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अपने अकादमिक कैरियर के बारे में बोलते हुए, वह कहती हैं, उन्होंने सदा खुद को जीतते और चमकते हुए रहना पसंद किया है और खुद में सर्वश्रेष्ठ होने की कोशिश की है। पहली बार वह अपने पिता से प्रेरित हो गयीं जिन्होंने उन्हें हर उस काम में श्रेष्ठ होने के लिए प्रोत्साहित किया जो वो करती हैं और दूसरे हैं जॉन लेनन, जो बड़े होकर केवल 'खुश' रहना चाहते थे।
"खेल हमेशा से शक्तिशाली, शारीरिक और मानसिक रूप से मज़बूत और मुक्त महसूस करने का एक तरीका था और है। यह एक ही समय में स्वतंत्रता, खुशी और नियंत्रण प्रदान करता है।"
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"बड़ा सवाल यह था कि मैं इसे कैसे हासिल कर सकती हूं? मैंने ये समझा कि कक्षा में शिक्षकों को सुनना और फिर अंत में 'समझदारी से अध्ययन' मेरी सफलता की कुंजी थी। मैं अन्य छात्रों की तरह हर समय जल्दी जल्दी सिर्फ आगे नहीं बढ़ती थी, लेकिन जब परीक्षा के लिए तैयारी की बात आती तो; मुझे पता था कि मुझे परीक्षाओं में अव्वल आने के लिए क्या पढ़ना चाहिए। मुझे याद है कि मेरे कॉलेज एलएसआर के प्रधानाध्यापक को यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ है कि मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में शीर्ष स्थान हासिल किया था, जबकी दूसरे छात्रों ने मुझसे बहुत ज्यादा काम किया था।"
रूचि आनंद अक्सर खुद को बैडमिंटन की स्लमडॉग मिलियनेयर कहती हैं, क्योंकि उन्होंने कभी भी औपचारिक तौर पर इस खेल को नहीं सीखा। बहुत ही कम उम्र में उन्हें यह एहसास हो गया था कि वह एक पितृसत्तात्मक संस्कृति में रहती थी, जिसे एक लड़की को 'इंकार' करना होगा- आगे बढ़ने के लिए या जो वो करना चाहती है वो करने के लिए।
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वे कहती हैं, "खेल हमेशा से शक्तिशाली, शारीरिक और मानसिक रूप से मज़बूत और मुक्त महसूस करने का एक तरीका था और है। यह एक ही समय में स्वतंत्रता, खुशी और नियंत्रण प्रदान करता है। बैडमिंटन मेरा शीर्ष खेल बन गया क्योंकि यह कहीं भी खेलना आसान था। हमने अधिकतर खुले में खेला, चाहे हवा हो या बारिश हो या धूप हो। बात केवल मज़े की थी उसपर अगर खेल जीत जाएँ तो फिर तो बात ही क्या थी। मैंने कभी भी इस खेल को प्रशिक्षक से औपचारिक तौर पर खेलना नहीं सीखा। रैकेट को पकड़ने का मेरा तरीका, कोर्ट्स में चलने फिरने या खेलने का और मेरे शॉट्स को मारने का मेरा तरीका अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में बैडमिंटन के प्रतियोगी क्षेत्र के हिसाब से काफी विशिष्ट है, जहां हर कोई एक सुव्यवस्थित तरीके से खेलता है जो प्रशिक्षण के साथ आता है। "
