New Update
वे दिन और रात मेहनत कर रही हैं, अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकल रही हैं. दिलचस्प बात यह है कि उनमें से कुछ महिलाएँ तो माएँ हैं, जो अपने मातृत्व के साथ अपने ज्ञान और मेहनत को भरपूर प्रयोग में लाकर ये सुनिश्चित कर रही हैं की ये दोनों ही उन्नति कर सकें। लेकिन ये महिलाएँ वर्क-लाइफ बैलेंस कैसे प्राप्त कर पाती हैं? अपने काम के लिए उनके इस जुनून का रहस्य क्या है? आइये पता लगाएं…
बेंगलुरु स्थित मोबाइल गेमिंग स्टार्टअप मैक मोचा की फाउंडर अर्पिता कपूर कहती हैं-:
"मैं खाना बनाती हूँ और मेरे पास एक कुत्ता भी है! ये दोनों चीज़ें मुझे डी-स्ट्रेस करने में मदद करती हैं। मैं घर वापस जाकर खाना बनाती हूँ जब भी मेरा दिन कठिन और तनावपूर्ण गुज़रा होता है। योडा - मेरा कुत्ता हमेशा मेरे ऑफिस में होता है, हर दिन मुझे और बाकी सबको उत्साहित करता है!"
पढ़िए भारत के शिक्षा प्रणाली को बेहतर कर रही हैं नबीला काज़मी
दीपाली व्यास- ग्लोबल मार्केट्स और हेज फंड्स प्रैक्टिस, हेड्रिक एंड स्ट्रगल्सकी हेड हमें बताती हैं-:
"मैं झूठ नहीं बोलूंगी - यह हासिल करना बहुत कठिन है; हालांकि, वीकेंड पूरी तरह से अपने लिए और परिवार को समर्पित रहता है। मैं अपने फोन या ई-मेल को नहीं देखती हूँ और यह सुनिश्चित करती हूँ कि मैं अपने काम और पर्सनल लाइफ के बीच एक समान संतुलन बना सकूँ।"
बेंगलुरू में एक क्रिएटिव राइटिंग फर्म आउट ओ बॉक्स की फाउंडर, चार्मैन रथीश कहती हैं-:
"जीवन पर संतुलन बनाये रखने पर मेरा विचार है कि हर बार बहुत सारा काम करके आपको कुछ नया करना चाहिए : पार्क में सैर, सिनेमा, किताबें और संगीत। मुझे नहीं लगता कि कार्य-जीवन संतुलन बनाए रखने के लिए कोई परिभाषित ढंग होता है क्योंकि प्रत्येक कामकाजी व्यक्ति का नज़रिया अलग होता है।"
पढ़िए : मिलिए पल्लवी सिंह से जो विदेशियों को हिंदी सिखाती हैं
पल्लवी सिंह, जो विदेशियों को हिंदी सिखाती हैं, कहती हैं-:
"मुझे मेरा काम पसंद है, इसलिए मुझे लगता है कि मेरा काम ही मेरा जीवन है। दोस्त मुझे "वर्कहॉलिक" कहते हैं लेकिन मुझे लगता है कि मैं उन कुछ भाग्यशाली लोगों में से हूँ जो अपने काम को पसंद करते हैं और उसका आनंद लेते हैं। मैं सोशलाइज़ भी करती हूँ। मैं लगातार इवेंट्स में भाग लेने की कोशिश करती हूँ और पढ़ाने के अलावा और चीज़ें भी करती हूँ जिससे की एक संतुलन बना रहे।"
प्रीती शेनॉय, बेस्ट-सेलिंग लेखिका कहती हैं-:
"यदि आप पैशनेट हैं तो आप समय निकालेंगे। मेरे कुछ नियम हैं और मैंने कुछ सीमाएं निर्धारित की हैं। उदाहरण के लिए, मेरे पास एक बोर्ड है जो मैं अपने कमरे के दरवाज़े पर लगाती हूँ, जो कहता है 'वर्किंग, क्रिएटिंग, स्कैचिंग', और इससे मेरे बच्चों को पता होता है कि कब मुझे डिस्टर्ब नहीं करना है। वह ये भी कहती हैं कि उनका ऑफिस उनके दिमाग में है इसलिए उनके लिए मैनेज करना आसान हो जाता है।
यह महिलाएं अधिक महिलाओं को वो करने के लिए प्रेरित कर रही हैं जो वे करना चाहती हैं। और कमाल की बात ये है कि वे ये जानती हैं कि अपने काम को प्रभावित किये बिना जीवन का आनंद कैसे उठाया जाता है।
पढ़िए : जानिए कैसे फिटनेस को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर खुश रहने लगी राशि मल्होत्रा