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Feminism does not mean hating men: आज भी जब कोई महिला मैं फेमिनिस्ट हूं कहती है, तो बहुत से लोग उसे संदेह की निगाह से देखते हैं। कुछ लोग तो तुरंत यह मान लेते हैं कि वह मर्दों से नफरत करती होगी, शादी और परिवार के खिलाफ होगी या फिर बहुत तेज़ सोचती होगी। लेकिन सच ये है कि फेमिनिज्म का असली मतलब इससे बहुत अलग और गहरा है। फेमिनिज्म एक ऐसा विचार है जो बराबरी में विश्वास करता है चाहे वो अधिकारों की बात हो, अवसरों की हो या फिर सम्मान की। इसका मकसद महिलाओं को मर्दों से ऊपर उठाना नहीं, बल्कि उन्हें बराबरी पर लाना है।
फेमिनिज्म का मतलब मर्दों से नफरत नहीं है
मर्दों से नफरत नहीं, पितृसत्ता से सवाल है
फेमिनिज्म मर्दों से नफरत करने की सोच नहीं है, बल्कि उस सोच से लड़ने का नाम है जो सदियों से समाज को ये सिखाती आई है कि मर्द श्रेष्ठ हैं और औरतों को बस पीछे रहकर उनकी सेवा करनी चाहिए। यह विचारधारा पितृसत्ता (patriarchy) कहलाती है, जो न सिर्फ महिलाओं को दबाती है बल्कि कई बार पुरुषों को भी अपने जज़्बात, कमज़ोरी और संवेदनाओं को दबाने के लिए मजबूर करती है। फेमिनिज्म इस पितृसत्ता के खिलाफ आवाज़ उठाता है, ताकि एक ऐसा समाज बन सके जहां कोई भी लिंग अपनी पहचान और आज़ादी के साथ जी सके।
Feminism पुरुषों के लिए भी ज़रूरी है
फेमिनिज्म सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं, पुरुषों के लिए भी आज़ादी का रास्ता खोलता है। आज भी बहुत से पुरुष समाज के बनाए सख्त मर्दानगी के खांचे में फंसे हुए हैं ,उन्हें रोने की इजाज़त नहीं, अपने डर या भावनाओं को ज़ाहिर करने की छूट नहीं। फेमिनिज्म इन बंधनों को भी तोड़ता है और एक ऐसा माहौल बनाने की बात करता है जहां हर कोई इंसान के तौर पर जी सके, बिना किसी लैंगिक दबाव के। जब महिलाएं और पुरुष दोनों समानता के साथ आगे बढ़ते हैं, तभी समाज सही मायनों में तरक्की करता है।
गलतफहमियों से बाहर निकलने की ज़रूरत है
समाज में फेमिनिज्म को लेकर कई तरह की गलतफहमियां फैलाई गई हैं जैसे कि ये मर्दों को नीचे दिखाने की कोशिश है, या कि इससे परिवार टूटते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि फेमिनिज्म हर उस रिश्ते को बेहतर बनाता है, जिसमें सम्मान और बराबरी की भावना हो। यह महिलाओं को अपनी आवाज़ उठाने, फैसले लेने और खुद के लिए खड़े होने की ताकत देता है और ऐसा करते हुए वह किसी को नीचे नहीं गिराती, बल्कि खुद को उठाती है।
फेमिनिज्म कोई युद्ध नहीं है, ये एक कोशिश है बराबरी की, समझदारी की और इंसानियत की। यह मर्दों से नफरत करने की भावना नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज की कल्पना है जहां स्त्री और पुरुष दोनों को जीने, सोचने, बोलने और फैसले लेने की बराबर आज़ादी हो। अगर हम इस बात को समझ पाएं, तो शायद हम एक औरत के “मैं फेमिनिस्ट हूं” कहने पर चौंकेंगे नहीं, बल्कि गर्व करेंगे।