क्या महिलाओं को नहीं है अधिकार अपने हिसाब से अपने समय पर शादी करने की?

सिर्फ़ आदमियों को ही क्यों ये अधिकार है कि वो अपना जीवन साथी चुन सकें और अपने अनुसार शादी करें। क्यों जब महिलाएं ये करने लगती हैं तो उन्हें कैरेक्टरलेस कह दिया जाता हैं?

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Anjali Mishra
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Shaadi ke laws

Shaadi ke laws Photograph: (Freepik)

Do women have right to decide the age of getting married or everything is bounded by society: ये सवाल आज भी हमारे समाज में रेलेवेंट और जरूरी है, क्योंकि भले ही हम 21वीं सदी में जी रहे हों, लेकिन महिलाओं को अपनी जिंदगी के सबसे अहम फैसलों में से एक शादी को लेकर आज़ादी अब भी पूरी तरह नहीं मिली है। बचपन से ही लड़कियों पर यह दबाव बनाया जाता है कि उन्हें एक तय उम्र तक शादी कर लेनी चाहिए, वरना समाज सवाल उठाता है, रिश्तेदार ताने देते हैं, और परिवार इज्जत की दुहाई देने लगता है। लड़की की इच्छा, उसके करियर के सपने, उसकी मानसिक तैयारी, या उसके पर्सनल चॉइस को अक्सर इग्नोर कर दिया जाता है। ये न केवल उसकी फ्रीडम छिनता है, बल्कि उसके फंडामेंटल राइट्स का उल्लंघन भी है। क्या किसी महिला को ये अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह कब, किससे और क्यों शादी करे? क्या उसकी जिंदगी के इतने अहम फैसले दूसरों के हाथ में होने चाहिए? यह विषय सिर्फ पर्सनल पसंद का नहीं, बल्कि जेंडर इक्वालिटी, एजुकेशन, सेल्फ डिपेंडेंसी और सामाजिक बदलाव से जुड़ा हुआ है, जिस पर बहुत बदलाव करने की ज़रूरत है।

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क्या महिलाओं को नहीं है अधिकार अपने हिसाब से अपने समय पर शादी करने की?

1. शादी बस एक हिस्सा है पूरा जीवन नहीं

हमारे समाज में शादी को जीवन का हिस्सा नहीं मानते हैं बल्कि पूरा का पूरा जीवन ही मानने लगते हैं। उन्हें लगता है जिसने शादी की है सिर्फ़ वही सुखी है और अपना जीवन अच्छे से जी सकता है पर जिसने शादी नहीं की वो तो अपना सारा जीवन बर्बाद कर रहा है अकेले रहकर। 

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2. नहीं कि शादी तो कोई कमी होगी

लड़के ने शादी से मना कर दिया तो उसे हक है अपने समय पर शादी करने का अपना साथी चुनने का पर अगर वही किसी लड़की ने मना कर दिया कि शादी करना ही नहीं चाहती तो कह दिया जाता है कि कोई कमी होगी लड़की में ही इसीलिए नहीं कर रही।

3. सही समय होता नहीं चुना जाता है

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हर व्यक्ति को ये अधिकार है कि वो अपने समय पर जब उसे ठीक लगे तब वह अपने अनुसार साथी चुनकर शादी कर सके। पर ये अधिकार तब कहा जाता है जब महिलाएं और पढ़ना चाहती हैं, शादी नहीं करना चाहती या अपने अनुसार समय डिसाइड करती हैं। शादी की कोई परफेक्ट एज नहीं होती जब सही लगे तब शादी करनी चाहिए।

4. महिलाएं कोई बोझ नहीं

क्यों ऐसा समझा जाता है हमारे समाज में की बेटी एक बोझ है जिसकी जल्दी शादी करके घर से विदा कर देना चाहिए। महिलाएं कोई बोझ नहीं जिसे किसी और के हाथों सौंप दिया जाए जो उसे अपने हिसाब से रखे। वो भी इंसान हैं जिन्हें समान अधिकार हैं पुरुषों के जैसे।

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5. बिना शादी के बच्चा, कैरेक्टरलेस होगी ये लड़की

अगर किसी महिला ने शादी न करने का डिसीजन लिया और एक बच्चा एडॉप्ट किया तो उसपर समाज वाले ताने कसने लगते हैं उसे कैरेक्टरलेस कहने लगते हैं। शादी करना नहीं करना ये भी उनका खुद का अधिकार होना चाहिए और बच्चा एडॉप्ट करना भी उन्हीं का डिसीजन होना चाहिए।

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