Wearing Less Clothes: अक्सर ऐसा होता है कि कम कपड़े पहनने को एक अपराध की तरह देखा जाता है। आपने देखा होगा कि लड़कियों पर भारतीय समाज में कपड़ों को लेकर बहुत सवाल उठाए जाते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है। क्या पूरे कपड़े पहनने से लड़कियाँ सेफ हो जाती हैं या फिर सोसाइटी का कुछ फायदा हो जाता है। पुराने समय से भी बॉडी को पूरी तरह से कवर करके रखने का आइडिया भारत में पारंपरिक रूप से नही था। इन्डियन ट्रेडिशन हमेशा से इन सब चीजों से आज़ाद था। जबकि आज कल के समय में ऐसा माना जाने लगा है कि कम कपड़े पहनने वाली महिलाएं अच्छे काम नहीं कर सकती, वो अच्छी पेरेंटिंग नहीं कर सकती हैं।
क्या कम कपड़े महिलाओं के साथ क्राइम की वजह हैं?
हम सभी ने अक्सर न्यूज और मीडिया में ऐसे बयान सुने हैं जो कि यह दिखाते हैं कि भारत में महिलाओं के साथ क्राइम और रेप का कारण उनके छोटे कपड़े हैं। कुछ समय पहले एक लेडीज टीचर ने ऐसा बयान दिया कि जो लड़कियां शॉर्ट ड्रेसेज पहनती हैं वह निर्भया जैसे रेप डिजर्व करती हैं। आखिर कोई महिला ऐसा कैसे बोल सकती है। हमारे देश में तो लोगों को अपने हिसाब से जीने की आजादी है फिर कपड़े पहनने पर सोशल बाउंड्रीज क्यों? कुछ समय पहले उत्तराखण्ड के पूर्ण मुख्यमंत्री का भी बयान कुछ ऐसा ही था कि “रिप्ड जीन्स पहनती हैं घुटने दिखाई देते हैं तो सोसाइटी में बच्चों को क्या संस्कार देंगी।” क्या संस्कार कपड़ों पर डिपेंड हैं।
आखिर महिलाओं के कपड़ों को लेकर क्यों हैं समस्याएं
शॉर्ट ड्रेस पहने हुए लडकी को ऐसी नजरों से आखिर क्यों देखा जाता है जैसे उसने कोई कपड़े पहने ही ना हों। आखिर कपड़ों को लेकर हमारा समाज इतना ज्यादा ओब्सेस्ड क्यों है, कपड़े पहनने का रीजन क्या है बॉडी को प्रोटेक्ट करना और डेकोरेट करना जबकि इसे देखा जाता है इज्ज़त और शील के साथ मिलाकर ऐसा क्यों है। कपड़े तो बस बॉडी को सुरक्षा और सही रखने के लिए हैं और यह सिर्फ महिलाओं के लिए ही लागू क्यों है।आखिर क्यों कम कपड़े पहने हुए लडकियों को तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
कपड़े पहनने का मेन रीजन क्या है
कपड़े पहनने का मेन रीजन है शरीर को सुरक्षित रखना और सुन्दर दिखाना। फिर क्यों इसे जानबूझ कर तमाम अंधविश्वासों के साथ जोड़ा जाता है। पुराने समय में बने कुछ ऐतिहासिक स्कल्चर जिन्हें महिलाओं के कपड़ों के साथ न्यूडिटी के साथ में बनाया गया है जो किसी एक जेंडर के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए सामान्य थे। ये दिखाते हैं कि हिस्ट्री में भी महिलाओं के कपड़ों को लेकर इतनी समस्याएं नहीं थीं।
प्रेजेंट टाइम में कपड़ों का चलन
भारतीय महिलाएं कम से कम आज के टाइम में सिटीज में अपनी पसंद के कपड़े पहनने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन इसके बाद भी ड्रेस कोड बनाए जा रहे हैं और महिलाओं के कपड़ों का मज़ाक उड़ाया जाता है। उन्हें जबरदस्ती अपनी पसंद के कपड़े पहनने से रोका जाता है जो कि पूरी तरह से गलत है।
महिलाएं अपने शरीर की मालिक खुद बनें
महिलाओं को अपने जीवन में अपनी बॉडी का खुद मालिक बनने की जरूरत है। सोसाइटी या कोई व्यक्ति इसका मालिक नही है तो अगर बॉडी आपकी है तो आप आपनी पसंद के कपड़े पहनें, हर बार कपड़े पहनने से पहले दूसरों के बारे में क्यों सोचना कि क्या सोचेगा या क्या मतलब निकलेगा।