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आप सभी ने जरूर देखा होगा कि जब आप सुबह उठते हैं तो आप के घर के सारे काम पहले ही हो चुके होते हैं। जैसे झाड़ू लगाना, पोंछा, कपड़े धोना, आदि। मेरे घर में भी ऐसा ही होता है। जब मैं ऑफिस जाने के लिए सुबह जल्दी उठती हूं तो मेरी मां मेरे साथ ही उठ जाती है जबकि वह मेरे बाद सोती है। मेरे मना करने के बावजूद भी वह उठकर सबसे पहले नाश्ता बनाती हैं और फ़िर उनकी भाग दौड़ शुरू हो जाती है।
माँ हर बार करे जरुरत से ज्यादा काम
उनकी यह भागदौड़ मेरे रात को ऑफिस से घर आने तक इसी तरह बिना रुके चलती रहती है। पापा के टिफेन से लेकर दादी की दवाइयों तक की जिम्मेदारी वही उठाती है। इसके अलावा अपना कैटरिंग का बिजनेस भी संभालती हैं। जब मां से यह सवाल किया जाता है कि आप इतना काम क्यों करती हो तो वह इसे अनसुना कर देती हैं और कहती हैं कि ये सब काम करने से हमें सम्मान मिलता है।
हमारे समाज में बिना थके और बिना मुंह से आह निकाले घर के सारे काम करना और परिवार का ख्याल रखना महिला के लिए इज्जत का काम माना जाता है। यही तय करता है कि कोई महिला कितनी परफेक्ट है। पति और सास ससुर की सेवा करना तो उनकी नौकरी है। इसलिए कुछ महिलाएं तो यह सब करने से खुद को भाग्यवान समझती हैं। लेकिन अपनी सेहत और सेल्फ रिस्पेक्ट के साथ समझौते को समझदारी कह सकते हैं?
महिलाएं यह डिजर्व नहीं करतीं
महिलाओं को यह सभी काम करने के लिए बाध्य कर दिया गया है। लेकिन क्या इसके आगे उनकी सेहत कुछ नहीं? क्या काम कि यह जिम्मेदारी भी सेहत और सेल्फ रिस्पेक्ट से बड़ी हो सकती है?
महिलाओं को केवल उनके इन कामों के लिए इज्जत करना किस हद तक सही है? तो क्या हम उन्हें नौकर बुला सकते हैं? क्योंकि एक नौकर को भी तो उसके इन्हीं सब कामों के लिए थोड़ी इज्जत मिलती है। हां मैं जानती हूं कि नौकर शब्द बहुत ही बुरा है लेकिन उनकी स्थिति भी तो इससे कोई ज्यादा अच्छी नहीं है।
कॉविड के दौरान सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुई थी। इस वीडियो में एक महिला ऑक्सीजन मास्क लगाकर किचन में खाना बना रही थी। अब के समय में हमें बहुत सी ऐसी फोटोस मिल जाती हैं जिनमें बच्चे को जन्म देने के कुछ ही समय बाद महिलाएं अपनी जॉब पर वापस जाने लगती हैं। महिलाओं की ओवर वर्किंग और मल्टीटास्किंग को हम सराहनीय जरूर कह सकते हैं। लेकिन इसका मतलब उनकी जिंदगियों को बदतर बनाना तो नहीं है।