भारतीय समाज पुरुषप्रधान समाज है जिसमें ऐसा माना जाता है कि एक महिला का अस्तित्व या वजूद केवल उसके पति, पिता या भाई से ही है। जब भारतीय इतिहास में भारत का पहला पॉपुलेशन सर्वेक्षण हुआ था तब उसमें यह देखा गया की आधी से ज्यादा महिलाओं का नाम उसमें था ही नहीं। क्योंकि उन महिलाओं को किसी की बेटी, पत्नी या बहन लिखवाया गया।
इस समाज में लोगों के लिए महिला का नाम और उसकी पहचान महत्व ही नहीं रखते थे। लेकिन वक्त के बदलने के साथ लोगों की सोच में थोड़ा बदलाव हुआ। मगर याद रखें सिर्फ थोड़ा। आज महिलाएं हर क्षेत्र में ऊंचाइयां हासिल कर रही हैं। फिर भी हमारे समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनका मानना यह है की एक महिला का वजूद उसके पति से होता है।
शादी करना नहीं है ज़रूरी
भारतीय समाज में एक बेटी के पैदा होते ही परिवार और उसके पेरेंट्स उसकी शादी के बारे में सोचने लगते हैं। वे उसकी शादी के लिए पैसे भी इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। क्योंकि लोग ऐसा मानते हैं कि एक लड़की की जिंदगी का उद्देश्य है केवल शादी और शादी के बाद अपने बच्चों और परिवार को संभालना।
अकेली लडकी अधूरी?
उन्हें ऐसा लगता है कि जब तक एक लड़की एक लड़के से शादी नहीं कर लेती तब तक वह अधूरी है। एक लड़की को एक लड़के की जरूरत होती ही होती है। वह एक लड़के के बिना अपनी जिंदगी खुद नहीं जी पाएगी या अपनी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएगी। समाज के लोगों की यह भावना लड़कियों को जबरदस्ती शादी करने पर भी मजबूर कर देती है।
वक्त बदल रहा है और लड़कियां भी सशक्त हो रही हैं। एक लड़की अपने आप में पूर्ण होती है। उसे अपनी जिंदगी जीने के लिए किसी मर्द की आवश्यकता नहीं है। वह अगर सिंगल है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह अधूरी है। बल्कि यह उसका आत्मविश्वास और चॉइस है कि उसे ज़िंदगी जीने के लिए किसी मर्द की जरूरत नहीं है। सिंगल होना उस की चॉइस है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि वह अधूरी है।
भला किसी की ज़रूरत क्यों है?
यह इस भारतीय समाज की सोच है कि एक लड़की को एक लड़के की जरूरत होती है और वह उसके बिना अधूरी है। लेकिन ऐसी कौन सी चीज है जो पुरुष कर सकते हैं लेकिन महिला नहीं। मदर इंडिया जैसी कामयाब महिलाएं इस बात का सबूत है कि महिलाएं हर काम कर सकती हैं। तो फिर उन्हें अपने जीवन यापन के लिए किसी की जरूरत क्यों होगी?
कोई मर्द किसी महिला को पूर्ण नहीं बना सकता है क्योंकि एक महिला उसके बिना अधूरी होती ही नहीं है और स्वयं में ही पूर्ण होती है। यह मिथ समाज के द्वारा महिलाओं को बताया गया है ताकि पुरुष हमेशा महिलाओं के फैसलों और उनकी जिंदगी पर अपना कंट्रोल रख सकें। मुझे नहीं लगता कि हमें इस मिथ पर विश्वास करना चाहिए। सिंगल महिलाएं अकेली है अधूरी नहीं। और अकेले होना उनकी चॉइस है जिसका हम सभी को सम्मान करना चाहिए।