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"ऐसा ज़रूरी नहीं की महिला केंद्रित फिल्में बदलाव की ओर संकेत करें", रसिका दुगल

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Swati Bundela
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रसिका
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दुगल.

दुगल एक थिएटर अनुभवी हैं.वह वजाइना मोनोलॉग और उर्दू प्ले दास्तानगोई जैसी प्रोडक्शन का हिस्सा रह चुकी है. वह आजकल अपनी पहली फिल्म मंटो के लिए काम कर रही हैं. इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी हैं और इसकी निदेशक नंदिता दास हैं. वह इस बात को भी स्वीकार करती हैं कि उन्हें थिएटर की शान पसंद है परंतु सिनेमा ही उनका पहला प्यार है.
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परंतु उन्हें किस प्रोजेक्ट का हिस्सा बना बनना है वह इसका निर्णय कैसे लेती हैं? और अपने पात्र के लिए वह किस प्रकार तैयारी करती हैं.
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"मेरे लिए सबसे जरूरी फैक्टर्स है एक अच्छी स्क्रिप्ट, निदेशक से आने वाली अच्छी वाइब्स,  मेरे साथ काम करने वाली टीम, दिलचस्प को-एक्टर और एक चुनौतीपूर्ण भूमिका. मैं सबसे ज्यादा उन भूमिकाओं की तरफ आकर्षित होती हूं जो मुझे एक नई स्किल सीखने का अवसर देती है. यदि इनमे से कोई तीन भी किसी प्रोजेक्ट में होते हैं तो मैं अभिनय करने के लिए हाँ कर देती हूँ.

"पहले महिलाओं के लिए सिनेमा में जगह नहीं होती थी परंतु अब उन्हें हीरो बनाया जा रहा है. इन फिल्मों को हम विमेन सेंट्रिक फिल्म कहते हैं. ऐसा जरूरी नहीं कि यह बदलाव की ओर इशारा करें.”

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मेरी तैयारी की प्रक्रिया बहुत सेल्फ कॉन्शियस नहीं होती.  मैं तैयारी को बहुत गंभीरता से नहीं लेती और वह करती हूं जो मेरे अनुसार तैयारी के समय मजेदार रहेगा. किस्सा फिल्म के समय पर मैंने पुराने पंजाबी संगीत सुने और मंटो की तैयारी के दौरान मैंने बहुत उर्दू पढ़ी.

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एफटीआईआई और लेडी श्रीराम कॉलेज की पढ़ी रसिका दुगल कहती हैं कि नवाज और नंदिता के साथ शूटिंग करना  उनके लिए एक अच्छा अनुभव था.  उनके काम को देखकर कोई भी यह सोचना कि वह काम को लेकर बहुत गंभीर हैं. परंतु वह कहती हैं "वह मस्ती करने में भी विश्वास रखते हैं और उनको उनके साथ काम करके बहुत मजा आया. अपने अनुभव के कारण वह कुशल और ध्यान केंद्रित होने के साथ-साथ बहुत आराम से भी काम करते हैं. एक बहुत अच्छा गुण है और मैं यह आशा करती हूं कि मैं यह सीख सकूं."

दुगल आभारी हैं कि उनका काम उन्हें बहुत ही नई चीजे सिखाने का अवसर देता है  जिसके कारण उन्हें अपने शौक पूरे करने के लिए इधर उधर नहीं देखना पड़ता.
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वह जल्दी जोया अख्तर की शोर्ट फिल्म मुंबई टॉकीज टू में एक कैमयो प्ले करेंगी. वह कहती है "बहुत समय बाद में एक ऐसी स्थिति पर हूं जहां मैं खुद सुन सकती हूं. इसमें भी अपनी कठिनाइयां है पर यह कठिनाइयां अच्छी हैं."

मैं भविष्य के लिए योजनाएं बनाने में विश्वास नहीं रखती. मैं पहले आज के दिन को जीने में विश्वास रखती हूं. मुझे आने वाले 5 सालों का कुछ नहीं पता. पर मैं आशा करती हूं कि अगले 5 साल में  मैं अपने काम को और बहुत बेहतर तरीके से कर रही होंगी.”

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