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Is dressing up a right or a show off: हमारे समाज में महिलाओं का हर कदम अक्सर जांचा-परखा जाता है चाहे वो उनका पहनावा हो, बोलने का अंदाज़ या फिर सजने-संवरने का तरीका। इतना मेकअप क्यों करती हो? या "कभी तो नैचुरल रहो! जैसे ताने अक्सर लड़कियों को सुनने पड़ते हैं। लेकिन क्या मेकअप सिर्फ दिखावे का ज़रिया है? या फिर ये एक महिला की व्यक्तिगत पसंद और अभिव्यक्ति का हिस्सा है? आइए इस विषय को गहराई से समझते हैं।
सजना-संवरना हक़ है या दिखावा?
मेकअप
Makeup सदियों से एक कला का रूप रहा है। यह किसी के Mood , रचनात्मकता और व्यक्तित्व को दर्शाने का माध्यम हो सकता है। कुछ महिलाओं के लिए ये दिन की शुरुआत का एक रिचुअल होता है जो उन्हें आत्मविश्वास से भर देता है। जब कोई अपने चेहरे पर थोड़ा काजल, लिपस्टिक या ब्लश लगाता है, तो वह खुद को बेहतर महसूस करता है और ये भावना बहुत निजी होती है।
दबाव या चॉइस
समाज की विडंबना यही है कि महिलाएं अगर सजें-संवरे तो उन्हें "ज़्यादा दिखावा" करने वाली कहा जाता है, और अगर न सजें तो "सुस्त", "बेजान" या "बेपरवाह" जैसी टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। एक औरत का मेकअप करना या न करना, दोनों को जज किया जाता है। यही दोहरी सोच उन्हें कन्फ्यूज़ करती है कि वो खुद के लिए सजें या दूसरों की नज़रों से खुद को परखें।
Body Positivity और मेकअप के बीच संतुलन
मेकअप को लेकर ये कहना कि ये आत्म-स्वीकृति के खिलाफ है, एकतरफा नज़रिया है। कई महिलाएं खुद से प्यार करते हुए भी मेकअप करना पसंद करती हैं, और कई बिना किसी कॉस्मेटिक टच के भी आत्मविश्वासी रहती हैं। असली मुद्दा है, चुनाव का। जब एक औरत अपने मन से, बिना दबाव के सजती है, तो वह सशक्त होती है।
मेकअप दिखावा नहीं, बल्कि एक व्यक्ति की पसंद है। ये उस आज़ादी का हिस्सा है जिसमें हर औरत को ये तय करने का अधिकार है कि वो खुद को कैसे देखना चाहती है। इसलिए अगली बार जब कोई महिला मेकअप में दिखे तो उसे जज करने से पहले ये समझें कि वो सजना चाहती है, किसी को दिखाने के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए। सजना-संवरना किसी भी महिला का हक़ है, और उसे इस हक़ को दिखावे के चश्मे से नहीं देखना चाहिए।