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फ्रांस से आयी बेंजामिन ओबेरॉय भारत को एक बेहतर देश बनाने में जुड़ी हुई हैं

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Swati Bundela
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हमने अक्सर दोस्तों और रिश्तेदारों को विदेश जाकर बस्ते हुए देखा है परंतु क्या आपने कभी ऐसे विदेशियों के बारे में सुना है जिन्हें भारत में आकर ही  अपने वास्तविक उद्देश्य का ज्ञात हुआ.

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फ्रांस की रहने वाली बेंजामिन ओबरॉय 1978  में चाइल्ड साइकोलॉजी में पीएचडी करने भारत आई. भारत में अपने पति से मुलाकात करने के बाद उन्होंने यहीं पर बसने का निर्णय लिया.


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अपनी पीएचडी करने के बाद उन्होंने बेंगलुरु में निमहंस के साथ काम करना शुरू किया.  उसके बाद उन्होंने  एक फ्रेंच एनजीओ के साथ काम करना शुरू किया और यही से उनकी जर्नी की शुरुआत हुई. बहुत समय तक उन्हें इस बात का पता ही था कि वह जो एनजीओज के साथ काम कर रही हैं वो बहुत ही प्रभावशाली है.


उन्हें अपने कार्य के विषय में तब पता चला जब एक स्विस फाउंडेशन भारत आई और उन्हें बताया कि उनके काम कि सराहना की. तब उन्होंने ओब्जेक्टीफ फ्रांस इन्दे  शुरू किया था कि वह अपने प्रोजेक्ट के लिए फंड इकट्ठा कर सकें. कुछ ही वर्षों में बहुत से फंडिंग इंस्टिट्यूशंस में उनके मैनेजमेंट और रिपोर्टिंग स्किल्स के कारण उनके साथ काम करना शुरू कर दिया और अन्य एनजीओज से उनकी सिफारिश करनी शुरू कर दी.

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यदि आप बेंजामिन ओबरोय गूगल करेंगे तो आप  को एक पेज दिखाई देगा जिसका नाम है  कासा कॉटेज.  यह बेंजामिन  और उनके पति द्वारा शुरु किया गया एक होटल है.  वह कहती हैं-: "एक व्यवसाय चलाने से हमें  बहुत ही कानूनी बातों और अन्य मुश्किलों का पता चलता है.  इससे हमें जो फायदा होता है उसका एक हिस्सा कासा फाउंडेशन के लिए जाता है. हमें अनेक लोग मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं.डॉक्टर या डेंटिस्ट हमारे साथ बच्चों की मदद कर सकता है, आईटी सेक्टर में काम करने वाला इंसान हमें कंप्यूटर दे सकता है, और कोई भी अन्य मनुष्य हमें चादर या प्लेट दे सकता है.”


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कैसा फाउंडेशन के विषय में बात करते हुए उन्होंने हमें बताया कि ऐसे बहुत ग्रामीण परियोजनाएं  होती है जिन्हे  आसानी से फंड्स नहीं मिलते. उनके अनुसार यह ग्रामीण योजनाएं बहुत अच्छा काम करती हैं.  हमने इन परियोजनाओं के विषय में कुछ कंपनीस को बताने का प्रयास किया ताकि वह किसी प्रकार की मदद कर सकें.  वहां फाउंडेशन के सभी लोग वालंटियर की तरह काम करते हैं जिसके कारण ओवरहेड कॉस्ट्स कम हो जाते हैं.



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ग्रामीण इलाकों में महिला सशक्तिकरण अब जोर शोर से हो रहा है. ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जो अपने विकास की जिम्मेदारी स्वयं ले रही हैं.


कुछ वर्षों पहले शुरू होने के बावजूद बेंजामिन के अनुसार इस फाउंडेशन को और मान्यता की आवश्यकता है." इस बात की प्रसन्नता है कि हमारी परियोजनाओं ने बहुत से सुविधाहीन बच्चों और महिलाओं की मदद करी है. हम इस बात की गारंटी दे सकते हैं कि फंड्स व्यर्थ नहीं जाते.", उन्होंने कहा.

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बेंजामिन  के अनुसार सभी को वालंटियर करना चाहिए और गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए.  वह चाहती हैं कि अधिकतर लोग कुछ समय निकालकर  अलग-अलग एनजीओ के साथ वॉलिंटियर कर सकें.


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भारत में ऐसे लोग बहुत हैं जो एनजीओज में  बहुत कुछ दान करते हैं  परंतु बेंजामिन एक विदेशी है जिन्होंने भारत में आकर ऐसा दुर्लभ कार्य करने की जिम्मेदारी ली. हम आशा करते हैं कि अधिकतर लोग उनका इस कार्य में साथ देंगे.


 
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