Advertisment

आज की नारी की सोच करवाचौथ के बारे में

author-image
Swati Bundela
New Update

Advertisment

करवा चौथ को  इस रूड़ी के कारण एक पुरुषप्रधान त्यौहार माना जाता हैं पर बहुत-सी महिलाओं को व्रत रखने के बारे में उनकी अपनी सोच हैं। इस भ्रमपूर्ण त्यौहार की वास्तविकता के बारे में लोगो की आँखें खोलने के लिए पूरे देश में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।


अगर एक पति की लम्बी उम्र के लिए पत्नी करवाचौथ का व्रत रख सकती हैं तो क्या एक पति अपनी पत्नी की लम्बी उम्र के लिए व्रत नहीं रख सकता?  क्या एक पति की लम्बी उम्र ही मायने रखती हैं एक पत्नी का कोई वजूद नहीं हैं । क्या एक शादी में पति की लम्बी उम्र ही मायने रखती हैं पत्नी जीएं या मरे उससे किसीको कोई लेने देना नहीं हैं ? पति पत्नी के रिश्ते में दोनों ही बराबर होते हैं और दोनों ही बहुत मायने रखते हैं ।
Advertisment

करवाचौथ को अगर प्यार की निशानी माना जाता हैं तो फिर ये प्यार की निशानी दोनों ही पति और पत्नी को एक दूसरे के लिए रखनी चाहिए


अंसल विश्वविद्यालय, दिल्ली की 22 वर्षीय छात्रा वणिका कहती हैं, “मुझे लगता है कि यह त्योहार पुरूषप्रधानता को बढ़ावा देता है। महिलाओं से अपेक्षा की जाती है और वे अपने पति के लिए उपवास करने के लिए बांध जाती हैं, चाहे उन्हें कितना भी सहना पड़े - भले ही उनका शारीरिक स्वास्थ्य इसका समर्थन नहीं कर सकता हो। दूसरी ओर, पुरुषों को भी ऐसा नहीं करना चाहिए। कुछ अपनी पत्नियों से उनके लिए स्वादिष्ट भोजन पकाने के लिए भी कहते हैं। हालांकि कुछ पति (बहुत कम ही) उपवास करते हैं, वह भी केवल उनकी शादी के शुरुआती वर्षों में। ”
Advertisment

एक पत्नी को अपनी पति के लिए प्यार दिखाने के लिए यह व्रत रखना पड़ता हैं पर क्या एक पति अपनी पत्नी की और अपना प्यार दिखाने के लिए यह व्रत नहीं रख सकता और क्या प्यार व्रत का मोहताज बनकर रह गया हैं ?


अनुष्का, एनएसपी में आदित्य महाविद्यालय अकादमी में एक फुल -टाइम कंटेंट राइटर कहती हैं की  “करवा चौथ विवाहित महिलाओं का एक हिंदू त्योहार है, जो अपने पति के लंबे जीवन के लिए उपवास करती हैं। यह पुरुषप्रधान रीति-रिवाजों और महिलाओं को 'दूसरे लिंग' के रूप में  दिखाने का प्रतीक है। हमें समाज से इस रिवाज को मिटाने की आवश्यकता है क्योंकि करवा चौथ इस बात को दर्शाने का सटीक प्रतिनिधित्व है कि पुरुष एक महिला और अन्य लिंगों से पदानुक्रम में श्रेष्ठ है। लंबे जीवन का अतार्किक अंधविश्वास भी त्योहार को संवेदनहीन बना देता है। इस भ्रमपूर्ण त्योहार की वास्तविकता को आंखें खोलने के लिए पूरे देश में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। ”
Advertisment

प्यार के प्रतीक के रूप में करवा चौथ पर ध्यान केंद्रित करते हुए, दिल्ली विश्वविद्यालय में 21 वर्षीय एमए अंग्रेजी की छात्रा सुषमा बसवाल कहती हैं की वह “नास्तिक के रूप में, मैं करवा चौथ के मिथक में विश्वास नहीं करती… लेकिन जो लोग इस पर विश्वास करते हैं, वे प्यार में हैं। कोई कह सकता है, कि जब लोग प्यार में होते हैं तो वे हर संभावना या असंभवता में विश्वास करते हैं और वह प्यार सब कुछ बदल सकता है। ऐसा नहीं हैं की मुझे प्यार पर विश्वास नहीं हैं , मुझे विश्वास है कि ऐसा कुछ मौजूद नहीं है, लेकिन मैं नहीं जानती, शायद भविष्य के बारे में मई निश्चित नहीं हूँ ।"

 
इंस्पिरेशन
Advertisment