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रेखा
रेखा कालिंदी का जन्म कोलकाता से 100 मील की दूरी पर बंगाल के एक गाँव में हुआ था। जबसे उसकी कहानी के बारे में पता लगा है, उसके बाद से वो पुरे देश को इस बारे में अवगत कराने के लिए यात्रा कर चुकी है और उसका इंटरनेशनल प्रोफ़ाइल आसमान छू रहा है। वह भारत के राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित हैं। हमने इस किताब को लिखने के लिए उनकी प्रेरणा और बाल विवाह के बारे में उनके विचार जानने के लिए इस पुस्तक के लेखक से बातचीत की। वरुण वज़ीर के इंटरव्यू से कुछ अंश:
मेरे माता-पिता ग्यारह वर्ष की आयु में ही मेरी शादी कराना चाहते थे जबकि मैंने ठान लिया था कि मैं ऐसा नहीं करुँगी। मैंने अपनी बहन की शादी ग्यारह वर्ष की आयु में होते देखा है। मैंने देखा है कि उसे शिशु जन्म के दौरान कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उसके बच्चे कुछ महीनों या वर्षों से ज्यादा जीवित नहीं रह पाए। मैं उस रास्ते पर नहीं चलना चाहती थी। मैंने स्कूल में अपने टीचर से बात की और विशेष रूप से उनमें से एक ने मेरी सहायता की। वह मेरे माता-पिता से मिलने मेरे घर आए और उन्होंने मेरे माता-पिता को समझाया कि मुझे इतनी कम उम्र में शादी क्यों नहीं करनी चाहिए। मेरे दोस्त भी मेरे साथ खड़े रहे। वो मेरे लिए काफी मुश्किल समय था, लेकिन मुझे खुशी है कि मैंने यह फैसला किया।
अपनी कहानी मेरे जैसी और अधिक लड़कियों तक पहुंचाने के लिए, जिससे की वे भी 'ना' कहने की हिम्मत जुटा सकें और जीवन में मिलने वाली अन्य संभावनाओं और अवसरों का लाभ उठा सकें।
पढ़िए : सिटी स्टोरी, एक वेबसाइट जो शहरों और उनके लोगों को करीब लाती है
हां, मझे विश्वास है। बल्कि मुझे तो लगता है कि समाज में इसके द्वारा अभी से फर्क पड़ रहा है। मैंने सुना है कि टीचर्स अपनी छात्राओं को मेरी तरह मज़बूत होकर अपने लिए स्टैंड लेने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। युवा लड़कियाँ मुझे इस किताब के लिए बधाई देते हुए सराहती हैं कि मैंने अपने परिवार और समाज के खिलाफ बाल विवाह को अस्वीकार किया।
युवा लड़कियों के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम्स और ग्रुप मीटिंग्स होनी चाहिए जहाँ इस मुद्दे पर चर्चा की जा सके। स्कूलों में टीचर्स को अर्ली मैरिज के नुकसान के बारे में लड़कियों को शिक्षित करना चाहिए और इसके खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देनी चाहिए। माता-पिता को जागरूक करने की आवश्यकता है क्योंकि अक्सर वहीँ से लड़कियों पर दबाव आता है।
अपने अधिकारों के लिए खड़े हो और खुद पर विश्वास करना सीखो। उन्हें अपने माता-पिता और बुजुर्गों को समझाना चाहिए कि उन्हें शिक्षित होकर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए, और फिर विवाह के बारे में सोचना चाहिए।
हाँ बिलकुल। यदि परिवार अपने बच्चों को काम पर भेजते हैं, तो इसका कारण यह है कि जिन कठिनाइयों से वे गुज़र रहे हैं वे इतनी ज़्यादा हैं कि यही एक रास्ता बचता है। सरकार को इस तरह के परिवारों की मदद करनी चाहिए। सोसाइटी से इस बुराई को जड़ से निकालने की जरूरत है।
महिलाओं को वो सम्मान नहीं मिल रहा है जिसकी वे हकदार हैं लेकिन कभी-कभी लडकियां खुद ही पढ़ाई नहीं करना चाहती हैं और खुद के लिए एक दुर्भाग्यशाली जीवन बनाती हैं।
सोसाइटी के दबाव से दबना नहीं है। लड़कर देखो और आपको वो सारा समर्थन मिलेगा जो आपको चाहिए। खुद को शिक्षित करें, नौकरी हासिल करने की कोशिश करें और स्वतंत्र बनें।
कालिंदी की कहानी है जिसने इतनी छोटी उम्र में शादी करने से इंकार करके आगे पढ़ाई करने के अधिकार के लिए लड़ाई की।रेखा कालिंदी का जन्म कोलकाता से 100 मील की दूरी पर बंगाल के एक गाँव में हुआ था। जबसे उसकी कहानी के बारे में पता लगा है, उसके बाद से वो पुरे देश को इस बारे में अवगत कराने के लिए यात्रा कर चुकी है और उसका इंटरनेशनल प्रोफ़ाइल आसमान छू रहा है। वह भारत के राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित हैं। हमने इस किताब को लिखने के लिए उनकी प्रेरणा और बाल विवाह के बारे में उनके विचार जानने के लिए इस पुस्तक के लेखक से बातचीत की। वरुण वज़ीर के इंटरव्यू से कुछ अंश:
बाल विवाह के खिलाफ अपने संघर्ष के बारे में हमें कुछ बताएं। ये लड़ाई आपने कैसे लड़ी?
