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इलाहाबाद की इस युवा लड़की की आंखों में सपने थे और उन्हें यकीन था कि आकाश भी उनकी सीमा नहीं है। उन्होंने 1950 के दशक में महिलाओं पर लगाईं गई रूढ़िवादी भूमिकाओं पर सवाल उठाया, और एक ऐसे समाज में आगे बढ़कर दिखाया जहाँ अभी तक देश की पहली महिला कमर्शियल पायलट को नहीं देखा गया था ।
उन्होंने 1947 में इलाहाबाद फ्लाइंग क्लब से अपना कमर्शियल पायलट लाइसेंस प्राप्त किया। शुरुआत में उन्हें कमर्शियल एयरलाइनों से रिजेक्शन लेटर प्राप्त हुआ, क्योंकि वे महिला पायलटों को नियुक्त करके जोखिम नहीं उठाना चाहती थीं। उन्होंने पीछे हटने से इनकार कर दिया और जोर देकर कहा कि क्लब को पितृसत्तात्मक व्यवहार छोड़कर योग्यता के सिद्धांतों के लिए खड़ा होना चाहिए। लेकिन क्लब ने यह सब नहीं सुना और प्रेम माथुर को कुछ भी रोक न सका । उन्होंने कई एयरलाइनों को लिखा और उन्हें केवल यही प्रतिक्रिया मिली कि "महिलाएं पुरुषों के मुक़ाबले आपातकालीन स्थितियों को संभाल नहीं सकती हैं।" उनका बहाना था की यात्री कॉकपिट में महिला पायलट के साथ विमान में बैठने में सहज नहीं होंगे ।
माथुर ने डेक्कन एयरवेज के लिए उड़ान शुरू की। उन्होंने 1947 में अपना कमर्शियल पायलट लाइसेंस प्राप्त किया। 1949 में, उन्होंने नेशनल एयर रेस जीती।
द गर्ल हू वॉन्ट टू स्टार्स की किताब के रूप में, "प्रेम लगभग निराश हो गयी थी और घर छोड़ दिया था। लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें पता था कि पायलट बनने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है। ”
उन्हें हैदराबाद के निज़ाम की एयरलाइन डेक्कन एयरवेज से कॉल आयी। प्रेम को हवाई जहाज, तकनीकी और उपकरण और एयरलाइन भागों पर उद्धृत किया गया था। वहां उन्होंने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन दिखाया था। यह उनकी पहली नौकरी थी और प्रेम ने इसके साथ ही इतिहास रच दिया। डेक्कन एयरवेज में अपने करियर के दौरान, उन्होंने इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री और लेडी माउंटबेटन जैसे हाई-प्रोफाइल लोगों को आसमान की सैर करवाई।