5 Rituals I Dislike as a Girl: भारत एक ऐसा देश है जहां सदियों पुरानी परंपराएं और रस्में हमारे सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करती हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रहीं ये परंपराएं न सिर्फ हमारे इतिहास की बानगी हैं बल्कि सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा भी हैं। मगर समय एक नदी की तरह है जो लगातार बहता रहता है और अपने साथ बदलाव लाता है।
आज 21वीं सदी में हम एक ऐसे दौर में हैं जहां महिलाएं शिक्षा, करियर और आर्थिक आजादी के मामले में पुरुषों के बराबर कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। हमारी सोच पहले से ज्यादा खुली और प्रगतिशील हो रही है। ऐसे में जरूरी है कि हम अपनी परंपराओं को भी इस बदलते हुए समाज के साथ तालमेल बिठाएं।
आज मैं आप सभी के सामने कुछ ऐसी रस्मों की बात करना चाहती हूं, जिन्हें एक लड़की के तौर पर मैं अब सही नहीं मानती। ये रस्में न सिर्फ महिलाओं के साथ भेदभाव करती हैं बल्कि उन्हें कमतर आंकने का भी कारण बनती हैं। आइए, इन रस्मों पर गौर करें और सोचें कि क्या वाकई ये हमारे आधुनिक समाज में फिट बैठती हैं?
5 रस्में जो लड़कियों को पसंद नहीं! जानें जरूरी है या बदलने का वक्त?
1. कन्यादान
कन्यादान का शाब्दिक अर्थ है "कन्या का दान"। इस रस्म में पिता अपनी बेटी को दूल्हे के परिवार को सौंप देता है। ये इस धारणा को मजबूत करता है कि एक महिला अपने पिता की संपत्ति है, जिसे शादी के बाद दूल्हे के परिवार को सौंप दिया जाता है।
मुझे लगता है कि विवाह दो समान व्यक्तियों का मिलन होना चाहिए, न कि किसी का दान।
2. सिर्फ लड़कियों की शादी के लिए भारी खर्च
शादियों में होने वाला भारी खर्च अक्सर लड़की के माता-पिता की जिम्मेदारी मानी जाती है। दहेज प्रथा को खत्म करने की बातें तो चलती हैं, लेकिन लड़की के घर को शादी में ज्यादा खर्च उठाना पड़ता है, ये भी एक तरह का बोझ ही है।
शादी में होने वाला खर्च दोनों परिवारों को मिलकर उठाना चाहिए।
3. सिर्फ महिलाओं के लिए सख्त सामाजिक नियम
समाज में अक्सर लड़कियों को घूमने-फिरने, देर रात बाहर निकलने और कपड़े पहनने की आजादी को लेकर पाबंदियां लगाई जाती हैं।
लड़कों और लड़कियों को समान स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
4. विधवाओं के लिए सख्त नियम
हमारे समाज में विधवाओं को कई तरह के सामाजिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। उन्हें रंगीन कपड़े पहनने, खुश रहने और दोबारा शादी करने की मनाही होती है। ये रूढ़िवादी विचार अब बदलने चाहिएँ।
हर किसी को खुश रहने और फिर से जीवन शुरू करने का अधिकार है।
5. बेटे की चाह
भारतीय समाज में बेटे को ज्यादा महत्व दिया जाता है। ये असमानता भ्रूण हत्या और लिंग परीक्षण जैसी जघन्य घटनाओं को जन्म देती है।
लड़कियां भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।
ये सिर्फ कुछ रस्में हैं जिन्हें मैं एक लड़की के रूप में पसंद नहीं करती। मेरा मानना है कि हमें अपनी परंपराओं को बनाए रखना चाहिए, लेकिन साथ ही साथ समय के साथ विकास भी करना चाहिए। हमें उन रस्मों को खत्म करना चाहिए जो लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती हैं।
आपको क्या लगता है? क्या आप इन रस्मों से सहमत हैं? अपने विचार कमेंट्स में ज़रूर लिखें।