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मिंगोरा में पैदा हुई इस लड़की को सबसे कम उम्र में नोबल पुरस्कार मिला तो वह दुनियाभर की लड़कियों के लिये प्रेरणा बन गई. उनका मानना है कि लड़किया दुनिया बदल सकती है लेकिन उसके लिये आप को उन पर निवेश करना होगा. उन्होंने एक ऐसे कट्टरपंथी समाज में तालिबानियों से टक्कर ली जिनका मक़सद लड़कियों को शिक्षा से दूर रखना और घर में कैद कर देना था. उनकी ऐसी कई बातें है जो दूसरों को भी आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती हैं
वह बहादुर है
अक्टूबर 9, 2012 को मलाला को हमले का सामना करना पड़ा. जिस स्कूल बस में वह जा रहीं थी उस बस में तालिबानी घुस आयें और उन्होंने मलाला के सर पर गोली चला दी. उस हमले में मलाला ने मौत को काफी करीब से देखा. उन्हें इलाज के लिये लंदन ले जाया गया और उन्होंने एक लंबा वक़्त हास्पिटल में गुज़ारा. लेकिन मलाला ने हिम्मत नही हारी. उन पर हुये हमले ने उन्हें और मज़बूत किया. उनका संघर्ष हमें बताता है कि वह कितनी बहादुर है. लेकिन आज वह न सिर्फ शिक्षा की बात कर रही है बल्कि वह दूसरें मुद्दों को भी उठा रही है जो हमारे लिये जरुरी बनते जा रहे जैसे क्लामेंट चेंज, पर्यावरण और बराबरी.
हर लड़की को शिक्षा के अधिकार के लिये लड़ाई
वह दुनिया की हर लड़की को शिक्षा दिलवाना चाहती है. उन्होंने जिस इलाक़े में जन्म लिया उस इलाक़े में लड़कियों के पैदा होने पर ख़ुशी नही मनाई जाती थी. लेकिन मलाला के पिता अलग थे उन्होंने उनके जन्म के वक़्त न सिर्फ खुशियां मनाई बल्कि उन्होंने फैसला किया कि वह अपनी लड़की को पढ़ायेंगे. यह सब उन्होंने कम उम्र में देखा तो वह लड़कियों की शिक्षा के लिये संघर्ष करने लगी जिसकी वजह से वह मरते मरते बची. उन्होंने आज भी अपनी लड़ाई को जारी रखें हुये है और अब वह उन इलाक़ों में जा रही है जहां लड़किया शिक्षा से वंचित है और उनकी कहानियों को दुनिया के सामने ला रही है.
उन्होंने इराक़ की एक यज़िदी लड़की नाजला की कहानी शेयर की जो पढ़ना चाहती थी लेकिन 14 बरस तक पहुंचने के बाद उसके परिवार ने उसकी शादी करने का फैसला किया. लेकिन वह अपने शादी के जोड़े में ही भाग गई. वह पढ़ाई को नही छोड़ना चाहती थी और न ही पत्रकार बनने के अपने सपने को. आज नाजला अपने कैंप से दूर हर रोज़ एक घंटे चल कर स्कूल जाती है. मलाला इस तरह की लड़कियों को अपनी प्रेरणा बताती है.
मलाला फंड
उन पर हुये हमले के बाद मलाला और उनके पिता ने मलाला फंड की स्थापनी की. इस फंड का मक़सद बच्चों को शिक्षा की तरफ प्रेरित करना और शिक्षा उपलब्ध कराना था. हमलें के बाद ठीक होने के बाद उन्होंने कहा कि यह उनकी दूसरी जिंदगी है और यह नई जिंदगी है. इस जिंदगी में वह शिक्षा के लिये काम करना चाहती है. और उन्होंने उसे अब भी जारी रखा है.
नोबल पीस प्राइज़ के दौरान उनकी स्पीच
10 दिसंबर, 2014 को उन्हें नोबल पीस प्राइज़ दिया गया. उस दिन अपनी स्पीच में उन्होंने न सिर्फ अपने बारे में कहा बल्कि दुनियाभर में फैली लड़कियों के बारे में भी कहा.
उन्होंने कहा, “मैं मलाला हूं. मैं उन 66 मीलियन लड़की में से हूं जो शिक्षा से वंचित है. और आज में अपनी आवाज़ नही उठा रही हूं. यह आवाज़ शिक्षा से वंचित हर एक लड़की की है.”
कम उम्र में लिखना शुरु किया
मलाला ने 11 साल की उम्र में अपना नाम ज़ाहिर न करते हुये बीबीसी उर्दू के लिये ब्लागिंग शुरु कर दी. वह बताती थी कि पाकिस्तान के स्वात में लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करना क्या है. इस के ज़रिये वह बताती थी कि कैसी कैसी मुश्किलों का सामना उन्होंने किया और किस तरह से उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने के लिये संघर्ष किया.
उनकी आलोचना करने वालों से वह नही डरी
उन पर आरोप लगे कि उन्होंने अपने लोगों को छोड़ दिया और पूरी तरह से पश्चिम देशों की बात को आगे बढ़ाया. इन आरोपों और आलोचनाओं के बीच मलाला किसी भी तरह से डरी नही. तमाम मुश्किलों का सामना उन्होंने डट कर किया. आज उनके अपने देश में भी लोग उनके योगदान को मान रहे है.