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Image: (Freepik )
What Is Pink Tax And Women Must Know These Things About It: हम सभी यह तो जानते हैं कि बाजार में बिकने वाली चीज की कीमत उसकी डिमांड, गुणवत्ता, उत्पादन और सबसे जरूरी ब्रांड पर निर्भर करती है लेकिन क्या आपने कभी यह सोचने की कोशिश की है कि महिलाओं की जरूरत की चीजें, पुरुषों की चीजों के मुकाबले ज्यादा महंगी होती हैं! फिर चाहें वो सामान एक ही जैसा काम करता हो लेकिन क्योंकि वो महिलाओं के लिए डिजाइन किया गया है, उसका प्राइस बहुत ज्यादा होगा। सबसे अहम बात यह कि ये अंतर केवल महिलाओं के फैशन, कॉस्मेटिक्स या बॉडी ओर स्किन-केयर प्रोडक्ट्स तक ही सीमित नहीं बल्कि उनके रोजाना इस्तेमाल किए जाने वाले सामन में भी देखने को मिलता है। लेकिन इसका कारण क्या है? इसका कारण है कंपनियों द्वारा वसूला जाने वाला Pink tax! आपको जरूर जानना चाहिए कि यह पिंक टैक्स आखिर है क्या और यह महिलाओं के खरीद और खर्च पर कैसे असर डालता है।
पिंक टैक्स क्या है?
पिंक टैक्स कोई सरकारी कर नहीं है और न ही ऐसा कोई नियम है कि ये कर वसूला जाना चाहिए! लेकिन यह बाज़ार में महिलाओं के इस्तेमाल की चीजों पर लगाया जाने वाला एक छिपा हुआ अतिरिक्त कर है जिसमें महिलाओं को कोई भी चीज जो पुरुष भी खरीदते हैं, खरीदने के लिए पुरुषों की तुलना में ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं और इसी को कहते हैं पिंक टैक्स! यह टैक्स किसी बिल में नहीं जोड़ा जाता बल्कि महिलाओं के प्रोडक्ट्स और सर्विस की कीमतों में मिलाकर ही कॉस्ट और सेलिंग प्राइस में ही जोड़ा जाता है।उदाहरण के तौर पर अगर बाजार में पुरुष के लिए रेजर खरीदने आप जाएं तो यह 30 से 50 रपए में मिल जाता है पर वहीं अगर यह रेजर महिलाओं के लिए होगा तो इसकी कीमत 90 या 100 रुपए होगी क्योंकि यह महिलाओं का प्रोडक्ट है और इसपर कंपनी द्वारा पिंक टैक्स लगाया गया है। और यह केवल ग्रूमिंग प्रोडक्ट्स ही नहीं बल्कि महिलाओं के खरीद वाले कपड़ों, जूतों, खिलौनों, स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों आदि जैसे सभी सर्विसेज में शामिल किया जाता है।
पिंक टैक्स वसूलने के क्या कारण हैं
पिंक टैक्स लगाने का कोई साफ कारण समझ नहीं आता लेकिन इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं जैसे कि कंपनियां की या मार्केट की स्ट्रेटजी यानी रणनीति और महिलाओं का खरीददारी में बहुत ज्यादा एक्टिव रहना। बाजार में खरीददारी के मामले में महिलाएं बड़ी उपभोक्ता साबित होती हैं क्योंकि वे अपने और परिवार की ज़रूरतों पर ज्यादा खर्च करती हैं शायद यही वजह है कि कंपनियां महिला-उत्पादों की कीमतें बढ़ाकर उनसे मुनाफा कमाने की कोशिश करती हैं। साथ ही यह भी मना जाता है कि महिलाओं के प्रोडक्ट्स की डिमांड पुरुषों के मुक़ाबले अधिक होती है और जहां मांग होती है वहां कीमतें अपने आप बढ़ जाती हैं इसलिए उनके सामान के दाम ज्यादा रखे जाते हैं। कंपनियां यहां साइकोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए महिलाओं की भावनात्मक और सामाजिक ज़रूरतों पर ध्यान देती हैं और ऐसे उत्पाद तैयार करती हैं जो उन्हें आकर्षित करें और वो उन्हें जरूर खरीदें जिससे कि वो कंपनियां उनकी ऊंची कीमत वसूल सकें।
