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What Is Slut Shaming And How Are Woman Harrassed By It? महिलाओं को अक्सर उनके पहनावे, चाल-ढाल या यहां तक कि उनके बोलने के तरीके को लेकर भी जज किया जाता है। कभी उन्हें 'बहुत बोलने वाली', तो कभी 'बहुत खुलकर जीने वाली' कहकर नीचा दिखाया जाता है। समाज ने कुछ तय सीमाएं सदियों से महिलाओं के लिए बनाई हुई हैं और यह सीमाएं ही तय करती हैं कि एक महिला कितनी संस्कारी है। और अगर कुछ महिलाएं इन सीमाओं या धारणाओं को तोड़कर आगे बढ़ने का प्रयास करती हैं तो यही समाज उन्हें बिना मांगे ही कैरेक्टर सर्टिफिकेट देता है, उन्हें चरित्रहीन का टैग देता है।
क्या है Slut Shaming?
Slut Shaming का मतलब है किसी भी महिला को उसकी पर्सनल लाइफ या डिसीजन को लेकर गलत ठहराना और उसे सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करना। और यह केवल इसलिए किया जाता है क्योंकि क्योंकि वह महिला अपनी बॉडी, सेक्सुअल रिलेशनशिप या निर्णयों को लेकर स्वतंत्र होती है। समाज का एक महिला के प्रति ऐसा रवैया उसे मानसिक और भावनात्मक रूप से बुरी तरह से को तोड़ सकता है।
अगर भारत के कुछ बड़े शहरों को छोड़ दें और छोटे शहरों, कस्बों या गांवों की बात करें तो आज भी गलियों में एकसाथ बैठने वाली बुजुर्ग या अधेड़ उम्र की महिलाएं और चौपाल पर बैठने वाले पुरुष कभी कपड़ों की वजह से तो कभी खुलकर हंस लेने की वजह से ताने मारते हैं, यहां तक कि अगर कोई लड़की रिलेशनशिप में हो और उन्हें पता लग जाए तो ऐसे लोग अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं हटते हैं। ऐसी ही कट्टरपंथी सोच और विचारधारा वाले लोग जब किसी महिला पर व्यंग कसते हैं और महिलाओं को मर्यादा दिखाने के चक्कर में अपनी मर्यादाओं को भूल जाते हैं।
कब और कैसे होता है Slut Shaming?
Slut Shaming का कोई एक रूप नहीं हो सकता। यह सोशल मीडिया पर कमेंट्स से लेकर कॉलेज कैंपस तक में देखी जा सकती है। किसी भी लड़की को उसके खुलकर जीने के अंदाज, समाज से न डरने और अपने फैसले खुद करने पर कितने लोगों द्वारा “करेक्टरलेस” कहा जाता है या कभी “असभ्य” या “संस्कृति विरोधी” बता दिया जाता है। यह सब सुनकर महिला के आत्मसम्मान पर गहरी चोट लगती है। मैं कॉलेज में ऐसी कई लड़कियों से मिली जिन्होंने मुझे बताया कि वो बहुत छोटी रहीं, तभी से उन्हें ऐसे रवैयों का सामना करना पड़ा। कभी रिश्तेदारों से, कभी स्कूल में और यहां तक कि अपने माता-पिता से भी। लेकिन छोटे और कम समझ होने की वजह से उन्हें पता नहीं था कि यह असल में कुछ गलत है। और वह इसके लिए खुद को दोषी मानने लगीं, खुद पर सवाल उठाने लगीं और खुद से नफरत तक करने लगीं।
मेरी दोस्त का एक्सपीरियंस
हमारे देश में कट्टर और पारंपरिक संस्कारों वाली सोच अब भी गहराई से जमी हुई है। जहां लोग सुबह उठकर देवी की पूजा करते हैं, वहीं कुछ घंटों बाद ही एक मां, बेटी, बहन या पत्नी पर गलत टिप्पणियां करने से पीछे नहीं हटते और उनसे 'आदर्श' छवि रखने की अपेक्षा करने लगते हैं। और इस आदर्श छवि की परिभाषा के अनुसार उनके घर की लड़कियां कम बोलें, मर्यादा में रहकर कपड़े पहने, किसी भी लड़के या पुरुष से दूरी बनाकर रखे और अपने विचारों को खुलकर न कहें वरना उन्हें अपने ही घर में जलील किया जाता है।
ऐसी ही एक घटना के बारे में मुझे एक बार मेरी एक दोस्त ने बताया। "मेरे ज्यादा दोस्त नहीं थे और मैं तब 8th क्लास में थी। छोटे कस्बे से होने की वजह से हमें शुरू से ही समझाया जा था कि लड़कों से दोस्ती नहीं करनी है। पापा के दोस्त का बेटा था और मैं उसे भाई ही मानती थी, पापा को यह भी पता था। एक दिन वो घर पर मुझसे नोट्स लेने आ गया क्योंकि वो छुट्टी पर था और उसका काम पूरा नहीं था। घर पर दादी थीं और मैं सो रही थी, दादी ने पापा को बोला और पापा इस बात पर गुस्सा हो गए कि वो लड़का मेरे घर क्यों आया, उन्होंने मुझे थप्पड़ मारा और बोला, आगे से किसी लड़के को दोस्त नहीं बनाना।
