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Feminism vs. Fraudism: नारीवाद का असली मतलब क्या है, और इसे कैसे गलत इस्तेमाल किया जा रहा है?

क्या नारीवाद समानता की लड़ाई है या कुछ लोग इसे अपने स्वार्थ के लिए गलत इस्तेमाल कर रहे हैं? जानिए फेमिनिज़्म और फ्रॉडिज़्म के बीच का अंतर इस लेख में।

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Vaishali Garg
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Feminism

Feminism vs. Fraudism: हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाते हैं, उनकी सफलता की कहानियों को सुनते हैं और समाज में उनकी स्थिति को बेहतर बनाने की बातें करते हैं। लेकिन इस मौके पर हमें यह भी सोचना चाहिए कि फेमिनिज़्म, जिसे समानता की लड़ाई कहा जाता है, क्या वास्तव में उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है? या फिर इसका एक नया और डरावना रूप, फ्रॉडिज़्म, हमारे समाज में पनप रहा है? क्या नारीवाद का मतलब सिर्फ महिलाओं के हक की बात करना है या फिर इसका मतलब झूठे आरोपों और गलत प्रचार के सहारे अपने फायदे निकालना भी हो सकता है?

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नारीवाद का असली मतलब क्या है, और इसे कैसे गलत इस्तेमाल किया जा रहा है?

फेमिनिज़्म आखिर क्या है?

जब भी हम नारीवाद की बात करते हैं, तो कई लोगों के मन में अलग-अलग धारणाएं होती हैं। कुछ लोगों को लगता है कि यह पुरुषों के खिलाफ एक आंदोलन है, जबकि असल में फेमिनिज़्म का मकसद समानता स्थापित करना है। इसका अर्थ है कि महिलाओं को भी उतने ही अधिकार, मौके और सम्मान मिलने चाहिए जितने पुरुषों को मिलते हैं। इस आंदोलन ने महिलाओं को शिक्षा, नौकरी, राजनीति और खेलों में आगे बढ़ने का साहस दिया है।

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लेकिन सवाल यह है कि जब फेमिनिज़्म महिलाओं के लिए इतनी बड़ी शक्ति बन सकता है, तो फिर इसे लेकर समाज में इतनी नकारात्मकता क्यों बढ़ रही है? क्यों कुछ लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते? क्या इसकी वजह वे लोग हैं जो नारीवाद का झूठा इस्तेमाल करके अपनी निजी दुश्मनी निकाल रहे हैं?

फ्रॉडिज़्म: जब नारीवाद का गलत इस्तेमाल होने लगे

क्या आपने कभी सोचा है कि जब कोई झूठे आरोप लगाता है, तो उसका असली नुकसान किसे होता है? वह महिलाएं, जो सच में शोषण और अन्याय की शिकार होती हैं, उनके लिए न्याय पाना और मुश्किल हो जाता है। आजकल कई मामलों में ऐसा देखा गया है, जहां महिलाओं ने फेमिनिज़्म की आड़ में झूठे आरोप लगाकर पुरुषों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी। ऐसे मामलों को हम फ्रॉडिज़्म कह सकते हैं यानी नारीवाद के नाम पर धोखा।

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मानव शर्मा और सुभाष जैसे मामलों को देखिए। इन पुरुषों पर झूठे आरोप लगाए गए, उनकी छवि खराब की गई और जब तक सच सामने आया, तब तक उनका जीवन बर्बाद हो चुका था। क्या यही नारीवाद है? क्या महिलाएं सिर्फ इसलिए झूठे आरोप लगाने के हकदार हैं क्योंकि वे महिलाएं हैं?

क्या झूठे आरोप लगाना असली पीड़ितों को कमजोर नहीं करता?

जब भी किसी झूठे मामले का खुलासा होता है, तो समाज का भरोसा कमजोर हो जाता है। असली पीड़ित महिलाओं को भी शक की नजरों से देखा जाता है और उनकी आवाज को अनसुना कर दिया जाता है। अगर कोई महिला सच में घरेलू हिंसा, शोषण या उत्पीड़न का शिकार होती है, तो उसे इंसाफ पाने के लिए दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है, क्योंकि पहले ही बहुत से झूठे मामलों ने समाज को भ्रमित कर रखा होता है।

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फेमिनिज़्म हमें सिखाता है कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनना चाहिए, अपनी लड़ाई खुद लड़नी चाहिए और समानता के अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि इसका इस्तेमाल हथियार की तरह किया जाए और बिना किसी आधार के किसी की ज़िंदगी खराब कर दी जाए।

तो फिर असली नारीवाद क्या है?

असली नारीवाद पुरुषों के खिलाफ जंग नहीं है, बल्कि उनके साथ समानता की दिशा में बढ़ने का आंदोलन है। यह न तो पुरुषों से बदला लेने का ज़रिया है और न ही अपनी मनमर्जी के लिए कानून का दुरुपयोग करने की अनुमति देता है। नारीवाद का असली मकसद महिलाओं को इतनी मज़बूती देना है कि वे बिना किसी गलत तरीके का सहारा लिए खुद आगे बढ़ सकें।

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हमें समझना होगा कि फेमिनिज़्म अधिकारों की लड़ाई है, न कि हथियार। महिला दिवस सिर्फ महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने का दिन नहीं, बल्कि यह सोचने का भी दिन है कि हम नारीवाद को सही दिशा में ले जा रहे हैं या नहीं। क्योंकि अगर इसे गलत दिशा में मोड़ा गया, तो इसका नुकसान सिर्फ पुरुषों को ही नहीं, बल्कि पूरी महिला जाति को भी उठाना पड़ेगा।

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