अदिति गुप्ता का "मेंस्ट्रूपीडिए" करता है लड़ियों को पीरियड्स के विषय में जागरूक

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Swati Bundela
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भारत में ऐसे बहुत से लोग हैं जो मेंस्ट्रुएशन के साथ जुड़े कलंक को मिटाने का प्रयास कर रहे हैं.  परंतु आज हम एक ऐसी महिला के विषय में बात करने वाले हैं जो महिलाओं को कॉमिक्स के द्वारा उनके शरीर के विषय में शिक्षित करती है. अदिति गुप्ता और तूहीन पॉल ने २०१३ में मेंस्ट्रूपीडिआ शुरू किया और अब इससे नाम की एक कॉमिक बुक केवल भारत में ही नहीं बल्कि 15 अन्य देशों में भी प्रमुख है.

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अदिति गुप्ता का "मेंस्ट्रूपीडिए" करता है लड़ियों और महिलाओं को पीरियड्स के विषय में जागरूक


अदिति इस बात से बहुत खुश हैं कि यह कॉमिक बुक रोमानिया,  मेक्सिको,  अर्जेंटीना चिली जैसे देशों में  पढ़ी जा रही है. " यह कॉमिक भारत के लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी.  परंतु मेंस्ट्रुएशन के  सांस्कृतिक  और जैविक पहलू  सभी देशों के लिए लागू होते हैं.  बहुत आश्चर्य की बात है कि इन देशों ने इस  कॉमिक  को बहुत अच्छे से स्वीकार किया है क्योंकि हम मार्केटिंग पर ज्यादा खर्च नहीं करते और  सोशल  मीडिया और मौखिक प्रचार पर ही काम करते हैं.


उन्होंने यह भी कहा कि  अमेरिका और ब्रिटेन में ऐसी बहुत सी अध्यापिकाएं हैं जिन्होंने एक या दो किताबें  उन से मंगवाई  और उन्हें वह इतनी अच्छी लगी  उन्होंने उन्ही किताबों का भारी मात्रा में आर्डर दिया.

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मेंस्ट्रुअलपीडिया  भारत के लोगों को जागरुक करने का एक बहुत ही प्रशंसनीय प्रयास है.  अदिति ने हमें बताया कि उन्होंने कुछ विद्यालयों में वर्कशॉप  कंडक्ट करी है और अब  अध्यापिकाएं और छात्र दोनों ही इस विषय को लेकर काफी खुल के बात करते हैं.


कुछ समय पहले ही अदिति  मुंबई के एक प्रमुख प्राइवेट स्कूल में गई.  वहां पहुंचकर उन्हें इस बात का आभास हुआ कि  उनके सभी छात्र बहुत ही अमीर परिवारों से आते थे.  परंतु वहां की अध्यापिकाओं ने अदिति को बताया कि  इतने अमीर परिवारों से आने के बावजूद भी मेंस्ट्रुएशन उनके स्कूल में  एक कलंकित विषय माना जाता था. अदिति को यह जानकर बहुत  आश्चर्य हुआ  और इसी के साथ साथ वह बहुत प्रसन्न  भी हुई जब कक्षा 6 से लेकर कक्षा 10 के सभी छात्रों को मेंस्ट्रूपीडिआ की एक कॉपी मिली.


उन्होंने हमें यह भी बताया कि ऐसी बहुत सी लड़कियां और महिलाएं हैं जो खुश हैं कि अब ऐसा कुछ स्कूलों में पढ़ने को मिलता है.  अदिति हमें बताती है कि उनकी सहेलियां और परिवार के सदस्य  जिनकी आयु 20 साल के आसपास है उन्हें कहते हैं कि यदि उनके समय में यह कॉमिक्स उपलब्ध होती तो  उनका स्वयं  के शरीर को देखने का परिप्रेक्ष्य बहुत अलग होता.

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छोटी उम्र की लड़कियां जो इन किताबों को पढ़ती हैं वह बताती हैं  कि मेंस्ट्रुएशन एक प्राकृतिक गतिविधि  है और इसे बहुत जल्दी स्वीकार कर लेना चाहिए.


अदिति कहती हैं, " पीरियड्स को हमेशा नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है परंतु जब हम  गांव में रहने वाली महिलाओं और लड़कियों को अपना परिप्रेक्ष्य बदलते हुए देखते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है.


अपने  भविष्य की योजनाओं के विषय में बात करते हुए वह कहती हैं, "मेंस्ट्रूपीडिआ को 5 साल हो गए हैं और हम खुश हैं कि हमारी कॉमिक्स अलग-अलग देशों में जा रही है और  भिन्न-भिन्न भाषाओं में इनका अनुवाद हो रहा है.  हम अपनी कॉमिक्स को भारत की सभी भाषाओं में अनुवाद होते हुए देखना चाहते हैं.  हम एक ऐसा ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर ऑनलाइन शुरू करना चाहते हैं  जिससे केवल लड़कियों को ही नहीं बल्कि लड़कों और उनके पिताओं को भी इस विषय में शिक्षा मिल सके."

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