मेरे माता-पिता ग्यारह वर्ष की आयु में ही मेरी शादी कराना चाहते थे जबकि मैंने ठान लिया था कि मैं ऐसा नहीं करुँगी। मैंने अपनी बहन की शादी ग्यारह वर्ष की आयु में होते देखा है। मैंने देखा है कि उसे शिशु जन्म के दौरान कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उसके बच्चे कुछ महीनों या वर्षों से ज्यादा जीवित नहीं रह पाए। मैं उस रास्ते पर नहीं चलना चाहती थी। मैंने स्कूल में अपने टीचर से बात की और विशेष रूप से उनमें से एक ने मेरी सहायता की। वह मेरे माता-पिता से मिलने मेरे घर आए और उन्होंने मेरे माता-पिता को समझाया कि मुझे इतनी कम उम्र में शादी क्यों नहीं करनी चाहिए। मेरे दोस्त भी मेरे साथ खड़े रहे। वो मेरे लिए काफी मुश्किल समय था, लेकिन मुझे खुशी है कि मैंने यह फैसला किया।
इस पुस्तक को लिखने के पीछे आपकी प्रेरणा क्या थी?
अपनी कहानी मेरे जैसी और अधिक लड़कियों तक पहुंचाने के लिए, जिससे की वे भी 'ना' कहने की हिम्मत जुटा सकें और जीवन में मिलने वाली अन्य संभावनाओं और अवसरों का लाभ उठा सकें।
पढ़िए : सिटी स्टोरी, एक वेबसाइट जो शहरों और उनके लोगों को करीब लाती है
क्या आपको लगता है कि यह पुस्तक भारत में बाल विवाह को कम करने में मदद करेगी?
हां, मझे विश्वास है। बल्कि मुझे तो लगता है कि समाज में इसके द्वारा अभी से फर्क पड़ रहा है। मैंने सुना है कि टीचर्स अपनी छात्राओं को मेरी तरह मज़बूत होकर अपने लिए स्टैंड लेने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। युवा लड़कियाँ मुझे इस किताब के लिए बधाई देते हुए सराहती हैं कि मैंने अपने परिवार और समाज के खिलाफ बाल विवाह को अस्वीकार किया।
खुद को शिक्षित करें, नौकरी हासिल करने की कोशिश करें और स्वतंत्र बनें।
बाल विवाह को रोकने और अधिक जागरूकता पैदा करने के लिए आपके अनुसार क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
युवा लड़कियों के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम्स और ग्रुप मीटिंग्स होनी चाहिए जहाँ इस मुद्दे पर चर्चा की जा सके। स्कूलों में टीचर्स को अर्ली मैरिज के नुकसान के बारे में लड़कियों को शिक्षित करना चाहिए और इसके खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देनी चाहिए। माता-पिता को जागरूक करने की आवश्यकता है क्योंकि अक्सर वहीँ से लड़कियों पर दबाव आता है।
जिन महिलाओं को विभिन्न स्तरों पर दबाया जाता है, उनको आप क्या सन्देश देना चाहेंगी?
अपने अधिकारों के लिए खड़े हो और खुद पर विश्वास करना सीखो। उन्हें अपने माता-पिता और बुजुर्गों को समझाना चाहिए कि उन्हें शिक्षित होकर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए, और फिर विवाह के बारे में सोचना चाहिए।
पढ़िए : “इनोवेशन एन्त्रेप्रेंयूर्शिप का दिल है” – सुरभि देवरा
क्या आपको लगता है कि बाल श्रम भी ऐसा ही एक मुद्दा है जिसे उतनी ही एहमियत और आवाज़ मिलनी चाहिए जितनी की बाल विवाह को?
हाँ बिलकुल। यदि परिवार अपने बच्चों को काम पर भेजते हैं, तो इसका कारण यह है कि जिन कठिनाइयों से वे गुज़र रहे हैं वे इतनी ज़्यादा हैं कि यही एक रास्ता बचता है। सरकार को इस तरह के परिवारों की मदद करनी चाहिए। सोसाइटी से इस बुराई को जड़ से निकालने की जरूरत है।
हमारे समाज में महिलाओं को जिस तरह से देखा जाता है उसपर आपका क्या विचार है?
महिलाओं को वो सम्मान नहीं मिल रहा है जिसकी वे हकदार हैं लेकिन कभी-कभी लडकियां खुद ही पढ़ाई नहीं करना चाहती हैं और खुद के लिए एक दुर्भाग्यशाली जीवन बनाती हैं।
आप सभी युवा लड़कियों को कौनसी सलाह देना चाहेंगी?
सोसाइटी के दबाव से दबना नहीं है। लड़कर देखो और आपको वो सारा समर्थन मिलेगा जो आपको चाहिए। खुद को शिक्षित करें, नौकरी हासिल करने की कोशिश करें और स्वतंत्र बनें।