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Stereotyping In Marketing: क्या एड्स स्टीरियोटाइप को बढ़ावा दे रहे हैं?

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Monika Pundir
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हमारे समाज में स्टीरियोटाइपिंग को एक समस्या माना जा सकता है, क्योंकि जो लोग उस स्टीरियोटाइप से अलग कुछ करते हैं, उनका मज़ाक उड़ाया जाता है, सेलेब्रिटी को ट्रोल किया जाता है, और कभी कभी तो ‘ख़राब’ या ‘करैक्टरलेस’ होने का टैग लग जाता है। मीडिया स्टेरोटाइप फ़ैलाने का काम करता है। मूवीज और सेरिअल्स में तो हम देखते ही हैं की लीड कैरेक्टर ट्रेडिशनल कपडे (सारी, सलवार कमीज) और विलेन वेस्टर्न कपडे (जीन्स, स्कर्ट) पहनती है। 

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क्या हमने कभी सोचा की यह स्टीरियोटाइपिंग कम्पनीज अपनी मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग में भी इस्तेमाल करते हैं?

आइये देखते हैं कैसे

1. घरेलू प्रोडक्ट्स हमेशा औरतों को मार्केट की जाती है

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 चाहे बात बर्तन धोने वाले साबुन की हो या कपड़े धोने वाले डिटर्जेंट, एड फिल्म में लगभग हमेशा औरत को काम करते हुए दिखाया जाता है, और महिला अभिनेत्री ही औरतों के लिए प्रोडक्ट्स को मार्किट करती है। इन एड्स में “माँ की नंबर वन चॉइस” जैसे शब्दों का प्रयोग होता है। अगर बच्चे के कपडे गंदे हो जाए तो साफ़ करने के लिए मुश्किल माँ को, यानि औरत को होती है। ऐसा क्यों?

2. किचन के प्रोडक्ट्स औरतों को मार्किट की जाती है

“इंडियन वुमन का मैच सिर्फ कैच”, “जो बीवी से करे प्यार, प्रेस्टीज को कैसे करे इंकार” और “टेस्ट में बेस्ट, मम्मी और एवरेस्ट”, तीनो टैगलाइंस में मसाले और प्रेशर कुकर, यानी खाना पकाने के चीज़े औरतों को मार्किट की जा रही है। पर ऐसा क्यों? केवल ‘वुमन’ को मसाले की ज़रूरत पड़ती है? केवल ‘बीवी’ खाना बनाती है? केवल ‘मम्मी’ अच्छा खाना बना सकती है? और सबसे ज़रूरी बात, क्या औरत खुद कूकर नहीं खरीद सकती? विकास खन्ना और संजीव कपूर जैसे शेफ का क्या? वे भी तो खाना ही पकाते हैं न। तो एड्स और मार्केटिंग टैगलाइंस में केवल औरत का नाम क्यों?

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3. गाड़ी और बाइक हमेशा पुरुषों को मार्किट की जाती हैं 

लगभग सारे गाड़ी और बाइक के एड में अभिनेता आदमी के ओर गाड़ी को मार्केट करते हैं। एड फिल्म में आदमी गाड़ी या बाइक चलता है। यहाँ तक की गाड़ी के इन्शुरन्स या कार रीसेल वाले एप या वेबसाइट में भी आदमी के ओर मार्केटिंग होती है। हलाकि असल दुनिया में काफी औरतें गाड़ी चलाती हैं, एड्स ने उस स्टीरिओटाइप को कायम रखा है की मर्द को गाड़ी चलने जैसे मर्दाने काम करने चाहिए। हो सकता है की खयाल यह है की गाड़ी खरीदने के फैसले पति या पिता लेता है, लेकिन सच तो यह है की फिजिक्स जानने वाला कोई भी इन बातों को समझ सकता है।

4. इन्शुरन्स और बैंकिंग से रिलेटेड एड्स पुरुष के लिए    

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इन्शुरन्स और बैंकिंग स्कीम के एड्स में पुरुष को कहा जाता है की अपने परिवार का भविष्य सुरक्षित करें। क्या सारे आदमी कमाते हैं? क्या आदमी को हॉउस हस्बैंड होने का हक़ नहीं? क्या औरत कमा नहीं सकती? क्या औरत का ज़िम्मेदारी नहीं है की वह भी अपने परिवार के भविष्य के बारे में सोचे? क्या औरत को अपने कमाए पैसे निवेश(इन्वेस्ट) नहीं करने चाहिए? क्या एड बनाने वाले सोचते हैं कि औरत अगर कमेटी भी है तो वह अपने जीवन के पुरुष से पूछ कर निवेश करेगी?

अगर मीडिया स्टीरियोटाइप को बढ़ावा दे सकती है तो बदलाव को भी बढ़ावा दे सकती है। 

  • अरियल के  ‘शेयर द लोड’ (जिसमें पिता अपनी बेटी को काम और घर को संभालते हुए स्ट्रगल करते हुए देख, अपने पत्नी के कंधो पर घर छोड़ देने की बात याद अति है, और वे बदलने की कोशिश करते हैं-कपड़े धोने से शुरुआत करके)
  • टाइटन का ‘हर लाइफ हेर चॉइस’(जिसमें तलाकशुदा पति पत्नी बहुत दिन बाद मिलते हैं और पति कहते हैं की पत्नी अगर काम छोड़ देती तो उनका शादी बच जाता, जिसपर पत्नी कहती है वह भी ऐसा ही कह सकती है),
  • एयरटेल बोस’ (जिसमें पत्नी पति की बॉस है) 

जैसे एड कैंपेन ने इस बदलाव की शुरुआत की है।

एड्स
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