Why Are Indian Women Still Far From The Pinnacle Of Power?: यह सवाल कि भारतीय महिलाओं को अभी भी सत्ता के पदों पर कम प्रतिनिधित्व क्यों है। यह बहुत जटिल और बहुआयामी है। जहां आजादी के बाद से महिलाओं ने हर भूमिका बड़े ही खूबसूरत तरीके से निभाई है और हर एक चीज में पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़ी रहीं हैं इसके बावजूद भी आज भी राजनीति में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या आधी भी नहीं है। भारत में वर्तमान में 29 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं और इन राज्यों में अगर बात करें महिलाओं के प्रतिनिधित्व की तो सिर्फ एक महिला मुख्यमंत्री मौजूद है। जबकि अन्य सभी राज्यों में आज भी पुरुष मुख्यमंत्री हैं। आइये जानते हैं कि क्यों सत्ता के शिखर से दूर हैं भारतीय महिलाएं-
क्यों सत्ता के शिखर से आज भी दूर हैं भारतीय महिलाएं
भारत की आजादी के बाद से महिलाओं की राजनीति में स्थिति सुधरी लेकिन इतनी आज भी नहीं सुधर सकी कि पुरुषों की तुलना में आधी भी हो जाती। आज भी महिलाओं की संख्या चाहे राज्यसभा में हो या लोगसभा में पुरुषों की तुलना में उम्मीद से कहीं कम है। वहीं अगर बात की जाये कि अब तक राजनीति के बड़े पदों पर महिलाओं की तो वह भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं है क्योंकि आजादी के बाद से अब तक देश में 15 प्रधानमंत्री हुए हैं जिनमें से श्रीमती इंदिरा गाँधी एक मात्र ऐसी महिला हुई हैं जो 2 बार प्रधानमंत्री के पद पर रहीं।
वहीं अगर बात की जाए महिला राष्ट्रपति की तो अब तक मात्र 2 बार महिला राष्ट्रपति हुईं हैं। यह आंकड़ा यह साबित करता है कि महिलाएं राजनीति में उचाईयों से आज भी कितनी दूर हैं। इस असमानता में कई कारक योगदान करते हैं और यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि हाल के वर्षों में प्रगति हुई है। लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। आइये वह कुछ कारण जानते हैं कि क्यों भारतीय महिलाओं को सत्ता के शिखर तक पहुंचने में अभी भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
कई अन्य देशों की तरह भारत में भी पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना गहरी जड़ें जमा चुकी है। पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ और अपेक्षाएँ अक्सर घर के भीतर और बाहर दोनों जगह महिलाओं के लिए अवसरों को सीमित कर देती हैं। जहाँ पुरुषों को को अलग-अलग अवसर मिलते हैं अपने आप को साबित करने के लिए वहीं महिलाओं को यह कहकर रोक दिया जाता है कि वे घर के कामों के लिए बनीं हैं उन्हें इसी में रहना चाहिए। बाहर निकलकर और राजनीति में कदम रखने से वे अपने और अपने परिवार के लिए समस्या का कारण बन सकती हैं।
लिंग भेदभाव और पूर्वाग्रह विभिन्न रूपों में जारी है। जिससे महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार के अवसरों तक पहुंच प्रभावित हो रही है। भेदभावपूर्ण व्यवहार, सचेत या अचेतन, कार्यस्थल में उनकी प्रगति में बाधा डालते हैं। उनके द्वारा किये गये कार्यों को महत्त्व नही दिया जाता है और साथ ही समाज में पुराने समय से चली आ रही प्रथाओं को महिलाओं के लिए मान्य करने पर अधिक जोर दिया जाता है।
हालाकि स्थिति में सुधार हो रहा है फिर भी भारत में ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ लड़कियों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सीमित है। उचित शिक्षा और कौशल के बिना, महिलाओं को राजनीति और व्यवसाय सहित कई क्षेत्रों में प्रवेश के लिए महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है। बिना शिक्षा के यदि महिलाएं राजनीति में उतर भी जाती हैं हैं तो भले ही पद उनके नाम पर हो लेकिन उसे चलाता कोई पुरुष है। जिससे महिलाओं को कभी आगे बढ़ने का अवसर मिलता ही नही है।
भारतीय समाज की अपेक्षाएं ऐसी हैं कि एक महिला अगर कोई बड़े पद पर भी है तब भी उसके लिए उसकी प्राथमिकता परिवार होना चाहिए। ऐसे सामाजिक मानदंड अक्सर यह तय करते हैं कि घर में एक महिला की प्राथमिक भूमिका होती है। एक चुनौतीपूर्ण करियर के साथ पारंपरिक पारिवारिक अपेक्षाओं को संतुलित करना असाधारण रूप से चुनौतीपूर्ण होता है। जिसके कारण महिलाएं शक्तिशाली पदों तक पहुंचने में सक्षम ही नही हो पाती हैं।