भागीदारी 56.1% दर्ज की गई है।

भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान: शिल्पकार तो बनीं, लेकिन MSME में नेतृत्व क्यों नहीं

महिला उद्यमियों की कमी क्यों?

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हालांकि महिला कारीगरों की संख्या अधिक है, लेकिन उद्यमिता और स्वामित्व के मामले में अब भी पुरुषों का वर्चस्व है। MSME क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी जैसे-जैसे उद्योग का आकार बढ़ता है, वैसे-वैसे घटती जाती है।

सूक्ष्म उद्योगों में 22% महिलाएँ मालिक हैं, जबकि लघु उद्योगों में यह घटकर 12% रह जाती है और मध्यम उद्योगों में केवल 7% महिलाएँ मालिक हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में महिला उद्यमियों को कई अतिरिक्त कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इनमें सीमित व्यावसायिक कौशल और प्रशिक्षण, बाज़ार और टेक्नोलॉजी तक सीमित पहुंच, सही मार्गदर्शन और नेटवर्किंग का अभाव तथा बैंकों से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई शामिल है।

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आर्थिक सर्वेक्षण में यह सुझाव दिया गया कि बैंकरों को जागरूक करना, महिलाओं के लिए ऋण प्रक्रिया को आसान बनाना, सरकारी योजनाओं का लाभ पहुँचाना और कौशल विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है। इससे अधिक महिलाओं को MSME में नेतृत्व की भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा।

वैश्विक स्तर पर महिलाओं की स्थिति

यह समस्या सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। वैश्विक स्तर पर भी महिलाओं की आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर बनी हुई है।

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2023 में दुनिया भर में महिलाओं के पास केवल 23.3% बोर्ड सीटें थीं, जबकि भारत में यह संख्या 18.3% थी। यह दर्शाता है कि व्यवसायों के उच्च पदों पर महिलाओं की भागीदारी अब भी काफी कम है।

संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन (UN Women) की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के व्यवसाय अक्सर सुरक्षित और कम जोखिम वाले क्षेत्रों तक सीमित होते हैं। इन क्षेत्रों में वृद्धि की संभावना कम होती है, जिससे महिलाओं को वित्तीय, नियामक और तकनीकी बाधाओं को पार करना मुश्किल हो जाता है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2025 में महिलाओं के लिए सकारात्मक संकेत

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हालांकि MSME नेतृत्व में महिलाओं की हिस्सेदारी कम है, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण में कुछ सकारात्मक प्रगति भी दर्ज की गई है।

महिला आवेदकों द्वारा पेटेंट रजिस्ट्रेशन में भारी वृद्धि हुई है। 2015 में केवल 15 महिलाओं ने पेटेंट फाइल किए थे, जबकि 2024 में यह संख्या 5,183 तक पहुँच गई। यह इस बात का संकेत है कि पिछले दशक में महिलाएँ अपने आविष्कारों को संरक्षित करने और व्यावसायिक रूप से उपयोग करने के प्रति अधिक जागरूक हुई हैं।

गैर-कृषि क्षेत्रों में महिला श्रमिकों की वास्तविक वेतन वृद्धि पुरुषों की तुलना में अधिक रही। महिलाओं की वेतन वृद्धि दर 2.6% थी, जबकि पुरुषों की वृद्धि दर केवल 0.4% रही।

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महिला प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षित महिलाओं का प्रतिशत 2015-16 में 42.7% से बढ़कर 2024-25 में 58% हो गया। इसी तरह, आईटीआई और राष्ट्रीय कौशल प्रशिक्षण संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी 2015-16 में 9.8% से बढ़कर 2023-24 में 13.3% हो गई।

राष्ट्रीय अप्रेंटिसशिप प्रोमोशन स्कीम के तहत महिलाओं की भागीदारी 2016-17 में 7.7% से बढ़कर 2024-25 में 22.8% हो गई। यह दिखाता है कि महिलाएँ अब अधिक संख्या में विभिन्न तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग ले रही हैं।

महिलाओं को MSME नेतृत्व में कैसे आगे बढ़ाया जाए?

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महिला कारीगरों की भागीदारी तो अधिक है, लेकिन उन्हें MSME का नेतृत्व दिलाने के लिए नीतिगत सुधारों और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है।

सरकारी योजनाओं की सुलभता बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक महिलाएँ उद्यमिता की ओर आकर्षित हो सकें। महिला उद्यमियों के लिए वित्तीय सहायता की प्रक्रिया को सरल और सुलभ बनाया जाना चाहिए। टेक्नोलॉजी और डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से महिलाओं को वैश्विक स्तर पर अपने उत्पादों को बेचने का अवसर मिलना चाहिए।

इसके अलावा, महिलाओं के लिए नेटवर्किंग और मेंटरशिप कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए, जिससे उन्हें व्यवसाय संचालन और प्रबंधन में आवश्यक मार्गदर्शन मिल सके।

यदि इन कदमों पर सही दिशा में कार्य किया जाए, तो महिलाएँ सिर्फ कारीगर ही नहीं, बल्कि सफल उद्यमी भी बन सकती हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिलेगी।