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डॉ. अमृता गाडगे ने कोरोनोवायरस लॉकडाउन के दौरान घर से काम करते हुए मैटर की पांचवी स्टेट (Fifth State Of Matter) का निर्माण किया है। उन्होंने लॉकडाउन के दौरान अपने कंप्यूटर का इस्तेमाल करके सभी एक्सपेरिमेंट्स किये। लैब न्यूज़ के अनुसार, ससेक्स यूनिवर्सिटी (Sussex University) में क्वांटम सिस्टम्स एंड डिवाइसेस लेबोरेटरी में काम करने वाले डॉ. गाडगे ने बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट (Bose-Einstein Condensate) बनाया है - जिसे मैटर का पाँचवाँ स्टेट माना जाता है (जहाँ सभी कोल्ड एटम्स एक साथ मिल जाते है) । यूनिवर्सिटी के क्वांटम डिपार्टमेंट के रीसर्चर्स का मानना है कि यह पहली बार है जब किसी ने लैब से दूर रहकर बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट बनाया है।
इंडियन ओरिजिन की फिजिसिस्ट लैब से दो मील दूर रहती हैं। उन्होंने लेजर और रेडियो रेज़ को कण्ट्रोल करने और बीईसी बनाने के लिए अपने कंप्यूटर पर तकनीक का इस्तेमाल किया। अब, रीसर्चर्स का कहना हैं कि यह उपलब्धि अंतरिक्ष या पानी के अंदर क्वांटम तकनीक के ब्लू प्रिंट्स तैयार कर सकती है।
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पांचवीं स्टेट की डेवलपमेंट रिसर्च बाकी चार स्टेट्स - सॉलिड, लिक्विड, गैस और प्लाज्मा के बनने के बाद होती है। पीटर क्रुजर, ससेक्स यूनिवर्सिटी में एक्सपेरिमेंटल फिजिक्स के प्रोफेसर ह। उनका मानना है कि मैटर की पांचवीं स्टेट "गैस में एटम्स के आयनाइज़ होने पर बनती है।
एक्सपेरिमेंट के बारे में बात करने पर और उसके सफल रिजल्ट के बारे में उन्होंने कहा, "हम सभी बेहद उत्साहित हैं कि हम लॉकडाउन के दौरान लैब से दूर रहकर भी अपने एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं।"
"यह रिसर्च 1920 के दशक के मध्य से अल्बर्ट आइंस्टीन और भारतीय फिजिसिस्ट सत्येंद्र नाथ बोस की भविष्यवाणी पर आधारित है जिसमें कहा गया था कि क्वांटम मेकेनिक्स का इस्तेमाल करके बहुत सारे पार्टिकल्स एक पार्टिकल के रूप में काम कर सकते है, इस तरह ही मैटर की पांचवी स्टेट का रिसर्च किया गया" पीटर ने कहा।
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जब डॉ गाडगे से उनके मुश्किल एक्सपेरिमेंट्स और कॅल्क्युलेशन्स के बारे में पूछा गया और वह इसे अपने घर से कैसे कर पाईं, तो उन्होंने बताया, “रिसर्च टीम लॉकडाउन में घर से काम कर रही है और इसलिए हम हफ्तों तक अपनी लैब में नहीं जा पाए हैं। । अगर हम लैब में काम करते तो प्रोसीजर बहुत स्लो होता क्योंकि एक्सपेरिमेंट अनस्टेबल है और हमे हर रन के बीच में 10 से 15 मिनट का कूलिंग टाइम देना था। "
उन्होंने बताया, "यह स्पष्ट रूप से कुशल नहीं है और मैन्युअल तरीके से करने के लिए काफी लॅबोरियस तरीका है क्योंकि मैं घर पर सिस्टेमेटिक स्कैन करने या इनस्टेबिलिटी को ठीक करने में सक्षम नहीं हूं जैसे कि मैं लैब में काम कर सकती थी। लेकिन हम अपनी रिसर्च को जारी रखने के लिए दृढ़ थे, इसलिए हम घर बैठकर अपने एक्सपेरिमेंट करने के नए तरीके तलाश रहे थे । "
इंडियन ओरिजिन की फिजिसिस्ट लैब से दो मील दूर रहती हैं। उन्होंने लेजर और रेडियो रेज़ को कण्ट्रोल करने और बीईसी बनाने के लिए अपने कंप्यूटर पर तकनीक का इस्तेमाल किया। अब, रीसर्चर्स का कहना हैं कि यह उपलब्धि अंतरिक्ष या पानी के अंदर क्वांटम तकनीक के ब्लू प्रिंट्स तैयार कर सकती है।
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मैटर की पाँचवी स्टेट क्या है?
पांचवीं स्टेट की डेवलपमेंट रिसर्च बाकी चार स्टेट्स - सॉलिड, लिक्विड, गैस और प्लाज्मा के बनने के बाद होती है। पीटर क्रुजर, ससेक्स यूनिवर्सिटी में एक्सपेरिमेंटल फिजिक्स के प्रोफेसर ह। उनका मानना है कि मैटर की पांचवीं स्टेट "गैस में एटम्स के आयनाइज़ होने पर बनती है।
रीसर्चर्स का कहना हैं कि यह उपलब्धि अंतरिक्ष या पानी के अंदर क्वांटम तकनीक के ब्लू प्रिंट्स तैयार कर सकती है।
एक्सपेरिमेंट के बारे में बात करने पर और उसके सफल रिजल्ट के बारे में उन्होंने कहा, "हम सभी बेहद उत्साहित हैं कि हम लॉकडाउन के दौरान लैब से दूर रहकर भी अपने एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं।"
"यह रिसर्च 1920 के दशक के मध्य से अल्बर्ट आइंस्टीन और भारतीय फिजिसिस्ट सत्येंद्र नाथ बोस की भविष्यवाणी पर आधारित है जिसमें कहा गया था कि क्वांटम मेकेनिक्स का इस्तेमाल करके बहुत सारे पार्टिकल्स एक पार्टिकल के रूप में काम कर सकते है, इस तरह ही मैटर की पांचवी स्टेट का रिसर्च किया गया" पीटर ने कहा।
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यूनिवर्सिटी के क्वांटम डिपार्टमेंट के रीसर्चर्स का मानना है कि यह पहली बार है जब किसी ने लैब से दूर रहकर बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट बनाया है।
डॉ गाडगे की मेहनत
जब डॉ गाडगे से उनके मुश्किल एक्सपेरिमेंट्स और कॅल्क्युलेशन्स के बारे में पूछा गया और वह इसे अपने घर से कैसे कर पाईं, तो उन्होंने बताया, “रिसर्च टीम लॉकडाउन में घर से काम कर रही है और इसलिए हम हफ्तों तक अपनी लैब में नहीं जा पाए हैं। । अगर हम लैब में काम करते तो प्रोसीजर बहुत स्लो होता क्योंकि एक्सपेरिमेंट अनस्टेबल है और हमे हर रन के बीच में 10 से 15 मिनट का कूलिंग टाइम देना था। "
उन्होंने बताया, "यह स्पष्ट रूप से कुशल नहीं है और मैन्युअल तरीके से करने के लिए काफी लॅबोरियस तरीका है क्योंकि मैं घर पर सिस्टेमेटिक स्कैन करने या इनस्टेबिलिटी को ठीक करने में सक्षम नहीं हूं जैसे कि मैं लैब में काम कर सकती थी। लेकिन हम अपनी रिसर्च को जारी रखने के लिए दृढ़ थे, इसलिए हम घर बैठकर अपने एक्सपेरिमेंट करने के नए तरीके तलाश रहे थे । "