हमारे समाज में अविवाहित स्त्री का जीवन बहुत कठिन है। वह तभी खुश रह सकती है अगर वह अपने घर में बंद रहे और किसी से बात न करे। घर से बाहर निकलते ही, उसके पड़ोसी, रिश्तेदार, आदि उनसे उनकी शादी को लेकर अनगिनत सवाल पूछना सुरु क्र देंगे। सबसे बड़ी समस्या यह है कि, अविवाहित लड़की को ‘चरक्टेरलेस’ और विवाहित लड़की को संस्कारी मन जाता है।
क्या अविवाहित लड़की करेक्टरलेस है?
समाज की सुने तो बिल्कुल। अगर आप लड़की हैं, जवान हैं और अविवाहित भी हैं, तो ज़रूर आपका ‘चक्कर चल रहा है’ या वह बहुत सरे पुरुष के साथ घूमती है। वरना आप शादी क्यों नहीं करती? दूसरा इलज़ाम जो लगता है, वह है की उस लड़की में कुछ समस्या होगी। उसका कोई शारीरिक समस्या होगी, या वह घमंडी होगी।
लोग यह नहीं सोचते की ऐसा भी हो सकता है की लड़की का शादी में इच्छा नहीं है। हो सकता है कि वह शादी से पहले जो हासिल करना चाहती है नहीं कर पाई है।
अगर किसी लड़की का कोई प्रेमी है भी, तो उसमें क्या गलत है? प्रेम तो सबसे शुद्ध इमोशन होता है। प्रेम करने से कोई कैरेक्टरलेस कैसे बन सकता है?
शादी करने से लड़की अच्छी कैसे बन जाती है?
शादी और व्यक्ति के चरित्र का क्या सम्बन्ध है? आखिर विजय माल्या भी तो शादी शुदा थे। फिर भी उन्होंने फ्रॉड किया। इन्द्राणी बोरा शादी शुदा थी, फिर भी उन्होंने अपनी ही बेटी का मर्डर कर दिया। सुष्मिता सेन, एक अविवाहित औरत, ने अपने दम पर कितने लोगों की मदद की। शादी और चरित्र का कोई सम्बन्ध नहीं है।
आज भी कुछ लोग सोचते हैं की औरत को एक पुरुष की ‘ज़रूरत’ है। वे सोचते हैं की पुरुष के होने से औरत सही निर्णय लेगी। जी नहीं किसी को किसी की ‘ज़रूरत’ नहीं होती। 21वी सदी में समाज को मानना ही होगा की शादी एक चॉइस है और इसका करैक्टर से कोई लेना देना नहीं है। लोगो को मानना होगा कि पढ़ी लिखी औरत अपने निर्णय खुद लेने में सक्षम है। लोगो को मानना होगा कि औरत भी पैसे संभाल सकती है।
लोगों को प्रेम के खिलाफ, लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ, समलैंगिक प्रेम के खिलाफ होना बंद होना होगा। समाज को यह मानना होगा कि कुछ लोग उनके स्क्रिप्ट के अनुसार जीवन नहीं जीना है, और यह बिल्कुल ठीक है। शादी एक चॉइस है, ज़रूरत नहीं। और इससे चरित्र को जज करना बहुत ही गलत है।