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हमारे समाज में एक लड़की का बचपन किसी लड़के से बहुत अलग होता है। जब वह छोटी होती है, तभी से उसे कुछ खास बातें सिखाई जाती हैं "धीरे बोलो," "ज्यादा मत हंसो," "रात को बाहर मत निकलो," "तुम्हें समझौता करना सीखना होगा।" ये बातें इतनी आम हैं कि हम शायद कभी इन पर सवाल ही नहीं उठाते। हमें लगता है कि यह तो सामान्य है, हर लड़की को यही सिखाया जाता है। लेकिन क्या यह सब सही है? क्या ये बातें लड़कियों की भलाई के लिए होती हैं, या फिर ये सिर्फ उन्हें एक तय दायरे में रखने के लिए कही जाती हैं?
समाज में लड़कियों को बचपन से ही यह समझा दिया जाता है कि उनकी पहचान, उनकी आज़ादी, यहां तक कि उनके सपने भी कुछ सीमाओं के भीतर ही होने चाहिए। अगर कोई लड़की इन सीमाओं को पार करने की कोशिश करे, तो उसे ‘बुरी लड़की’ का तमगा दे दिया जाता है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन सिखाई गई बातों का उनके जीवन पर क्या असर पड़ता है? क्या ये सच में उनके लिए सही हैं, या फिर ये सिर्फ उन्हें कमजोर और डरपोक बनाने का तरीका है?
जो बातें लड़कियों को बचपन से सिखाई जाती हैं, वो असल में कितनी गलत हैं?
1. "अच्छी लड़कियां ऊंची आवाज़ में नहीं बोलतीं"
अगर लड़की थोड़ी तेज़ बोल दे, तो तुरंत टोक दिया जाता है "लड़कियों को इतना ऊंचा नहीं बोलना चाहिए!" लेकिन वही लड़का अगर ज़ोर से बोले, तो उसे 'दमदार' कहा जाता है। क्यों? आवाज़ सिर्फ सही और गलत हो सकती है, उसमें लड़का-लड़की का भेद कहां से आया?
2. "घर के काम सीख लो, ससुराल में काम आएगा"
बचपन से बेटियों को घर के काम सिखाने पर ज़ोर दिया जाता है, लेकिन बेटों को नहीं। क्यों? खाना बनाना, सफाई करना, अपने कपड़े धोना ये ज़रूरी स्किल्स हैं, जो हर किसी को आनी चाहिए। फिर इसे सिर्फ लड़कियों की ज़िम्मेदारी क्यों बना दिया जाता है?
3. "लड़कियों को सब सहना पड़ता है"
अगर किसी ने कुछ गलत कह दिया, तो चुप रहो। अगर कोई ताने मार रहा है, तो अनदेखा करो। अगर ससुराल में कुछ दिक्कत हो, तो भी एडजस्ट करो। ये ‘सहनशीलता’ लड़कियों की खासियत नहीं, बल्कि उन्हें कमजोर बनाने का तरीका है। गलत चीज़ों को सहना किसी भी हाल में सही नहीं हो सकता।
4. "बेटी की शादी अच्छे घर में होनी चाहिए"
लड़की पढ़ाई में अच्छी हो, करियर बना रही हो परिवार की सबसे बड़ी चिंता फिर भी शादी ही रहती है। क्यों? क्या शादी ही उसका आखिरी लक्ष्य होना चाहिए? क्यों नहीं हम पहले ये सोचते कि वो अपने पैरों पर खड़ी हो, अपने फैसले खुद ले और अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जिए?
5. "लड़की की इज्जत उसके कपड़ों में होती है"
अगर लड़की छोटे कपड़े पहने तो लोग कहेंगे "संस्कार नहीं हैं!" लेकिन क्या कपड़े सच में किसी की इज्जत मापने का पैमाना हैं? क्या लड़कों के कपड़ों से उनके संस्कार तय होते हैं? और फिर, संस्कार सिर्फ लड़कियों के लिए ही क्यों?
अब वक्त बदलने का है
हम सालों से ये बातें सुनते आ रहे हैं, लेकिन क्या अब हमें इन्हें बदलने की जरूरत नहीं है? लड़कियों को सिर्फ ‘अच्छी लड़की’ बनने की सीख देने के बजाय, उन्हें खुद की पहचान बनाने के लिए प्रोत्साहित करना ज्यादा ज़रूरी है।
क्या आपने भी बचपन में ऐसी कोई बात सुनी है, जो अब आपको गलत लगती है?