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सिगरेट का धुआं फेफड़ों को जलाता है, शरीर को खोखला करता है, उम्र को कम करता है यह बात हर कोई जानता है। लेकिन इस धुएं की एक और खासियत है, जो शायद मेडिकल साइंस भी नहीं समझ सकता। जब यह धुआं किसी पुरुष के होंठों से निकलता है, तो वह "मर्दाना" लगता है, "टशन" में दिखता है। लेकिन वही धुआं अगर किसी महिला के हाथों में हो, तो अचानक उसका चरित्र सवालों के घेरे में आ जाता है।
सिगरेट से पुरुष 'कूल', महिला 'बदचलन' क्यों?
No Smoking Day का मकसद लोगों को सिगरेट के नुकसान के बारे में जागरूक करना है, लेकिन क्या यह जागरूकता सिर्फ स्वास्थ्य तक सीमित रहनी चाहिए? क्या समाज के इस दोहरे रवैये पर बात नहीं होनी चाहिए? मैंने इस मुद्दे पर जब कुछ लोगों से बात की, तो जवाब बेहद दिलचस्प थे। जब पुरुषों की स्मोकिंग की बात आई, तो जवाब कुछ ऐसे थे
"अरे, लड़के हैं, थोड़ा-बहुत चलता है।"
"यार, ऑफिस का स्ट्रेस है, पी लेता है कभी-कभी।"
"आजकल हर कोई पीता है, इसमें क्या बुरा है?"
लेकिन जब यही सवाल महिलाओं के लिए किया गया, तो लहजा पूरी तरह बदल गया
"लड़कियां ये सब करेंगी तो समाज कैसे चलेगा?"
"अरे भाई, संस्कार नाम की भी कोई चीज होती है!"
"ऐसी लड़कियों का कैरेक्टर अच्छा नहीं होता।"
एक ही काम, दो अलग नज़रिए, आखिर क्यों?
सिगरेट का धुआं किसी के भी फेफड़े को नुकसान पहुंचा सकता है, फिर यह नैतिकता का प्रश्न सिर्फ महिलाओं के लिए क्यों उठता है? क्या पुरुषों की स्मोकिंग से उनके संस्कार नहीं मापे जाते? क्या नैतिकता का मापदंड सिर्फ महिलाओं के लिए आरक्षित है?
असल मुद्दा सिगरेट पीना या न पीना नहीं है, असल मुद्दा यह है कि जब पुरुष स्मोक करता है, तो उसे "व्यक्ति" माना जाता है, लेकिन जब महिला स्मोक करती है, तो उसकी पहचान सिर्फ उसके चरित्र तक सीमित कर दी जाती है। उसे एक जिम्मेदार इंसान की तरह नहीं देखा जाता, बल्कि समाज की बनाई हुई मर्यादाओं को तोड़ने वाली "बिगड़ी हुई लड़की" करार दिया जाता है।
तो क्या करें? स्मोकिंग को नॉर्मल मान लें?
नहीं, यह बहस सिगरेट को सामान्य बनाने के लिए नहीं है। हम सभी जानते हैं कि स्मोकिंग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और इसे छोड़ना ही बेहतर है। लेकिन यह भी उतना ही जरूरी है कि हम उन सामाजिक धारणाओं पर सवाल उठाएं जो पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग मानदंड तय करती हैं।
No Smoking Day पर हमें सिर्फ धुएं के असर को नहीं, बल्कि समाज के उन दकियानूसी ख्यालों के धुएं को भी साफ करना होगा, जो महिलाओं को हर चीज़ में पुरुषों से अलग तराजू में तौलता है। सिगरेट बुरी है, मगर उससे भी ज्यादा बुरा वह मानसिकता है, जो एक ही चीज़ के लिए पुरुष को 'स्वतंत्र' और महिला को 'चरित्रहीन' मानती है।