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Opinion: महिलाओं से ही सपोर्ट की उम्मीद क्यों?

हमारे समाज में महिलाओं को सदियों से "सपोर्ट सिस्टम" के रूप में देखा गया है। इस सोच के कारण महिलाओं पर हमेशा दूसरों की देखभाल और समर्थन करने का दायित्व थोप दिया गया। हर वक्त महिलाओं को ही क्यों त्याग करना पड़ता है और समर्थन करना पड़ता है?

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Dibya Debasmita Pradhan
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Support Should Not Be the Duty of Women Only

Image Credit: Pinterest

Support Should Not Be the Duty of Women Only: हमारे समाज में महिलाओं को सदियों से "सपोर्ट सिस्टम" के रूप में देखा गया है। यह धारणा पारंपरिक भूमिकाओं से उत्पन्न हुई है, जहां महिलाओं को घर के काम, बच्चों की देखभाल और परिवार की भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार माना गया। इस सोच के कारण महिलाओं पर हमेशा दूसरों की देखभाल और समर्थन करने का दायित्व थोप दिया गया।

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Opinion: महिलाओं से ही सपोर्ट की उम्मीद क्यों?

अगर कोई जोड़ा शादी के रिश्ते में बंधने वाला है और दोनों ही बाहर काम करते हैं, तो आमतौर पर महिलाओं से ही उम्मीद की जाती है कि वे अपनी नौकरी छोड़कर पति के करियर को समर्थन दें। और अगर पति और पत्नी एक ही ऑफिस में काम करते हैं और पत्नी को ऊंचा पद मिल जाए, तो अक्सर महिलाओं को दोष दिया जाता है कि अगर वे पति को थोड़ा और सपोर्ट करतीं तो उन्हें भी प्रमोशन मिल सकता था। यही अपेक्षा पुरुषों से क्यों नहीं की जाती? हर वक्त महिलाओं को ही क्यों त्याग करना पड़ता है और समर्थन करना पड़ता है?

उससे सपोर्ट करने वाला कोई नहीं

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महिलाओं को भी समर्थन की आवश्यकता होती है, पर समाज और संस्कृति इस धारणा को बढ़ावा नहीं देते। उदाहरण के लिए, अगर एक महिला व्यवसाय शुरू करना चाहती है, तो उसे यह कहकर रोक दिया जाता है कि "तू व्यवसाय नहीं संभाल सकेगी”।पर वही एक पुरुष अगर व्यवसाय शुरू करना चाहे, तो सबसे पहले महिलाएँ ही उसे समर्थन करने के लिए तैयार हो जाती हैं। यह केवल एक उदाहरण है, पर हर वक्त महिलाओं को ही अपने सपनों को त्यागना पड़ता है क्योंकि उन्हें समर्थन करने वाला कोई नहीं खड़ा रहता, चाहे वो विदेश जाकर आगे पढ़ाई की बात हो, अपनी हॉबी को अपना करियर बनाने की बात हो, या शादी के बाद अपने प्रोफेशन को न छोड़ने की बात हो।

महिलाएं भी थकती हैं और उन्हें भी मानसिक और भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता होती है। समाज को समझना चाहिए कि महिलाओं की भी अपनी इच्छाएं, सपने और प्राथमिकताएं होती हैं। जब एक लड़की अपने सपनों को पूरा करती है या सफलता प्राप्त करती है, तो सभी उसकी तारीफ करते हैं और कहते हैं कि "हमें पता था ये सब कर सकती है”। पर लड़की अगर हार जाए, तो वही लोग अपना दूसरा रूप दिखाने से पीछे नहीं हटते। वहीं, अगर एक लड़का हार जाता है, तो परिवार खुद को दोषी मानने लगता है कि शायद उनसे ही कोई कमी रह गई।

वास्तविक जीवन की फिल्म में सपोर्टिंग किरदार कौन?

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जैसे हर फिल्म में एक लीड और सपोर्टिंग कैरेक्टर होता है, वैसे ही समाज में पुरुष को हमेशा मुख्य किरदार माना गया है और महिलाओं को सहायक किरदार। समर्थन लिंग आधारित नहीं होना चाहिए। इसी भेदभाव के कारण महिलाओं से अधिक समर्थन की उम्मीद की जाती है, चाहे वो आर्थिक, भावनात्मक या शारीरिक हो।

समाज में यह बदलाव लाने की आवश्यकता है कि समर्थन की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की नहीं, बल्कि सभी की होनी चाहिए। परिवार में पुरुषों को भी घर के कामों में, बच्चों की देखभाल में और भावनात्मक समर्थन में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए। एक स्वस्थ समाज वह है जहां महिलाओं और पुरुषों दोनों को समान अवसर और समर्थन मिले। महिलाओं को सिर्फ समर्थन करने वाली भूमिकाओं में सीमित करना उनकी स्वतंत्रता और विकास को बाधित करता है। यह समय है कि हम इस दृष्टिकोण को बदलें और एक ऐसे समाज की दिशा में कदम बढ़ाएं जहां हर व्यक्ति को समर्थन मिले, चाहे वह महिला हो या पुरुष।

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