अपने पार्टनर पर अफेयर का शक करना और उन पर बिना किसी सबूत के खुलेआम आरोप लगाना दो अलग-अलग बातें हैं। इतना ही नहीं, यदि आप अपने संदेह को उनके कार्य जीवन को प्रभावित करने देते हैं, तो यह टॉर्चर से कम नहीं है। बिना किसी सबूत के किसी पर विवाहेतर आरोप लगाना और उनके कार्यालय में एक तमाशा करना न केवल भागीदारों के बीच विश्वास की भावना को नष्ट करता है, बल्कि यह भी प्रभावित करता है कि सहकर्मी व्यक्ति को कैसे देखते हैं।
एक महिला ने अपने पति के कार्यस्थल पर जाने का फैसला किया, अपने सहयोगियों के सामने तमाशा की, और फिर बिना कोई सबूत जमा किए उसके खिलाफ शिकायत दर्ज की, सिर्फ इसलिए कि उसे संदेह था कि उसका अफेर था। अब उसकी हरकतों ने उसे कानूनी संकट में डाल दिया है।
मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि पति या पत्नी के चरित्र पर संदेह करना, उनके कार्यालय में तमाशा बनाना और फिर बिना सबूत के उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करना मानसिक क्रूरता के बराबर है।
पत्नी ने पति पर लगाया अफेयर का आरोप, बनाया कार्यस्थल पर तमाशा
जज के बेंच ने पति पत्नी को तलाक ग्रांट कर दिया और कहा कि पत्नी ने गंदी भाषा का इस्तेमाल किया और कॉलेज के छात्रों और सहकर्मियों की उपस्थिति में अपने पति को एक महिला शिक्षण स्टाफ से जोड़ा।
बेंच के निर्णय में पत्नी की हरकतें मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आती हैं और इस तरह "अपने सहयोगियों और छात्रों के मन में पति की छवि के लिए गंभीर क्षति" हुई है।
पति ने मद्रास उच्च न्यायालय में अपील की और परिवार न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दे रहा था जिसने उसे क्रूरता के आधार पर तलाक की डिक्री से वंचित कर दिया था।
दूसरी ओर, पत्नी ने दावा किया कि उसका पति अन्य महिला कॉलीग्स से बात करते थे और आधी रात तक उनके साथ अपने सेल फोन पर बात करते थे।
चरित्र की बदनामी
महिला के पास इस बात का कोई सबूत नहीं था कि उसका पति उसके सहयोगी के साथ अवैध संबंध में था, लेकिन फिर भी उसके कार्यस्थल पर तमाशा कर दिया। इतना ही नहीं, उसने अपने पति और उनके कॉलीग की बदनामी की जिसका खामियाजा उन्हें आने वाले वर्षों तक ऑफिस गपशप के रूप में भुगतना पड़ सकता है। जबकि कुछ रिश्ते खत्म होने के लिए बाध्य होते हैं, उन्हें ख़त्म करने का तरीका सुशिल हो सकता है ताकि किसी को सालों उनकी निशानी न भुगतनी पड़े।
वैवाहिक मुद्दों को, किसी भी अन्य संघर्ष की तरह, समाधान खोजने के इरादे से हल करने की आवश्यकता है, भले ही वह अलगाव के रूप में ही क्यों न हो।लेकिन बेवफाई के मामले में भी क्रूरता कभी उचित नहीं है।
महिला कानूनी सहारा चुन सकती थी और अपने जीवन के साथ आगे बढ़ सकती थी। इसके अलावा, उसे अपने पति के सहयोगी को अपमानित करने का कोई अधिकार नहीं था। जब महिलाओं की बात आती है, तो महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि जब वे धोखेबाज पार्टनर नहीं होते हैं, तब भी उन्हें "होम ब्रेकर" के रूप में लेबल किया जाता है। तो क्या महिलाओं के रूप में सामाजिक स्टीरियोटाइप्स से एक-दूसरे की रक्षा करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी नहीं है? सार्वजनिक रूप से एक संदिग्ध अफेर के लिए एक पार्टनर और अनजान औरत को शर्मसार करने का कार्य क्रूर है।