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Body Image vs Reality: आज की दुनिया में ‘खूबसूरती’ की परिभाषा इतनी तयशुदा और सीमित हो गई है कि हर कोई अपने शरीर को एक तय मापदंड पर तौलने लगा है। सोशल मीडिया, विज्ञापन और फिल्में हमें बताती हैं कि ‘परफेक्ट बॉडी’ कैसी दिखनी चाहिए। लेकिन जब हम खुद को आइने में देखते हैं, तो क्या वही सच होता है? क्या बॉडी पॉज़िटिविटी (Body Positivity) सिर्फ एक ट्रेंड बनकर रह गई है या वाकई में हम अपने शरीर को बिना शर्त स्वीकार करना सीख पाए हैं? आइये जानते हैं विस्तार से-
आइने में दिखती हो या दुनिया के स्टैंडर्ड्स में? बॉडी पॉज़िटिविटी क्या सच में आसान है?
आइने में जब हम खुद को देखते हैं, तो असली इंसान दिखता है, खामियों के साथ, इमोशन के साथ और एक अनोखी पहचान के साथ। लेकिन जब हम दुनिया के 'ब्यूटी स्टैंडर्ड्स' को देखते हैं, तो लगता है जैसे हम उस मापदंड पर कहीं फिट ही नहीं बैठते। यही संघर्ष है ‘बॉडी इमेज’ और ‘रियलिटी’ के बीच का।
बॉडी पॉज़िटिविटी का प्रमुख उद्देश्य था कि हर व्यक्ति अपने शरीर को, चाहे वो किसी भी आकार, रंग या बनावट का हो, प्यार करे और स्वीकारे। लेकिन जब बॉडी पॉज़िटिविटी भी इंस्टाग्राम ट्रेंड्स और ब्रांडिंग का हिस्सा बन गई, तो इसका मतलब बदलने लगा। अब इसमें भी एक खास तरह का 'प्रेज़ेंटेशन' आ गया, जो भी बॉडी पॉज़िटिव है, वो हमेशा खुश, आत्मविश्वासी और “फ्लॉलेस” दिखे।
असलियत में, बॉडी पॉज़िटिविटी एक बेहद व्यक्तिगत और कभी-कभी दर्दभरी यात्रा होती है। एक ऐसे समाज में जहां बचपन से ही हमें बताया जाता है कि गोरा रंग, पतली कमर, लंबा कद और बेदाग त्वचा ही सुंदरता की निशानी हैं, वहाँ इन विचारों को तोड़ना आसान नहीं होता।
औरतों के लिए ये जंग और भी गहरी है। विज्ञापनों में उन्हें हमेशा स्लिम, ग्लोइंग स्किन वाली और फैशनेबल दिखाया जाता है। लेकिन असल जिंदगी में हर औरत की बॉडी अलग होती है, पीरियड्स, प्रेगनेंसी, हार्मोनल बदलाव और लाइफस्टाइल के कारण उसका शरीर बदलता है और ये बदलाव गलत नहीं हैं, ये पूरी तरह से प्राकृतिक हैं।
बॉडी पॉज़िटिविटी सच में आसान होती अगर समाज का माइंडसेट नॉर्मल होता। लेकिन आज भी लोगों की नजरें पहले शरीर को जज करती हैं, फिर इंसान को। इसलिए बॉडी पॉज़िटिव होना मतलब सिर्फ खुद से प्यार करना नहीं, बल्कि लगातार समाज के स्टैंडर्ड्स को चुनौती देना भी है।
शायद हमें ‘बॉडी न्यूट्रलिटी’ पर भी ध्यान देना चाहिए, जिसमें हम अपने शरीर को केवल एक दिखावे का साधन नहीं, बल्कि एक जीवंत, कार्यशील संरचना के रूप में देखें। शरीर जो हमें जीने, सोचने और महसूस करने की ताकत देता है, वो खुद में सराहना के काबिल है, चाहे वो किसी भी आकार में हो।
बॉडी पॉज़िटिविटी एक सुंदर विचार है, लेकिन इसे जीना चुनौतीपूर्ण है। हमें खुद से दया और सहानुभूति से पेश आना होगा और दूसरों के शरीर पर राय देने से पहले खुद के नजरिए पर सवाल उठाना होगा। आइने में जो दिखता है, वही सबसे सच्चा रूप है, बाकी सब महज लेंस और फिल्टर हैं।