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Photograph: (freepik)
Why are our values determined by our likes: आजकल सोशल मीडिया पर मिल रहे लाइक्स को लोग अपनी अहमियत, लोकप्रियता और सुंदरता का पैमाना मानने लगे हैं। एक पोस्ट पर कम लाइक्स आ जाएं, तो मन में कई सवाल उठते हैं क्या मैं कम अच्छा दिख रहा हूं? क्या मेरी बातों में असर नहीं रहा? क्या लोग मुझे पसंद नहीं करते? यह सोच एक गहरे भ्रम को जन्म देती है, जिसमें हम प्यार और स्वीकार्यता को डिजिटल संख्या से जोड़ने लगते हैं। धीरे-धीरे ये भ्रम हमारे आत्मविश्वास को अंदर से खोखला करने लगता है, और हम दूसरों की नज़रों में खुद को देखने लगते हैं।
क्यों लाइक्स से तय होती है हमारी वैल्यू?
आत्म-सम्मान भी ऑनलाइन हो गया है?
एक समय था जब आत्म-सम्मान हमारे मूल्यों, विचारों और रिश्तों से जुड़ा होता था, लेकिन अब सोशल मीडिया के दौर में यह हमारी ऑनलाइन उपस्थिति से प्रभावित होने लगा है। हमें खुद पर भरोसा तब आता है जब कोई पोस्ट वायरल हो जाए, और खुद से असंतुष्टि तब होती है जब रिएक्शन कम मिलते हैं। खासकर युवा और किशोर इस जाल में आसानी से फंस जाते हैं। वे अपने मन की शांति को इस बात से जोड़ने लगते हैं कि उन्हें कितनी बार ‘पसंद’ किया गया, शेयर किया गया या तारीफ मिली। इससे धीरे-धीरे हम खुद की असली पहचान से दूर होते चले जाते हैं।
क्यों खतरनाक है ये digital validation?
जब इंसान अपनी पहचान और अहमियत को केवल बाहरी अनुमोदन पर आधारित करने लगे, तो उसका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होने लगता है। सोशल मीडिया पर दूसरों की चमकती ज़िंदगियों को देखकर हम अपनी सच्चाई से असंतुष्ट हो जाते हैं। यह तुलना हमें भीतर से तोड़ने लगती है। धीरे-धीरे हम एक ऐसे आभासी चेहरे को जीने लगते हैं, जो रियल लाइफ से मेल नहीं खाता। फिर चाहे हम कितनी भी बार पोस्ट करें, हर बार एक ही सवाल उठता है क्या लोग मुझे फिर से स्वीकार करेंगे? और यही आदत धीरे-धीरे आत्मसम्मान की भूख में बदल जाती है।
तो असली वैल्यू कहां से आती है?
आपकी असली वैल्यू इस बात से तय नहीं होती कि किसी पोस्ट पर कितने लाइक्स आए, बल्कि इस बात से होती है कि आप अपने बारे में क्या सोचते हैं। क्या आप खुद के साथ शांति से रह सकते हैं? क्या आप अपनी अच्छाइयों और कमियों को खुले दिल से स्वीकारते हैं? क्या आप बिना किसी दिखावे के अपने मन की बात कहने की हिम्मत रखते हैं? यही वो असली मूल्य हैं जो इंसान को भीतर से मजबूत बनाते हैं। आपकी आत्मा की गहराई, आपके जज़्बातों की सच्चाई और आपके रिश्तों की ईमानदारी ये सब मिलकर आपकी वैल्यू को परिभाषित करते हैं, न कि कोई एल्गोरिदम।
अब ज़रूरत है Self-Worth की रीसेट बटन दबाने की
हमें ये समझना होगा कि सोशल मीडिया केवल एक प्लेटफॉर्म है, ना कि पहचान का प्रमाणपत्र। लाइक्स, कमेंट्स और शेयर केवल डिजिटल रिएक्शन हैं, असली जीवन की भावनाओं की जगह नहीं ले सकते। अपनी वैल्यू दूसरों की नज़रों में देखने की बजाय खुद की आंखों में ढूंढनी होगी। जब आप अपने आप को अपना सबसे बड़ा Cheerleader बना लेते हैं, तब दुनिया की validation की ज़रूरत ही खत्म हो जाती है।
Self worth एक गहराई से जुड़ा हुआ भाव है, जिसे सतही डिजिटल आंकड़े कभी माप नहीं सकते। हमारी पहचान, आत्मसम्मान और खुशियों की नींव केवल हमारी सोच, कर्म और आत्म-स्वीकृति पर टिकी होनी चाहिए, न कि किसी सोशल मीडिया की heart आइकन पर। अब समय है कि हम अपने अंदर झांकें और खुद को वो प्यार दें, जिसकी अब तक दूसरों से उम्मीद करते रहे।