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Photograph: (X/Harsh Sanghavi)
हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। सोशल मीडिया पर बधाइयों की भरमार होती है, दफ्तरों में औपचारिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, और चारों तरफ "हैप्पी वुमेंस डे" की गूंज सुनाई देती है। लेकिन क्या सिर्फ इन रस्मों से महिलाओं को वह सम्मान मिल जाता है जिसकी वे हकदार हैं? क्या एक दिन की औपचारिकता उनके संघर्षों, उपलब्धियों और असली समस्याओं को समझने के लिए काफी है? सच्चाई यह है कि अगर हम महिलाओं को वास्तव में खास महसूस कराना चाहते हैं, तो यह काम सिर्फ एक दिन की औपचारिकता तक सीमित नहीं रह सकता।
यह महिला दिवस सिर्फ बधाइयों तक सीमित न रखें, महिलाओं को सशक्त महसूस कराएं
महिलाओं की असली सराहना क्या होनी चाहिए?
महिलाओं को सम्मान देने का अर्थ केवल उन्हें फूल और बधाई संदेश देना नहीं है। असली सराहना तब होगी जब उन्हें बराबरी का दर्जा मिलेगा, उनकी क्षमताओं को पहचाना जाएगा, और समाज में उनके योगदान को गंभीरता से लिया जाएगा। एक महिला केवल किसी की बेटी, बहन, पत्नी या माँ नहीं होती, बल्कि वह खुद एक संपूर्ण व्यक्तित्व रखती है। उसकी पहचान, सपने और इच्छाएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी किसी पुरुष की।
बदलाव के लिए केवल शब्द नहीं, सही व्यवहार जरूरी
"महिला सशक्तिकरण" शब्द भले ही आजकल बहुत इस्तेमाल किया जाता हो, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ तब समझ आएगा जब समाज में व्यवहारिक बदलाव दिखेंगे। अगर महिलाएं काम के स्थान पर बराबर सम्मान पाएंगी, अगर उनके कपड़ों, शादी और जीवनशैली को लेकर निर्णय लेने का अधिकार उन्हें स्वयं मिलेगा, अगर घरेलू कामों को केवल महिलाओं की जिम्मेदारी मानने की मानसिकता बदलेगी तभी महिला सशक्तिकरण का सही अर्थ सिद्ध होगा।
सिर्फ महिला दिवस पर नहीं, हर दिन महिलाओं को सम्मान दें
महिला दिवस मनाने का सही तरीका यह होना चाहिए कि हम अपने व्यवहार में बदलाव लाएं। महिलाओं की मेहनत और संघर्ष को पहचानें, उन्हें उनकी काबिलियत के आधार पर अवसर दें, और उनके आत्मनिर्भर बनने के सफर में साथ दें। एक दिन की औपचारिक शुभकामनाएं देने से ज्यादा जरूरी यह है कि हर दिन महिलाओं के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाया जाए। उन्हें केवल सम्मानजनक शब्दों से नहीं, बल्कि सही व्यवहार और बराबरी के अवसर देकर सशक्त महसूस कराया जाए। तभी महिला दिवस का असली उद्देश्य पूरा होगा.