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Is the measure of beauty only color: हमारे समाज में गोरी चमड़ी को सुंदरता का पर्याय मानने की एक गहरी धारणा बसी हुई है। टीवी विज्ञापनों से लेकर शादी-ब्याह के रिश्ते तक, गोरे रंग को प्राथमिकता देने की मानसिकता ने हमारी सोच को गहरे तक प्रभावित किया है। लेकिन क्या वाकई सुंदरता का कोई एक रंग होता है? क्या सांवले रंग में वो आकर्षण नहीं जो एक गोरे चेहरे में दिखता है?
क्या सुंदरता का पैमाना सिर्फ रंग ही है?
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
रंगभेद की यह सोच हमारे औपनिवेशिक अतीत की देन है जब गोरी चमड़ी को 'उच्च वर्ग' का प्रतीक माना जाता था। आजादी के 75 साल बाद भी हम उन्हीं मानसिक जंजीरों से जकड़े हुए हैं। दिलचस्प बात यह है कि हमारे ही पुराने ग्रंथों और मूर्तियों में कृष्ण, द्रौपदी और राम जैसे सांवले रंग के पात्रों को सुंदरता का आदर्श बताया गया है।
वैश्विक परिदृश्य में बदलाव
पश्चिमी देशों में अब टैन्ड स्किन को सुंदरता का प्रतीक माना जाने लगा है। Brands ने अपने विज्ञापनों में विविधता को स्थान देना शुरू किया है। भारत में भी अब धीरे-धीरे यह बदलाव देखने को मिल रहा है जहां डार्क स्किन टोन वाले मॉडल्स और अभिनेताओं को प्रमोट किया जा रहा है।
सुंदरता का असली मापदंड
सच्ची सुंदरता किसी एक रंग में नहीं बल्कि आत्मविश्वास, व्यक्तित्व और स्वाभिमान में निहित है। एक चमकती हुई त्वचा, स्वस्थ बाल और आत्मिक प्रफुल्लता किसी भी रंग को निखार सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि सुंदरता एक व्यक्तिपरक अवधारणा है जिसका कोई निश्चित मानक नहीं होता।
सामाजिक जिम्मेदारी
हमें अपनी अगली पीढ़ी को यह सिखाने की जरूरत है कि beauty का कोई एक formula नहीं होता। स्कूलों और media के माध्यम से हमें विविधता का उत्सव मनाना सीखना होगा। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को उनके रंग के बारे में सकारात्मक सोच दें।
समय आ गया है कि हम रंग के इस भ्रम को तोड़ें। सुंदरता किसी बोतलबंद क्रीम में नहीं, बल्कि हमारे आत्मविश्वास में बसती है। जिस तरह फूलों के विभिन्न रंग उद्यान की शोभा बढ़ाते हैं, उसी तरह मानवता के विभिन्न रंग इस दुनिया को खूबसूरत बनाते हैं। हमें यह समझना होगा कि असली सुंदरता वही है जो हमें स्वयं से प्रेम करना सिखाए, न कि किसी असंभव आदर्श के पीछे भागने को मजबूर करे।