राजनीति विज्ञान के छात्र के रूप में, रूचि जानती थी कि वह दुनिया को बदलना चाहती थीं। वह अपने अकादमिक पथ पर चलती रहीं जब तक वह उस जगह नहीं पहुंच गयीं जहां वे एकेडेमिक्स के अलावा अन्य किसी भी क्षेत्र के लिए योग्य थीं। वह बताती है, "मेरे पास अन्य जितने भी प्रस्ताव आये (परामर्श फर्मों और निगमों से) उनके लिए मुझे अपने अंदर की आग को बुझा कर ज्वार के साथ प्रवाह करने की आवश्यकता थी। इस समय तक, मैं जान चुकी थी कि मैं एक 'स्वतंत्र विचारक' थी और इसी तरह से रहना चाहती थी। मैं एक बड़ी वेतन और कमाई के लिए अपनी आत्मा या अपने विचारों को बेचना नहीं चाहती थी। एक प्रोफेसर होने के नाते मैं ये कर सकती थी और मुझे यह पसंद है। यदि आप अपने पेशे के रूप में उस चीज़ को चुनते हैं जो आपको पसंद हैं, तो आप अपने जीवन में एक भी दिन ऐसा महसूस नहीं करेंगे की आप काम कर रहे हैं! "
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अंग्रेजी में पर्याप्त और आसानी से सुलभ शोध सामग्री की कमी के कारण फ्रांस में रहते हुए अंग्रेजी में शोध और लेखन करना आसान नहीं है। तीसरी दुनिया अकादमिक की शैक्षणिक और एक नारीवादी विद्वान होने के नाते, मुख्यधारा की शिक्षा के प्रवाह के खिलाफ जाना आनंद के लिए एक चुनौती रही है जिसमें काम काफी समझदारी राजनयिक रूप से होना चाहिए।
एक असाधारण रूप से व्यस्त जीवन होने के साथ, तीन पुस्तकों की प्रकाशित लेखिका इस मंत्र से जीवन का प्रवाह करती हैं कि अगर मां खुश रहेगी, तो बच्चे और ज़्यादा खुश रहेंगे। अपने बच्चों की ज़रूरत के लिए बलिदान कर देने वाली ये साहसी महिला उनको उनकी खुद की पहचान से विचित्र बनाती है। यह अनिवार्य रूप से खुद को 'मातृत्व के कई मिथकों' और गलत धारणाओं और एक अच्छी माँ बनने के लिए क्या मायने रखता है की छवि का शिकार होने से बचाने का मतलब है।
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एक असाधारण रूप से व्यस्त जीवन होने के साथ, तीन पुस्तकों की प्रकाशित लेखिका इस मंत्र से जीवन का प्रवाह करती हैं कि अगर मां खुश रहेगी, तो बच्चे और ज़्यादा खुश रहेंगे। अपने बच्चों की ज़रूरत के लिए बलिदान कर देने वाली ये साहसी महिला उनको उनकी खुद की पहचान से विचित्र बनाती है।
"बच्चों के होने के बाद भी बैडमिंटन खेला और काम को जारी रखा मैंने। मैं उनके लिए खुद को पूरी तरह से बदलती, इसके बजाय वे ये देखकर बड़े हुए हैं कि माँ कौन है और खुद को इसके अनुकूल बना लिया। और मैं जैसी हूं मुझे वैसे ही प्यार करते हैं, बिना उनके प्रति मेरे प्रेम को संदेह किये जिनके लिए मैं पर्याप्त समय निकाल लेती हूं। मैं अपने पाठ्यक्रमों को इस हिसाब से व्यवस्थित रखती हूँ कि हर सोमवार और बुधवार बच्चों के लिए रहे ।
इस तत्वज्ञान के लिए मैं आभारी हूँ कि बच्चे स्वतंत्र, नारीवादी, सम्मानजनक और सहानुभूति के साथ बढ़ रहे हैं। फ्रांसीसी पिता होने के साथ (जिनसे मेरी मुलाकात यू.एस. में हुई थी जब मैं एक शिष्य थी ), जिनके साथ मैं ये विश्वास बांटती हूं कि हम न आंके जा सकें न ही ऐसे मानकों का शिकार बनें जो हर किसी के लिए हमेशा ' एक आकार सभी फार्मूले को फिट बैठता है।' व्यक्ति को आधुनिकता और अनुकूलता के साथ प्रवाह करना चाहिए ।'
रुची आनंद समाज को अपने तरीके से वापस लौटाना चाहती है- जिन लोगों के साथ वह रहती है व जिनसे वे मिलती हैं उनके जीवन में परिवर्तन लाकर।
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