इस बात में कोई शक नहीं है कि पीने लायक साफ पानी एक सीमित मात्रा में उपलब्ध है। दिन प्रतिदिन यह पानी खत्म हो रहा है और भारत के बहुत से इलाकों में पानी की कमी हो रही है। ऐसे में लोग मानसून के आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। लेकिन जब मानसून में अच्छी बारिश नहीं होती तो उनकी सूखी नदियों और नहरों में पानी नहीं आ पाता। पानी की कमी होने के कारण कई जगहों पर सूखा भी पड़ जाता है।
बुंदेलखंड की महिलाओं का प्रयास
बुंदेलखंड में भी लोगों को पानी की कमी की समस्या से जूझना पड़ता है। लेकिन ऐसे बहुत से इलाके हैं जहां यह समस्या बुंदेलखंड से भी ज्यादा गहन है। बुंदेलखंड की महिलाओं ने पानी की कमी को पूरा करने के लिए एक बहुत बड़ा कदम उठाया है।
AFP को गाइड करने वाली बबीता राजपूत का कहना है कि उनके इलाके में पूर्वजों के समय पर यह नदियां पानी से लबालब भरी रहती थी। लेकिन अब इनमें एक बूंद पानी भी नहीं है। हमारा इलाका पानी की समस्या से जूझ रहा है। सभी कुएं भी सूख चुके हैं।
बबीता ने जल सहेली को 3 साल पहले ज्वाइन किया था। जल सहेली 1000 से भी ज़्यादा महिलाओं का वालंटियर नेटवर्क है जो बुंदेलखंड के पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित करने और कुछ नए स्रोत पैदा करने की कोशिश में जुटा हुआ है।
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जल सहेली में सम्मिलित यह सभी महिलाएं चट्टानों को कंक्रीट के साथ मिलाकर बांध तालाब और एंबेंकमेंट बना रहे हैं। वे इससे मानसून में बरसने वाले पानी को बचाना चाहते हैं। भारत में 75% पानी की आपूर्ति मानसून की वर्षा से ही होती है।
अग्रोथा गांव
बबीता राजपूत अग्रोथा गांव की रहने वाली है। यह गांव उन 300 गांव में से एक है जहां महिलाएं पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित करने में जुटी हुई है। बबीता का कहना है कि उनके इस काम में मानसून के पानी को लंबे समय तक एकत्रित करके रखने में सहायता की है। सिर्फ इतना ही नहीं उनके गांव के आसपास की नदियों और नहरों में भी अब पानी उपलब्ध है।
पूरी तरह से आत्मनिर्भर तो नहीं कह सकते लेकिन अब अग्रोथा उन 600 गांव की गिनती में नहीं आता जहां हर रोज एक एक बूंद पानी की कमी होती है। गांव की महिलाओं के प्रयास ने इस विपत्ति भरे समय में भी अपने लिए जल की आपूर्ति की है। नीति आयोग का कहना है कि शायद इस दशक के खत्म होने तक देश के 40% लोगों के पास पानी उपलब्ध ना हो।
सरकार हुई असफल
ग्लोबल वार्मिंग और गर्मी के कारण बुंदेलखंड में पानी की कमी हो गई थी। यह समस्या इतनी भयंकर रूप ले चुकी थी कि गांव में सूखा पड़ने के हालात पैदा हो गए थे।
सोशल एक्टिविस्ट संजय सिंह ने अग्रोथा की महिलाओं की पानी को बचाने और पानी के नए स्रोत पैदा करने में मदद की। उन्होंने महिलाओं को उस जानकारी से दोबारा परिचित कराया जो कुछ दशकों पहले केंद्र सरकार के पानी की ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर उठा लेने के कारण खो गई थी।
वह कहते हैं कि सरकार देश के हर नागरिक को पानी उपलब्ध कराने में असफल रही है। खास तौर पर गांव में जिसकी वजह से गांव के लोगों को पुराने तरीकों को अपनाना पड़ रहा है।
देश के गांव में पानी भरकर लाने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है। सही मात्रा में पानी न आने पर उन्हें अपने पति से मार भी खानी पड़ती है। ऐसे में जल सहेली कार्यक्रम ने पानी की आपूर्ति में काफी मदद की है। 2005 में शुरू हुआ यह अभियान लगभग 110 गांव को पानी की उपलब्धता के मामले में आत्मनिर्भर बना चुका है।