कमिटमेंट और शादी दो अलग चीजें है
हमारे देश में अक्सर शादी और कमिटमेंट (वचन या दायित्व) को एक ही समान मान लिया जाता है। लेकिन असल में ये दोनो अलग-अलग चीजें है। अधिकतर शादियों में सिर्फ समाज में इज्जत होने के दबाव के कारण चलती रहती हैं। उनमें कोई दायित्व नाम की चीज होती ही नही है।
समाज शादी को जिंदगी भर का दायित्व मानता है
हमारे समाज में शादी को जीवन भर के लिए एक दायित्व समझा जाता है। जिसे हर हाल में निभाना पड़ता है। फिर भले ही आप उस रिश्ते में खुश हो या नहीं। शादियां हमारे समाज मे रीति-रिवाजों और कर्तव्यों के कारण ज्यादा होती हैं। समाज में दो लोगों की शादी इसलिए नही कराई जाती क्योंकि वो प्यार में है बल्कि इसलिए कराई जाती है क्योंकि वो एक ही धर्म-जाति से संबंध रखते हैं।
शादी के बाद दो लोगो को एक-दूसरे के साथ काफी एड़जेस्ट करना पड़ता है और अक्सर हमारे समाज में यह एडजेस्टमेंट महिलाएं ज्यादा करती हैं। उन्हें अपने ससुराल के हिसाब से अपनी पूरी लाइफ में बदलाव करना पड़ता है।
शादी में महिलाएं करती हैं अधिक कॉम्प्रमाइज़
एक शादी में महिलाएं पुरुषो की अपेक्षा अधिक एड़जेस्ट और कॉम्प्रमाइज करती हैं। उन्हें अपने करियर तक को छोड़ना पड़ जाता है। उनकी लाइफ के हर फैसले ससुराल को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। इतने सभी कॉम्प्रमाइज करने के बावजूद भी एक हैप्पी मैरिज की कोई गारंटी नही होती है। उन्हें समाज की दुहाई देकर एक नकारात्मक शादी का हिस्सा बना रहना पड़ता है। लेकिन अगर यही शादी का बंधन ना होकर एक कमिटमेंट वाला रिश्ता होता तो वहां से निकलता आसान होता है।
कमिटमेंट बुरा नही है
क्योंकि शादी के बंधन से निकलना आसान नही होता है और हमारा समाज भी इस बंधन को तोड़ना गलत मानता है। यही कारण है कि लोग 'लिव-इन' जैसे रिश्तो को पसंद करते हैं। ऐसे रिश्तों में अगर चीजें गलत होती हैं और लोग अपने वादों से मुकरते तो इनसे बाहर निकला जा सकता है।
ऐसे रिश्तो में आप अपनी व्यक्तिगत खुशी को प्राथमिकता देते हैं। वैसे भी एक ऐसी शादी जिसमें प्यार ना हो, उसको बनाए रखने से अच्छा एक कमिटमेंट वाला रिश्ता है। एक कमिटमेंट वाले रिश्ते में समानता और आपसी समझ शामिल होती है। समाज को चाहिए कि ऐसे रिश्तो पर विचार करें और इसे गलत ना समझे। साथ ही महिलाओं को अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनने की आजादी दे।