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उदाहरण के तौर पर रणवीर सिंह के उस बयान को लेते हैं जो उन्हें अपनी डेब्यू फिल्म "बैंड बाजा बारात" के दौरान "कॉफी विद करन" शो पर अनुष्का के साथ बैठकर दिया था। उन्होंने अनुष्का पर एक आपत्तिजनक टिप्पणी की थी जिसे हम सभी ने अनदेखा कर दिया। काफी लोगों ने तो इसे बॉलीवुड में सामान्य चीज़ बताकर छुटकारा पा लिया था। तो क्या कहा जाये? क्या बॉलीवुड में महिलाओं पर अभद्र टिप्पणियां करना कोई "न्यू नार्मल" है? बिलकुल नहीं। हाँ, यह नार्मल तो है लेकिन न्यू नहीं। आईये ऐसी ही कुछ और बातों पर नज़र डालते हैं और बॉलीवुड में महिलाओं के गिरते स्तर को गंभीरता से लेते हैं।
"कॉफी विद करन" शो
वैसे तो यह शो विवादों को जन्म देने के लिए और दर्शोकों को मसाला ख़बरें देने के लिए काफी प्रसिद्ध है। और हो भी क्यों न, क्यूंकि आज कल बॉलीवुड के बड़े-बड़े निर्देशकों और निर्मातों को टीआरपी बढ़ाने के लिए यही सबसे आसान तरीका लगता है। अगर हाल में ही हार्दिक पंड्या की बात की जाये तो उनकी टिप्पड़ी से बवाल मच गया था जिसका होना ज़रूरी भी था। लेकिन यह सोचिये ज़रा कि क्या उसकी आधी ज़िम्मेदारी करन जौहर की नहीं है? क्यूंकि ऐसे प्रश्नों का शुभारंभ तो ज्यादातर वही करते हैं। क्यों करन जौहर लोगों की सेक्स लाइफ से हटकर कुछ और पूछने में ज़रा संकोच करते हैं?
अभिनेत्रियां या नृत्य कलाकार?
यह भी सोचने वाली बात है कि आज कल हर फिल्मों में आइटम गाने होते हैं। क्यों? क्यूंकि फिल्मों के प्रोमोशंस में आइटम गानों का बड़ा हाथ होता है। चलिए इस चीज़ को जायज़ मान लेते हैं। लेकिन क्या आप महिलाओं के आइटम गानों में दर्शाये जाने पर प्रश्न नहीं करेंगे? महिलाओं का उस फिल्म में भले ही लीड रोल न हो, लेकिन आइटम गानों में वे जरूर लीड रोल्स में होती हैं।
गानों के बोल पर ध्यान दें
अब बात आती है हमारे पसंदीदा गानों के बोलों की। शुरुआत करते हैं "कोका-कोला" से। कभी उसके बोल ध्यान से सुनिए और फिर अपने पसंदीदा कलाकारों, गीतकारों और गायकों की एक अलग से छवि बनाइये। इतना ही नहीं, हमारे पास इतने उदाहरण हैं कि गिनती करना मुश्किल है। शहीद कपूर और सोनाक्षी सिन्हा की "आर राजकुमार" के गाने "गन्दी बात" के बोल सुनिए। इन सब से आपको पता चलेगा की हम किस दिशा में जा रहें हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन चीज़ों पर कोई रोक लगती नहीं दिख रही है।
विवादों की सूचि देखें
अब बात आती है कि बॉलीवुड में किस तरह की फिल्मों पर विवाद किया जाता है। एक फिल्म से इस चीज़ को समझने की कोशिश करते है। आपको विवादित फिल्म "लिपस्टिक अंडर माय बुरखा" तो याद ही होगी। ध्यान से सोचने की ज़रूरत है कि उसमे ऐसा क्या दर्शाया गया था जिसे लोगों ने आपत्तिजनक करार किया था। उसमे महिलाएं सिगरेट पी रही थीं। क्या आपने कभी किसी फिल्म में किसी पुरुष को सिगरेट पीते नहीं देखा? फिल्म में महिलाएं प्रोस्टीटूट के किरदार निभा रहीं थी और गालियां दे रही थीं। यही कारण है तो फिर सेक्रेड गेम्स और मिर्ज़ापुर जैसी सीरीज को क्यों इतना प्यार दिया गया? क्यों उनपर आपत्ति नहीं की गयी?
दरअसल हमे यह समझना होगा कि बॉलीवुड अपने में एक बहुत लैंगिक इंडस्ट्री है। ज़रूरी है कि यह सामान्यता अब बदले। हालांकि कोशिशें जारी हैं लेकिन हमे दर्शक होने के नाते आपत्तिजनक शोज और फिल्मों का भी विरोध करना चाहिए।