बचपन से ही महिलाओं को उनके रंग, हाईट और वजन पर हमेशा से सुनना को मिलता है। काली है, छोटी है, मोटी है, पतली है, सांवली है आदि आदि। हमारे समाज ने लड़कियो के लिए एक पैमाना तय कर रखा है जिसके अंदर अगर एक लड़की फिट नही होती है तो उसको सुंदर ही नही समझा जाता है।
बचपन से ही हमको ताने दिए जाते हैं और हर बात पर टोका जाता है ताकि हमे जबरदस्ती समाज के खूबसूरत पैमाने वाली परिभाषा में फिट किया जा सके। क्योंकि समाज के अनुसार जो लड़किया इस परिभाषा में नही आती है उनके लिए जीवन कठिन होता है। यहां जीवन से तात्पर्य शादी से है।
शादी के लिए ही दिए जाते है ये ताने
हमारे बचपन से ही हम लड़कियों को शादी के लिए तैयार किया जाता है। इस पूरे प्रोसेस में लड़कियों को खाना बनाना, घर के अतिरिक्त काम करना, सबका ख्याल रखना आदि की ट्रेनिंग दी जाती है। इन सबके साथ उनपर सुंदर बने रहने के लिए अधिक जोर दिया जाता है। क्योंकि यह सब काम तो कोई भी कर सकता है लेकिन पसंद उस लड़की को किया जाएगा जो साफ गोरे रंग की होगी, जिसके चेहरे पर कोई दाग नही होगा, सही वजन की होगी और हाईट अच्छी होगी।
हमारे यहाँ अगर लड़कियो को पढ़ाया भी जाता है तो भी इसलिए के कोई अनपढ़ कहकर उसको रिश्ते के लिए मना ना करदे। हर तरह के ताने जो लड़कियाँ सुनती है और हर प्रकार के सुधार जो यह समाज लड़कियों से चाहता है वह सब इसलिए कि उनकी शादी बिना किसी रुकावट के हो जाए।
समाज के ये ताने तोड़ते हैं आत्मविश्वास
जब हमारे लुक और व्यवहार में कोई लगातार कमिया निकालता है और हर बात पर ताने देता या बस सिर्फ सुधार की उम्मीद ही रखता है तो स्वाभाविक है कि यह किसीका भी आत्मविश्वास तोड़ सकता है। अधिकांश लड़किया इस कारण कभी खुद को लेकर आत्मविश्वास महसूस ही नही कर पाती हैं।
उन्हें हर वक्त अपने अंदर किसी चीज की कमी लगती रहती है। ऐसी कमिया जिन पर उनका कोई जोर ही नही होता है। इस कारण से महिलाएं कभी अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नही कर पाती हैं क्योंकि ये समाज उनमें सिर्फ सुधार-सुधार की गुजाइश रखता है।
कोई भी व्यक्ति अपने रंग-रूप से नही बनता है। वह अपनी प्रतिभा, व्यवहार, दूसरे के प्रति उसका रवैया और जीवन जीने की कला से एक उचित इंसान बनता है। यही वह सब चीजें है जिनमें सुधार की गुजाइश होती है। रंग-रूप, हाईट, दुबली-पतली यह सभी बनावटी चीजे हैं जो समय के साथ विलुप्त हो जाती हैं। इसलिए उन सब पर ज्यादा ध्यान ना देकर हमें महिलाओं को उनकी भावनात्मक व व्यक्तिगत उन्नति के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।