मिलिए पल्लवी सिंह से जो विदेशियों को हिंदी सिखाती हैं

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Swati Bundela
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मुंबई की रहने वे पल्लवी सिंह भारत में रहने वाले विदेशियों को हिंदी सिखाती है. उन्होंने शीदपीपल.टीवी से हिंदी में अपनी रूचि और पढ़ाने की टेक्निक्स के विषय में बात करी.


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पल्लवी ने इंजीनियरिंग और स्यकॉलॉजि में बैचलर्स करी हुई है. "मेरे पास फ्रेंच भाषा में डिप्लोमा और काउन्सलिंग एंड गाइडेंस में सर्टिफिकेट कोर्स भी है", कहती है पल्लवी सिंह.


१. क्या आप हमेशा से हिंदी के लिए उत्साहित रही है?


मैंने हिंदी भाषा का बचपन से आनंद उठाया है. मेरा घर में चम्पक, नंदन, बिल्लू, चाचा चौधरी और पिंकी जैसी कॉमिक्स पढ़ने के लिए आती थी.गर्मियों की छुट्टियों में मैं इन कॉमिक्स को एक ही दिन में पढ़ने का प्रयास करती थी. मुझे मेरे हिंदी पीरियड्स भी बहुत पसंद थे. जब बाकी बच्चे "जीरो-काँटा" खेलकर अपना समय बर्बाद करते थे, मैं बहुत रूचि के साथ कबीर के दोहे पढ़ती थी.


2. हिंदी पढ़ाने के ये आप किन किन टेक्निक्स का इस्तेमाल करती हैं?


मैं अपनी क्लासेस में हास्य का प्रयोग करती हूँ ताकि मेरे विद्यार्थियों को पढ़ने में आनंद आए. मेरे सभी विद्यार्थी वयस्क हैं जो अक्सर अपनी ही चिंताओं और मुद्दों से झूझ रहे होते हैं तो इसलिए मेरे लिए अनिवार्य है कि मैं इस तरीके से हिंदी पढ़ाऊँ जिससे क्लासेस उनके दिन का वो हिस्सा बन जाये जिसका वो दिन में इंतज़ार करते हो.


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मैं कोशिश करती हूँ की उनको हिंदी इस प्रकार सिखाऊ जिससे वह अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में उसका प्रयोग कर सके.


3. ग्लोब्लाइसेशन का भारतीय भाषाओँ पर बहुत ही गहरा असर पड़ रहा है, क्या आपको लगता है कि हिंदी की लोकप्रियता समय के साथ काम हो गयी है?


मुझे नही लगता कि हिंदी कि लोकप्रियता काम हुई है. वह थोड़ी जेनेटिकली मॉडिफाई हो गयी है. फसेबूक, व्हाट्सएप्प, स्नैपचैट, भारतीय इस्तेमाल करते हैं और यह सब हिंदी में ही होते हैं. यदि हम ब्रांड्स की बात करे तो वोह भी हिंदी में होती हैं जैसे "पेप्सी थी, पी गया". हिंदी मिल्लेनियल्स के इस्तेमाल के लिए थोड़ी बदल गयी है.


५. आपको किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? अपने उन्हें कैसे कब पाया?


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चुनौतियाँ थी और हमेशा रहेंगी. मुझे पता था की मुझे एक इम्युनिटी बनाने पड़ेगी ताकि मैं उन पर नियंत्रण रख सकु. जब मैंने शुरुआत की, मेरे परिवार और दोस्तों ने मेरे इस काम को गंभीरता से नही लिया. यदि मैं बिज़नस की बात करू तो मेरे भी अच्छे और बुरे क्लाइंट्स होते हैं. हमारे समाज में हिंदी अध्यापिका की एक "स्टीरियोटिपिकल छवि" है जिसका मैं पालन नही करती. इसलिए जब लोगों को मेरे विषय में पता चलता है तो वो काफी हैरान हो जाते हैं.


5. आप अपने काम और अपने जीवन के बीच संतुलन कैसे बनाकर रखती हैं?


मुझे अपना काम बहुत पसंद है इसलिए मुझे लगता है की मेरा काम ही मेरा जीवन है. मुझे अपने काम से संतुष्टि का आभास होता है. मैं उन खुशनसीब लोगों में से हूँ जिन्हें अपने काम में बहुत मज़ा आता है. पर मैं पढ़ाने के अलावा भी बहुत कुछ करती हूँ ताकि मेरे काम और जीवन में संतुलन बना रहे.


6. आप टेक्नोलॉजी का पढ़ाने में किस प्रकार इस्तेमाल करती हैं?


टेक्नोलॉजी मेरे पढ़ाने के ढंग में मदद करता है. मैंने ऑनलाइन फ्लैशकार्ड्स का डाटाबेस बनाया हुआ है जो मेरे विद्यार्थी अपने खाली समय में जिसका प्रयोग कर सकते हैं. "मैच-द-फोल्लोविंग", "गेस द वर्ड" गेम्स भी इसमें सहायक हैं.

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