इसके अलावा भी उन्होंने बहुत कुछ बोला, मेरे होने पर भी अफसोस जताया। इस बात ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि मैं हूं ही क्यों, मैने अपने घरवालों को शर्मिंदा किया। मैं बहुत रोई और खुद को कोसती रही। और मुझे तो तब slut shaming जैसे शब्द के बारे में भी नहीं पता था। अब मैं आजाद हूं, अपनी जिंदगी के फैसले भी कर सकती हूं लेकिन इसके बाद भी मुझे आज भी लड़कों से दोस्ती करने में डर लगता है।" ऐसे ही किसी हमारे देश के हर दूसरे या तीसरे घर में आसानी से मिल जायेंगे, जहां बिना किसी गलती, केवल समाज की बंदिशों को न मानने पर महिलाओं को अपने ही लोगों या आस-पड़ोसियों, रिश्तेदारों की जलालत को सहना पड़ता है।
मानसिक और सामाजिक असर
Slut Shaming कोई आम या छोटी बात नहीं है क्योंकि इसके परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं। इसका शिकार हुई महिलाएं न जाने कितने लंबे समय तक शर्म, अकेलापन और मानसिक तनाव से गुजरते हैं, कई बार महिलाएं सोशल मीडिया से दूरी बना लेती हैं, अपनी पहचान छिपाने लगती हैं या आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेती हैं। मैं खुद ऐसी कई दोस्तों को जानती हूँ जिन्हें उनके घर या जानने वालों ने इस हद तक परेशान कर दिया कि उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठाया या उठाने की सोची। Slut shaming के बारे में एक बड़ी जनसंख्या नहीं जानती, लेकिन इसकी शिकार होती है और इसे मानसिक हिंसा के तौर पर भी देखा जा सकता है, जो कई बार एक लड़की के साथ बार-बार दोहराई जाती है और सबसे खतरनाक बात ये है कि इसे “सामाजिक तमीज़” के नाम पर जायज़ ठहराया जाता है।
अगर मुझसे मेरी जिंदगी के अनुभवों के बारे में पूछा जाए तो मैं कहूंगी कि मैं भी अपनी जिंदगी के कई मोड पर इसका बेहद बुरे तरीके से शिकार हुई हूं और यह ज्यादातर मेरे नजदीकी या जानने वाले लोग रहे जिन्होंने मुझे slut shame किया और यहां तक कि मैने मेरी मां को भी इसका गंभीर रूप से शिकार होते देख। मुझे याद है कैसे मेरे पिता के दुनिया से जाने के बाद, उनके परिवार ने मिलकर कई बार मां को प्रताड़ित किया, उनपर गलत इलज़ाम लगाए और उन्हें मानसिक रूप से इतना कमजोर कर दिया कि वो अवसाद का शिकार हुईं। यह कहते हुए मुझे झिझक हो सकती है, पर इस सच को मै बदल नहीं सकती कि मां ने कई बार आत्महत्या का प्रयास किया और मैने भी इसके बारे में कई बार सोचा और आज तक मेरे अपने होने के बाद भी मुझे उन लोगों से, उनके उन शब्दों से घृणा होती है और मैं अपनी पूरी जिंदगी उनसे बेहद प्यार करने के बाद भी इन बातों को नहीं भुला सकती हूं।
क्यों ज़रूरी है Slut Shaming पर बात करना?
Slut Shaming पर चुप रहना इसे बढ़ावा देना है। जब हम ऐसी घटनाओं को नजरअंदाज करते हैं या मज़ाक समझते हैं तब हम असल में उस पीड़िता की तकलीफ को और बढ़ाते हैं। आज का दौर जागरूक करने वाला समय है और यह ज़रूरी है कि हम समझें कि महिलाओं के व्यवहार, उनके कपड़े या रिलेशनशिप चॉइस उनका निजी अधिकार है न कि समाज का मुद्दा। यह बिल्कुल समाज को हक नहीं देता कि वो किसी भी महिला पर अभद्र टिप्पणी करे या इल्ज़ाम लगाए। हर महिला को उसकी स्वतंत्रता के साथ जीने का हक है, बिना जजमेंट और शर्म के रहने का हक है। और जब तक हम Slut Shaming को सामाजिक अपराध नहीं मानेंगे, तब तक महिलाएं पूरी तरह से आज़ाद नहीं हो पाएंगी और मानसिक उत्पीड़न का सामना करती रहेंगी।
Slut Shaming को खत्म करने के लिए यह बेहद जरूरी है कि हम अपने बच्चों को शुरू से ही जेंडर रिस्पेक्ट सिखाएं। यह जिम्मेदारी हर उस महिला की बनती है जिसने अपने जीवन में यह उत्पीड़न सहा और इसके परिणामों से भी अकेले ही लड़ी। साथ ही हर वह बच्चा, जिसने अपनी मां या बहन को इसका शिकार होते देखा पर चुप रहा, ऐसे लड़कों और लड़कियों को भी यह समझना जरूरी है कि यह मुद्दा कोई आम बात नहीं हो सकती। साथ ही सोशल मीडिया पर कड़ी निगरानी, रिपोर्टिंग सिस्टम और हेल्पलाइन्स को भी और मज़बूत बनाया जाना चाहिए। जब पूरा समाज यह समझेगा कि महिलाओं को उनके खुले विचारों और स्वतंत्रता के अनुसार जज नहीं किया जाना चाहिए और उन्होंने किसी भी लिमिट या मर्यादा का दवाब बनाने से पहले अपनी मर्यादा समझनी चाहिए, तभी हम Slut Shaming जैसी मानसिक हिंसा से लड़ पाएंगे और समाज में कुछ जरूरी सुधार ला सकेंगे।