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मेरे चारों तरफ पिछले कुच्छ सालों से जैसे एक छोटी शांत क्रांति आ रही है| असल में यह क्रांति इतनी शांत और निर्धारित है, के शायद यह आपके पास से गुजर कर निकली और आपको मालून नहीं पड़ा| मेरे चारों और, मेरी सहेलियाँ और कई जानकार माँ बनने के बाद अपने बच्चे की देखभाल के लिए कुच्छ वर्षों का विश्राम लेती हैं, जिसमें वे अपना व्यक्तिगत जुनून, उद्देश्य और मिशन खोज पाती हैं||
ज़ाहिर है कि मैं एक समाज के एक विशिष्ट हिस्से के महिलाओं के बारे में बात कर रही हूँ| वे महिलायें जो शहरों में रहने वाली पढ़ी-लिखी और पेशेवर हैं| इन महिलाओं के पास पसंद का विशेषाधिकार है, जो देश की महिलाओं के पास नहीं होता| अक्सर हम इस विशेषाधिकार को नज़रअंदाज़ करते हैं||
विश्राम के इन कुच्छ वर्षों के बाद जब यह महिलायें काम पर वापस जाती हैं, तो ज़रूरी नहीं के वे वही काम करेंगी जो पहले कर रही थी| कई बार यह उनकी पढ़ाई से भी बहुत अलग होता है| ऐसी ही मेरी एक ख़ास सहेली, जो सॉफ्टवेर इंजिनियर थी, आज एक कामयाब भोज व मेनू क्युरेटर हैं जो कई भोज कार्यशालायें भी आईिजीत करती हैं| एक और है जिन्होने कई फुड ब्रॅंड्स के साथ मिलकर एक कुक स्टूडियो की शुरुआत की, और इसी विषय पर एक किताब भी लिखी| ऐसे कई उदाहरण हैं, जैसे एक और सहेली ने माँ बनने वाली महलाओं को करियर की दोबारा शुरुआत करने में मदद करने का बीड़ा उठाया|
किरण मानरल के संग "मोम्स मीन बिज़्नेस"
दो चीज़ें है जो इन सभी महिलाओं में सामान्य है| एक, खुद को ढूँढना और दो, अपने जुनून के पीछे जाना| यह सराहनीय है क्योंकि मातृत्व की खूबसूरत उथल-पुथल में हम अक्सर अपने आप पर ध्यान देना भूल जाते हैं| अपने बच्चे से अपने आप पर ध्यान वापस केंद्रित करने का परिवर्तन कुच्छ मुश्किल है| हमें अपने खुद के टकटकी की सुर्खियों में रहने की इतनी आदत हो जाती है कि पहले हम स्वार्थी महसूस करते हैं, और फिर आती है दोष की भावना, मानो जैसे अपने कोई अपराध कर दिया हो| इस भावना की हमें ज़रूरत नहीं होती| हम अपने जीवन में खुशी, संतुष्टि और उद्देश्य को महत्व देते हुए अपने बच्चों को भी अपनी क्षमता अनुसार सबसे अच्छी परवरिश देने का प्रयास करते हैं, इससे ज़्यादा अच्छी हम अपने बच्चों को क्या दे सकते हैं?इससे अच्छा सशक्तिकरण भला खुद उदाहरण बनने के अलावा और कैसे हम अपने बच्चों को सपने देखने और उन्हे पूरा करने की प्रेरणा देंगे?
मेरे बेटे ने मुझे मेरी किताब की कामयाबी में मगन देखा और अस्विकृति पत्र मिलने पर निराश होते हुए भी देखा है
मेरे बेटे ने मुझे मेरी किताब की कामयाबी में मगन देखा और अस्विकृति पत्र मिलने पर निराश होते हुए भी देखा है| हम बात करते हैं और वो मुझे आइडियास देता है की क्या काम करेगा और क्या नहीं| वह मुझसे मेरे प्रचार पर्यटन के बारे में पूछता है, मैं क्या करती हूँ, क्या होता है, कौन आता है और कैसे सवाल पूछे जाते हैं| उसके लिए दिलचस्प है यह जाना के लोग उसकी माँ को सुनने आते हैं, जिसे घर पे काई बार उसे कम बोलने की विनती करनी पड़ती है, क्योंकि वो वीडियो गेम में कोई लेवेल पार करने की कोशिश कर रहा होता है|| वह जानता है की मेरी लिखाई मेरे लिए ज़रूरी है| वह भी मेरे लिए ज़रूरी है, और यह कोई 'या तो यह या तो वह' जैसी स्थिति नहीं है| और मैं अभारी हूँ कि वह यह बात समझता है| हलाकी वह कभी कभी शिकायत करता है कि मैं उससे इतना डोर क्यों रहती हूँ| पर फिर खुद ही जवाब दे देता है| "क्योंकि आपको यह करना होता है"| यह एक ऐसा पाठ है जो मैं आशा करती हूँ कि मैं उसे सीखा पा रही हूँ| जुनून और बुद्धिमत्ता ऐसी दो चीज़ें हैं जो एक इंसान खुद को दे सकता है| मैं सिर्फ़ आशा कर सकती हूँ कि किसी दिन वह भी अपना जुनून और उद्देश्य पहचान पाएगा|
किरण मानरल बंबई में रहने वाली लेखिका और मार्केट शोधकर्ता हैं| वे कुमाओं साहित्य फेस्टिवल के योजना मंडल, लिटरेचर स्टूडियो के सलाहकार मंडल, ताज कोलोक्वियम विमन अनलिमिटेड सीरीस की अध्यक्ष व मेंबर हैं|