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Photograph: (pinterest )
Menstruation Stigma: Time to Educate Not Just Girls but Schools Too: बरेली, उत्तर प्रदेश में एक कक्षा 11 की छात्रा के साथ जो हुआ, वह हमारे समाज के दोहरे मानकों को उजागर करता है। एक साधारण सी जरूरत के लिए सैनिटरी पैड मांगने पर उसे सजा देना न केवल अमानवीय है, बल्कि यह मासिक धर्म जैसे स्वाभाविक प्रक्रिया के प्रति हमारी नासमझी और असंवेदनशीलता को भी दिखाता है। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में प्रगति कर रहे हैं या फिर हमें मूलभूत शिक्षा और संवेदनशीलता की ओर लौटने की आवश्यकता है?
कब तक छात्राओं को शर्मिंदा किया जाएगा? क्या शिक्षकों को फिर से शिक्षा की ज़रूरत है?
क्या हम वाकई प्रगति कर रहे हैं?
कल हमने पूरे उत्साह और गर्व के साथ 76वां गणतंत्र दिवस मनाया। परेड में महिलाओं ने अपनी ताकत, हौसले और उपलब्धियों का प्रदर्शन किया। टैंकों पर कमांड देतीं महिलाएं, परेड में भाग लेतीं महिला सैनिकें, और उन नारी शक्तियों का प्रदर्शन जिन्होंने हर क्षेत्र में अपना योगदान दिया है। लेकिन उसी समाज में, जहां हम महिलाओं को हर क्षेत्र में बराबरी का दर्जा देने की बात करते हैं, एक छात्रा को उसकी बुनियादी जरूरत के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है। क्या यह हमारी प्रगति पर सवाल नहीं खड़े करता?
शिक्षा और समझ की कमी
इस घटना ने यह साबित कर दिया कि हमें केवल छात्राओं को ही नहीं, बल्कि शिक्षकों और स्कूल प्रबंधन को भी मासिक धर्म से जुड़ी शिक्षा देने की आवश्यकता है। स्कूल, जो शिक्षा और विकास का केंद्र होने चाहिए, वे खुद इस तरह की असंवेदनशीलता दिखा रहे हैं। शिक्षकों को छात्रों की समस्याओं को समझने और उनका समर्थन करने की शिक्षा दी जानी चाहिए।
क्या हमें वापस जाना चाहिए?
हम चांद पर जाने के सपने देख रहे हैं, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि जमीनी स्तर पर हमारी सोच और शिक्षा कहां खड़ी है। मासिक धर्म कोई वर्जना नहीं, यह एक जैविक प्रक्रिया है। इसे समझना और इसे सामान्य बनाना हमारी जिम्मेदारी है। समाज में तब तक बदलाव नहीं आएगा, जब तक हम इस विषय पर खुलकर चर्चा नहीं करेंगे।
आगे का रास्ता
सरकार को शिक्षा व्यवस्था में मासिक धर्म जागरूकता को एक अनिवार्य हिस्सा बनाना चाहिए। स्कूलों में न केवल मुफ्त सैनिटरी पैड उपलब्ध होने चाहिए, बल्कि शिक्षकों को संवेदनशीलता और समझ के साथ इन मुद्दों को संभालने की ट्रेनिंग भी दी जानी चाहिए। साथ ही, परिवारों और समाज को भी इस विषय पर खुलकर बात करने और जागरूकता फैलाने की जरूरत है।