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“मैंने कभी भी शतरंज को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया । मैं और मेरी पत्नी दोनों सामान्य ज्ञान से खेल की मूल बातें जानते थे। हमारी जॉइंट फैमिली में कुछ स्पोर्टस्टार हैं, लेकिन कोई भी बोर्ड गेम नहीं खेलता है, ”पूर्णेंदु ने इंडियनएक्सप्रेस.कॉम को बताया।
अर्शिया शतरंज खेलनेवाली अपने परिवार की पहली सदस्य हैं, उनके पिता पूर्णेंदु दास भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के कर्मचारी हैं और उनकी माँ अर्निशा नाथ दास एक गृहिणी हैं।
चैस की शुरुआत
इस नन्ही शतरंज खिलाड़ी ने तीन साल पहले अचानक एक शॉपिंग मॉल में एक चैस बोर्ड देखने के बाद चैस खेलना शुरू किया। उसकी माँ अर्निशा नाथ दास ने कहा, “हमें शतरंज का कोई बड़ा अनुभव नहीं था। इतनी छोटी होने के बावजूद अर्शिया ने कंप्यूटर पर शतरंज का खेल खेला। बाद में, उसने एक शॉपिंग मॉल में एक चैस बोर्ड देखा और खेल खेलने की इच्छा ज़ाहिर की। उसने 6 साल की उम्र में अपनी पहली नेशनल चैम्पियनशिप खेलना शुरू किया।
अर्शिया ने कहा कि वह ग्रैंडमास्टर बनना चाहती हैं क्योंकि ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद उनकी प्रेरणा हैं।
अपना पहला इंटरनेशनल गोल्ड मैडल हासिल करने के बाद, इस नन्ही चैंपियन ने कहा कि उसकी नज़रें अब जॉर्जिया में होने वाली 2020 वर्ल्ड चैस चैम्पियनशिप पर टिकी हैं।
चैस करियर
वह पहले ही अपने कैंडिडेट मास्टर का खिताब हासिल कर चुकी है और फिलहाल उनके पास 1800 रेटिंग अंक हैं। वह पांच साल की उम्र में अगरतला में एक रेटेड- चैस टूर्नामेंट में भाग लेने वाली त्रिपुरा की पहली शतरंज खिलाड़ी बनीं। उसने विजयवाड़ा में 2017 में 31 वीं नेशनल अंडर -7 लड़कियों की चैस चैंपियनशिप में ब्रोंज मैडल जीता और वह अभी रायपुर में नेशनल स्कूल चैम्पियनशिप, 2019 में जीतने के बाद भारत में अंडर -9 चैस चैंपियन है।
हालाँकि, 2018 में स्पेन में विश्व चैम्पियनशिप में अर्शिया का इंटरनेशनल परफॉरमेंस कुछ ख़ास नहीं रहा और वह 13 वें स्थान पर रहीं। उन्होंने पिछले साल थाईलैंड में एशियन चेस चैंपियनशिप में भी बिना कुछ ख़ास प्रदर्शन नहीं दिखा पाई थी ।