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Is every woman meant to be a mother: भारतीय समाज में एक लड़की के जन्म से ही उसकी ज़िंदगी के कई पड़ाव तय मान लिए जाते हैं पढ़ाई करो, शादी करो, और फिर मां बनो। खासकर महिलाओं के लिए मां बनना जैसे एक अनिवार्य लक्ष्य बना दिया गया है। लेकिन क्या हर महिला मां बनने के लिए बनी है? क्या यह ज़रूरी है कि हर औरत मातृत्व को अपनाए, भले ही वो इसे न चाहती हो?
क्या हर महिला मां बनने के लिए बनी है?
मातृत्व एक विकल्प है, ज़रूरी नहीं
हर महिला के अंदर मां बनने की इच्छा नहीं होती। कुछ करियर, आत्मनिर्भरता या मानसिक शांति को प्राथमिकता देती हैं। कुछ महिलाएं इस डर से मां नहीं बनना चाहतीं कि वे किसी बच्चे को उस तरह का जीवन नहीं दे पाएंगी, जैसा वे देना चाहती हैं। कुछ बस नहीं चाहतीं और यही बात सबसे अहम है।
मानसिक और शारीरिक दबाव
मां बनने का निर्णय सिर्फ भावनात्मक नहीं होता इसमें मानसिक, शारीरिक, और आर्थिक पहलू भी शामिल होते हैं। गर्भावस्था के दौरान एक महिला का शरीर और दिमाग कई बदलावों से गुजरता है। postpartum depression, career break, नींद की कमी, रिश्तों में तनाव.. ये सभी चीज़ें उसके जीवन को प्रभावित करती हैं। ऐसे में अगर कोई महिला तय करती है कि वह इस प्रक्रिया से नहीं गुजरना चाहती, तो उसमें कुछ गलत नहीं है।
अधूरी नहीं, पूरी हैं
जो महिलाएं मां नहीं बनतीं, उन्हें अक्सर अधूरी, खाली या "स्वार्थी" कहा जाता है। लेकिन क्या कोई सिर्फ इसलिए अधूरी हो जाती है क्योंकि वो मां नहीं बनी? क्या उसकी बाकी सभी पहचानें.. उसकी मेहनत, उसकी इंसानियत, उसकी खुशियाँ सिर्फ मां बनने से ही पूरी होती हैं? सच तो यह है कि एक महिला मां हो या नहीं, वह पूरी है अपने अस्तित्व में, अपने फैसलों में।
समय है सोच बदलने का
हमें बतौर समाज यह समझना होगा कि हर महिला की प्राथमिकताएं अलग होती हैं। मातृत्व एक खूबसूरत अनुभव हो सकता है, लेकिन यह सबके लिए नहीं है और यह ठीक है। महिलाओं को यह हक होना चाहिए कि वे खुद तय करें कि वे मां बनना चाहती हैं या नहीं, और इस फैसले पर उन्हें जज न किया जाए।
हर महिला मां बनने के लिए नहीं बनी होती, और यही बात उसे और ज़्यादा सशक्त बनाती है। मां बनना एक खूबसूरत सफर है, लेकिन न बनना भी उतना ही वैध और सम्मानजनक विकल्प है। हमें चाहिए कि हम महिलाओं के फैसलों का सम्मान करें और उन्हें वह आज़ादी दें जो हर इंसान का मूल अधिकार है।