नेल्सन मंडेला ने कहा था, “शिक्षा वो सबसे शक्तिशाली साधन है जिससे आप दुनिया बदल सकते हैं.” भले ही भारत में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत कक्षा आठवीं तक बच्चों को प्राथमिक शिक्षा की गारंटी दी जाती है, पर अनेक सरकारी विद्यालयों की खस्ता हालत के चलते कई क्षेत्रों जैसे, बच्चों का बीच में ही विद्यालय आना छोड़ देना, पढ़ाई में कमज़ोर बच्चों को सहायता प्रदान करना या बच्चे विद्यालय आना शुरू करें इसके लिए प्रयास करना, इन पर कम ही कार्य हो सका है. पर सूरत, गुजरात में, स्थिति धीरे-धीरे बदल रही है, इसके पीछे हैं बीना राव के अथक प्रयास, जो एक सरल किन्तु प्रभावी कदम के माध्यम से झुग्गी-झोपड़ी के हज़ारों बच्चों का जीवन बदल रही हैं.
उन्होंने प्रयास की स्थापना की, जो झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों के लिए एक निशुल्क कोचिंग संस्थान है. उन्होंने स्वयं २-३ बच्चों को पढ़ाने के साथ इसकी शुरुआत की थी, आज उनके पास ३४ स्वयंसेवकों की एक टीम है जो सूरत में ८ अलग-अलग कोचिंग केन्द्रों पर लगभग १२०० बच्चों को शिक्षा प्रदान करती है.
बीना, जो पहले एक गृहिणी थीं, याद करती हैं कि किस प्रकार उनके पिता जो एक वायलिन वादक थे, दृष्टिहीन बच्चों को निशुल्क रूप से शिक्षा देने के लिए समय निकाल ही लिया करते थे. उनकी सहानुभूति और परोपकार की भावना बीना का प्रेरणास्रोत बनी, और उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे भी समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं, सुनिश्चित करना चाहती हैं कि १४ साल तक के सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध हो सके.
अपने पिता से प्राप्त सहानुभूति और परोपकार के संस्कारों ने, इस पथ पर चलने के लिए बीना को हौसला दिया.
“मेरे पति, जो प्रोफेसर हैं, और मैं शहर में झुग्गी-झोपड़ियों व गरीब बस्तियों में जाते थे और वहाँ बच्चों को पढ़ाते थे. लेकिन इस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता थी क्योंकि सभी बच्चे अलग-अलग उम्र के थे और उनका मानसिक स्तर भी एक समान ना था, इसलिए उन्हें एक साथ पढ़ाना संभव नहीं था.” बीना ने कहा.
इस दौरान, बीना ने प्रोफेसर अनिल गुप्ता, जो अहमदाबाद में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के प्रमुख भी हैं, की सलाह ली और २००६ में प्रयास की शुरुआत की, जहाँ वंचित बच्चों को कोचिंग की सुविधा मिलती है.
बीना ने कहा, “प्रोफेसर अनिल ने हमें सलाह दी कि हम व्यक्तिगत रूप से बच्चों से संवाद स्थापित करें, उनके साथ खेलें, और फिर धीरे से उन्हें पढ़ाना शुरू करें, वर्ना कोई भी पढ़ने नहीं आएगा.”
स्वयंसेवकों के एक समूह के साथ, जिसमें अधिकांश कॉलेज छात्र-छात्राएँ हैं, बीना बच्चों को छुट्टियों के दौरान भी अपने से और शिक्षा से जोड़े रखने की कोशिश करती हैं. छोटे बच्चों के लिए, जहाँ शाम को फिल्में रहती हैं वहीँ बड़े बच्चों को किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. ये किताबें, बस्तियों तक एक मोबाइल लाइब्रेरी द्वारा पहुँचाई जाती हैं.
अपनी शुरुआत से लेकर अब तक, प्रयास पर ५००० से ज़्यादा बच्चों को पढ़ाया जा चुका है. और अब बीना का लक्ष्य है आस-पास के गाँवों तक भी इसका लाभ पहुँचाना.
“ज़्यादातर बच्चे कोशिश करके १०वीं कक्षा तक पढ़ लेते हैं, पर यदि वे परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए तो पुनः परीक्षा देने की प्रेरणा खत्म हो जाती है. जो उत्तीर्ण होकर आगे पढ़ते हैं, सुनिश्चित करते हैं कि वे कॉलेज की पढ़ाई भी करें.”
अपनी शुरुआत से लेकर अब तक, प्रयास पर ५००० से ज़्यादा बच्चों को पढ़ाया जा चुका है, और अब बीना का लक्ष्य है आस-पास के गाँवों तक भी इसका लाभ पहुँचाना.
बीना कहती हैं, “प्राथमिक शिक्षा अवसर पैदा करती है और सुनिश्चित करती है कि बच्चों को आगे जाकर रोज़गार मिल सके और वे एक बेहतर जीवन की ओर कदम बढ़ा सकें. हमारे यहाँ से पढ़े कई छात्र अच्छा काम कर रहे हैं, अपने व अपने परिवारजनों के जीवन में खुशियों का उजियारा भर रहे हैं.”