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Why Unsafe Abortion: क्यों महिलाएं हैं इससे परेशान, legal होने पर भी?

भारत में एबॉर्शन विभिन्न परिस्थितियों में कानूनी है।  एबॉर्शन को वैध बनाने का मतलब यह है कि महिलाएं सुरक्षित एबॉर्शन करा सकती हैं, और उन्हें असुरक्षित  या हानिकारक घरेलू एबॉर्शन का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका अभी एबॉर्शन के अधिकार के लिए लड़ रहा है, भारत अधिक प्रगतिशील एबॉर्शन अधिकारों की दिशा में कदम उठा चुका है।  तो भारत में अधिक महिलाएं कानूनी एबॉर्शन का सहारा क्यों नहीं ले रही हैं? क्यों घर पे एबॉर्शन कर रहीं हैं?

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एबॉर्शन भारत में 1971 से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के माध्यम से कानूनी घोषित हो चुका है, फिर भी इसे अभी भी कलंकित और वर्जित माना जाता है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019 -21 में बताया गया था कि 27 प्रतिशत एबॉर्शन घर पर स्वयं महिला द्वारा किया गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में 28.7 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 22.1 प्रतिशत एबॉर्शन घर पर किए गए थे।

सुरक्षित एबॉर्शन के लिए बाधाएं क्या हैं?

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असुरक्षित एबॉर्शन मातृ मृत्यु का एक प्रमुख कारण है जिससे बचा जा सकता है।  भले ही एबॉर्शन 50 से अधिक वर्षों से कानूनी रहा हो, लेकिन उपचारों तक दुर्लभ पहुंच सुरक्षित एबॉर्शन के लिए एक रोडब्लॉक के रूप में कार्य करती है।

2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक माना गया है कि एबॉर्शन देखभाल, उपकरणों और आपूर्ति की कमी, प्रमाणित कर्मचारियों की कमी,  महिलाओं के बीच ज्ञान की कमी, और गर्भपात के आसपास के स्टिगमा ने एबॉर्शन के लिए बाधाओं के रूप में काम किया।

रिपोर्ट असम, मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों के डेटा पर केंद्रित थी। इन राज्यों ने अधिकांश सुविधा देने से महिला को ठुकरा दिया, जो एबॉर्शन करवाने की मांग कर रहीं थीं।

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  • 22 से 53 प्रतिशत महिला को मना कर दिया क्योंकि प्रदाता उन्हें बहुत छोटा मानता था, वे अविवाहित थे या उनके कोई बच्चे नहीं थे।

     
  • 8 से 21 प्रतिशत महिला को इनकार कर दिया क्योंकि महिला के पास अपने पति या परिवार के किसी सदस्य की सहमति नहीं थी।

ये कारण भारत में एबॉर्शन से इनकार करने के लिए कानूनी आधार नहीं हैं। अगर महिला की उम्र 18 साल से ज्यादा है तो एबॉर्शन के लिए सिर्फ़ उसकी सहमति जरूरी है।  यदि महिला की आयु 18 वर्ष से कम है तो अभिभावक की लिखित सहमति आवश्यक है।

एबॉर्शन से जुड़े स्टिग्मा और इसके प्रभाव

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अधिकांश महिलाएं अपनी प्रेग्नेंसी को समाप्त करने के लिए 'एबॉर्शन की गोलियों' का उपयोग करती हैं।  मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अमेंडमेंट (एमटीपीए) अधिनियम के तहत, दवा को कानूनी रूप से निर्धारित किया गया है।

भले ही गोलियां लेना कानूनी हैं, और महिलाएं केमिस्ट में जाकर अबॉर्शन की गोली ले भी लेती हैं, बिना डॉक्टर से पूछे जो आगे चलकर उनके शरीर को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाती है।

महिलाओं में एबॉर्शन से जुड़ी जानकारियों की कमी के कारण ही एबॉर्शन भारत में कानूनी होने के बावजूद महिलाएं असुरक्षित एबॉर्शन का सहारा लेती हैं।

भारत को गर्भपात के संबंध में अपने प्रगतिशील कानूनों का जश्न मनाना चाहिए, जनता को इससे जुड़े हर कानून के बारे में समझाना चाहिए तभी असुरक्षित एबॉर्शन पर रोक लगाई जा सकती है।

#असुरक्षित एबॉर्शन
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