Advertisment

मेरी कैंसर जर्नी- मेरा खुद से मिलन, कहती हैं पारुल बांका

author-image
Swati Bundela
New Update
'माय कैंसर जर्नी- अ रेनदेज़्वोउस विद माइसेल्फ'।
Advertisment


फिलहाल लंदन में रहने वाली पारुल अपनी कहानी बताने से ज़्यादा ये पुस्तक इसलिए लिखना चाहती थीं क्यूंकि वे समाज में कैंसर के बारे में अज्ञानता के कारण पैदा हुए कलंक के दर्दनाक रूप से परिचित थीं.
Advertisment

पढ़िए : मिलिए बोइंग ७७७ की सबसे युवा महिला कमांडर ऐनी दिव्या से



Advertisment

वह कैंसर के इतनी तेज़ी से फैलने और उसके अर्ली डायग्नोसिस से उससे बचने के अवसरों के बारे में जागरूकता फैलाना चाहती थीं।


वह कहती हैं, "कैंसर एक ऐसी स्थिति है जो डर, निराशा, दर्द और मृत्यु का प्रतीक है। दुर्भाग्य से, कैंसर की घटनाएं बहुत ज़्यादा बढ़ रही हैं। कैंसर रिसर्च यू.के. ने फोरकास्ट किया है कि यू.के. में दो लोगों में से एक व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी कैंसर होगा। यह डेटा परेशान कर देने वाला है और इसका अर्ली डायग्नोसिस इससे जीत पाने में हमें कामयाबी दिला सकता है। कैंसर और उसके इफेक्ट्स के बारे में जागरूकता लोगों को किसी भी प्रकार के लक्षण नज़र आने पर जल्दी से जल्दी डॉक्टर को दिखाने के लिए प्रेरित करेगी।"
Advertisment

पारुल जो कि एक पर्सनल ट्रांसफॉर्मेशन और बिज़नेस कोच के रूप में काम करती हैं कहती हैं कि कैंसर के बाद खुद का पुनर्निर्माण उनके लिए फिर से चलना सीखने के बराबर था। उनका शरीर बदल गया है मगर वे अभी तक उसके शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म इफेक्ट्स से गुज़र रही हैं।


फिर से सामान्य ढंग से ज़िन्दगी में एडजस्ट होना उनके लिए एक 'मैसिव रीडिस्कवरी प्रोजेक्ट' के समान था मगर वो ज़िन्दगी को गले लगाने के लिए हमेशा ही उत्साहित रही हैं और जो काम वो करना चाहती हैं उसे करने के लिए अत्यंत उत्साहित रही हैं।
Advertisment

"ज़िन्दगी अचानक से इतनी छोटी और अनिश्चित नज़र आने लगी थी। और शायद इसीलिए कोच की ये ज़िम्मेदारी कुछ सार्थक समझ आ रही थी... अब मैं लोगों को कोचिंग के ज़रिये खुद का एक बेहतर रूप बनने के लिए मदद करती हूँ। मैं लंदन में मेजर कैंसर चैरिटी के लिए एक स्पीकर के रूप में वॉलंटीरिंग भी करती हूँ और उन्हें कैंसर के रोगियों और उनकी देखभाल करने वालों के लिए बड़ी मात्रा में धन जुटाने में सहायता करती हूँ।"

कैंसर पारुल के लिए एक बड़े रहस्य के खुलने जैसा रहा है, प्यार करने वाले परिवार और दोस्तों से घिरी हुई पारुल को ये एहसास हुआ कि जीवन में चुनाव उन्ही को करना था: धारणा के बदले दया, निराशा के बदले आशा, एहसानमंद होना और कैंसर की अनिश्चित परिस्थितियों के बावजूद ज़िन्दगी को पूरी तरह से जीना।
Advertisment

कैंसर से जूझ रही महिलाओं के लिए उनकी सलाह यही है कि वे हिम्मत न हारें चाहे जो हो जाए.


"कैंसर एक लंबी जर्नी है और इसमें बहुत धैर्य से काम लेने की आवश्यकता है। अक्सर ऐसे दिन होंगे जब आपको लगेगा कि इस संघर्ष और दर्द का कोई अंत नहीं है; ऐसे दिनों में, धैर्य रखना महत्वपूर्ण है। जब आप इससे जीत कर आएंगे तो ये मेहनत, संघर्ष और हिम्मत आपको फलदायक लगेगा।"
Advertisment

पढ़िए : ज़बरदस्ती की शादी के खिलाफ रेखा कालिंदी की लड़ाई


 

 
महिला सशक्तिकरण Parul Banka कैंसर जर्नी पारुल बांका
Advertisment