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पंचकुला की उपायुक्त गौरी परशाहर जोशी ने आंदोलनकारियों को शांत करने के लिए अपनी क्षमता के अनुसार वह सब कुछ किया जो वे कर सकती थी।
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• वह 2009 के बैच की आईएएस अधिकारी हैं और इन्होंने ओडिशा के कालाहांडी के नक्सल प्रभावित ज़िले में काम किया है।
• वह वर्तमान में हरियाणा में प्रतिनियुक्ति पर हैं जहां घटना हुई।
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• अपने काम के प्रति उनकी वफादारी के तथ्य यह हैं कि हिंसा के दौरान भी उन्होंने अपने कर्तव्य को किसी और पर नहीं थोपा । उन्होंने चोटें लगने पर भी अपना कम बरकरार रखा, यहां तक कि उसके कपड़े भी फट गए थे ।
• एक अकेले पीएसओ के साथ बचे रहने पर भी, वह अपने कार्यालय गई और स्थिति को सुधारने के लिए सेना को स्थिति को नियुक्त करने का आदेश जारी किया।
• वह अमन सुनिश्चित करने के लिए शहर के हर जगह और कोने तक गयीं। वह सुबह 3 बजे घर पहुंची।
• उनका एक 11 महीने का शिशु भी है।
एक स्थानीय निवासी ने ईटी को यह भी बताया कि अगर क्षेत्र में सेना को बुलाए जाने का महत्वपूर्ण कदम समय पर नहीं लिया गया होता नहीं उठाया गया होता तो इस क्षेत्र में और भी अधिक हिंसा देखी जा सकती थी।
उन्होंने कहा, "हम पिछले कुछ दिनों से चाय और बिस्कुट के साथ स्थानीय पुलिस की सेवा कर रहे हैं, लेकिन जैसे ही डेरा अनुयायियों ने हिंसातमात कार्यक्रम आरम्भ किया तो स्थानीय पुलिस वाले उनके पीछे दौड़ने में सबसे आगे रहे।"
यह ध्यान देने योग्य विडंबना है कि जो राज्य अपनी लड़कियों को उनके लिंग के लिए सजा देता है, उससे इलाके के लोगों की सुरक्षा के लिए एक महिला आईएएस अधिकारी ने कितनी अहम भूमिका निभायी।
अनुकरणीय साहस का प्रदर्शन करने के लिए वे सराहना के योग्य हैं!
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