कैसे झेलती हैं महिलाएं पिंक टैक्स
पिंक टैक्स का सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं की इकोनॉमिक कंडीशन पर होता है क्योंकि वे पिंक टैक्स के चलते अपनी रोजाना जरूरत के सामनों के लिए पुरुषों से ज्यादा भुगतान करती हैं, जिससे उनकी बचत और खर्च करने की क्षमता पर सीधा असर पड़ता है। इसके अलावा अभी तो सोशल मीडिया ट्रेंड के जरिए पिंक टैक्स के लिए महिलाओं पता चलने लगा है वरना आज भी कितनी महिलाएं इस टैक्स के बारे में जागरूक नहीं होती हैं और बिना किसी सोच, समझ या सवाल-जवाब किए ज्यादा कीमत चुकाती रहती हैं। और पिंक टैक्स केवल उत्पादों तक सीमित नहीं है बल्कि हेयरकट जैसी सेवाओं में भी महिलाओं से अधिक पैसे लिए जाते हैं जबकि पुरुषों को यही सर्विसेज सस्ते में मिल जाती हैं।
भारत में Pink Tax सबसे ज्यादा किन चीजों पर लगता है
भारत में पिंक टैक्स का असर अलग-अलग प्रोडक्ट्स और सर्विस पर होता है। भारत में महिलाएं ब्यूटी और पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स जैसे कि क्रीम, परफ्यूम, शैंपू, रेज़र आदि चीजें महिलाओं के लिए महंगी होती हैं। इसके अलावा महिलाओं के कपड़े, एक्सेसरीज़ और फुटवियर पुरुषों की तुलना में ज्यादा महंगे होते हैं फिर चाहें उनके बनने की लागत एक जैसी हो या कम पर उनकी बेचने की लागत ज्यादा होती है। इसी तरह से छोटी बच्चियों के लिए बनने वाले गुलाबी रंग के खिलौने, बैग या कोई भी सामान लड़कों के सामन से महंगे होते हैं। महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड्स, गर्भनिरोधक दवाइयों और दूसरे स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों की कीमतें भी पिंक टैक्स जोड़कर वसूली जाती हैं।
महिलाओं के साथ भेदभाव
पिंक टैक्स पर सवाल केवल इसलिए नहीं उठाए जाते कि यह महिलाओं पर आर्थिक तौर से असर डालता है बल्कि यह भी एक प्रकार का लैंगिक भेदभाव है। महिलाओं को हमेशा से ही पुरुषों के मुक़ाबले कम वेतन दिए जाने, काम के अवसरों की कमी और आर्थिक कमोरी जैसी चुनौतियों का सामना समाज में करना पड़ता है। और फिर ऐसे में अगर वे अपने रोजाना के खर्चों में भी इस तरह से ज्यादा भुगतान करें वो भी सिर्फ इसलिए कि वो महिलाएं हैं तो यह उनके लिए आर्थिक और सामाजिक विकास में एक और बाधा बन जाता है। इसलिए दुनियाभर के कई देशों में इस भेदभाव को खत्म करने के लिए आवाज उठाई जाती हैं। अमेरिका और यूरोप के कई हिस्सों हिस्सों में इसपर रिसर्च भी की गई और सरकारें इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए कदम उठा रही हैं लेकिन अफसोस की बात यह है कि भारत में अभी तक इस मुद्दे पर कोई खास चर्चा नहीं हुई है और इसकी एक वजह जागरूकता की कमी हो सकती है लेकिन इससे महिलाएं इस हिडेन टैक्स को बिना किसी आवश्यकता के भी झेलती हैं और भुगतान करती हैं।