ओपिनियन : अभी भी हमारे समाज में महिलाएं पूरी तरह से आज़ाद नहीं हुई हैं। आए-दिन महिलाओं या बच्चियों पर कई तरह के आक्षेप लगाए जा रहे हैं। ऐसा इसलिए भी है कि समाज अभी तक पूरी तरह बदला नहीं है। समाज का एक बड़ा तबका अभी भी पुरानी सोच और परंपराओं पर जी रहा है जिसे बदलना हम सबका काम है। एक अच्छा समाज तभी बन सकेगा जब महिलाएं और पुरुष दोनों कंधे से कंधा मिलाकर इस कोशिश में आगे आएंगे।
अभी भी हम देखते हैं कि महिलाओं या छोटी-छोटी बच्चियों में कपड़े पहनने तक की आज़ादी नहीं दी जाती। सुदूर इलाक़ों या कुछ ऐसे समाज में जहां शिक्षा-व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है, वहां आज भी महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में अपने आपको ढालने पर मजबूर हैं। यही कारण है कि पलायन बढ़ रहा है। जब महिलाएं दूसरे शहर या बड़े शहरों में जा रही हैं, तो वे ज़्यादा अच्छे से अपने कपड़ों का चुनाव कर पा रही हैं। उन्हें एक अलग ही आज़ादी महसूस हो रही है।
आज भी महिलाएं या लड़कियां किसी लड़के से बात करती हैं तो सबसे पहला विचार समाज में यही आता है कि वह उनका या उसका बॉयफ़ेंड होगा। इसी के चलते कितनी बार माता-पिता अपनी बच्चियों को लड़कों से बात करने पर टोक देते हैं या शक की निग़ाह से देखते हैं। उन्हें डर लगता है कि आगे जाकर यह बात कहीं शादी में अड़चन न पैदा करे। ज़रूरी है माता-पिता अपनी पुरानी सोच छोड़ें। वे बच्चों के साथ आगे बढ़ें कि समाज बदल रहा है, उनका बच्चा भी बदल रहा है।
महिलाओं को अभी भी पैसा कमाने का अधिकार नहीं दिया गया है। उन्हें अभी भी घर के काम संभालने जैसी ज़िम्मेदारी दी जाती है। जो महिलाएं कमा रही हैं, उन्हें डबल काम करना पड़ रहा है। वे घर भी संभाल रही हैं और नौकरी भी। ऐसे में दो तरफ़ा दवाब कई मानसिक परेशानियां पैदा कर रहा है। ज़रूरी है समाज या परिवार इस बात को समझे और स्त्री-पुरुष दोनों को ही समान काम करने का अधिकार दे। वर्ल्ड बैंक की जून 2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पितृसत्तात्मक दवाब और संरचनात्मक बाधाओं के चलते फिर से महिलाओं की आर्थिक भागीदारी कम हो रही है।
जो महिलाएं शिक्षित या आगे बढ़ गई हैं उन्हें किसी राय की ज़रूरत नहीं होती। वह ख़ुद स्वावलंबी हो रही हैं। शिक्षित महिलाएं, नौकरीपेशा युवतियां, फ़िल्मी सितारे जैसी स्वावलंबी महिलाएं अपने विषय पर सकारात्मक बात रखती नज़र आ सकती हैं, पर उनका क्या जो अभी भी घर-परिवार से बंधी हैं? एक बड़ा समाज आज भी अशिक्षित है। उसे इस तरह की टोका-बाज़ी से दबाया जा रहा है। जब घर से ही महिलाओं को शिक्षा नहीं मिलेगी तब वह कैसे अपने को आगे बढ़ा सकेंगी। ज़रूरी है इस बात पर ग़ौर करना। महज़ सरकारी योजनाएं ही बेड़ा पार नहीं लगा सकतीं।
ऐसे ही एक और विषय जो महिलाओं से जुड़ा सामने आता है, वह है बाहर जाने की आज़ादी। रात हो या दिन महिलाओं को अभी भी अकेले बाहर जाने से रोका जाता है। रात को यह ख़ासतौर से बढ़ जाता है। इस बात का अर्थ गांव या शहर से जुड़ा नहीं है, बल्कि सामाजिक माहौल से जुड़ा है। समाज का माहौल अभी भी इस तरह का है कि संभ्रांत वर्ग भी अपनी महिलाओं को बाहर जाने से रोक रहा है। ये ठीक है कि रात का माहौल सही नहीं है, पर यह महिलाओं तक ही क्यों सीमित है? सवाल इस ओर है। समाज ऐसा हो जहां पुरुष औऱ महिला दोनों समान स्तर पर चल सकें।
सरकार की सुकन्या समृद्धि योजना सहित बहुत-सी सरकारी योजनाएं हैं जो महिलाओं और कन्याओं से जुड़ीं हैं पर इनके ज़मीनी स्तर पर क्या परिणाम हैं, इस पर ग़ौर करना है। ये देखना है कि धन की वर्षा कर देने से समाज नहीं बदलेगा।। ज़रूरी है इसका सही पालन। दाख़िला दे दिया है, पर क्या कक्षाएं सही तरह हो रही हैं, क्या क्लास में टीचर्स आ रहे हैं, शिक्षण व्यवस्था कैसी है, शौचालय कैसे हैं, इस पर भी ग़ौर किया जाए।
इस तरह समाज में बहुत से मुद्दे और बातें हैं जो बस महिलाओं पर ही केंद्रित हैं या उन्हें ही सुननी पड़ती हैं। समाज में बदलाव लाने के लिए ज़रूरी है स्त्रियों के साथ पुरुष भी आगे आएं। ये समाज स्त्री और पुरुष दोनों के लिए बना है, इसमें दोनों को समान रूप से जीने का अधिकार है। ऐसे में केवल एक के लिए ही सेवाएं और माहौल अन्याय से बढ़कर और कुछ नहीं। ज़रूरी है समाज की सोच बदले। जब परिवार शैक्षिक और आर्थिक तौर पर संपन्न होगा तभी बदलाव आएंगे। तभी समाज बदल सकता है।