Aunty Expectations: आंटियां क्यों सोचती हैं कि लड़की की ज़िंदगी की मंज़िल बस शादी है?

आंटियों की नजरों में लड़की की ज़िंदगी की असली मंज़िल क्या होती है? इस आर्टिकल में जानिए क्यों शादी को ही लड़कियों के लिए सफलता माना जाता है और कैसे हमें अपनी मंज़िल खुद तय करनी चाहिए।

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Vaishali Garg
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Marriage

Aunty Expectations: Why Do Aunts Think a Girl's Ultimate Goal in Life is Marriage? कभी-कभी लगता है कि एक लड़की की सबसे बड़ी गलती यही होती है कि वो बड़ी हो रही है। न स्कूल में टॉप करना मायने रखता है, न नौकरी में प्रमोशन पाना। जो सबसे ज़्यादा मायने रखता है वो ये कि 'अब इसकी शादी कब होगी?' और ये सवाल सबसे पहले, सबसे तेज़, और सबसे ज़्यादा पूछने वाली होती हैं हमारी प्यारी आंटियां।

आंटियां क्यों सोचती हैं कि लड़की की ज़िंदगी की मंज़िल बस शादी है?

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सच कहूं तो जब भी किसी शादी या पारिवारिक फंक्शन में जाती हूं, मैं दुल्हन से ज़्यादा आंटियों के सवालों से थक जाती हूं।

"बेटा शादी कब कर रही हो?"

"अच्छा लड़का देखा है या हम देखें?"

"इतनी पढ़ाई भी क्या करनी, आखिर संभालना तो घर ही है!"

इन सवालों में उनके चेहरे पर एक अजीब-सी मासूमियत और जिज्ञासा होती है, जैसे वो सच में मेरी भलाई चाहती हों। लेकिन अगर ध्यान से सुनो, तो उसमें एक ऐसी सोच छुपी होती है जो आज भी लड़कियों को मंज़िल के नाम पर सिर्फ शादी दिखाती है।

शादी नहीं, पर सवाल ज़रूर हमारी पहचान बन जाते हैं

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कभी-कभी तो लगता है कि जैसे मैं कोई ticking time bomb हूं जिसकी उम्र अगर 25 के पार चली गई, तो समाज के लिए वो लड़की ‘डिले’ हो गई। आंटियां ये नहीं पूछती कि मैं किस चीज़ में खुश हूं, क्या सीख रही हूं, क्या सपना है मेरा। उनका पहला और आखिरी सवाल यही रहता है “अब आगे क्या?” और इसका मतलब होता है: शादी।

उनकी ये उम्मीदें मेरे आत्मविश्वास को नहीं, मेरी आज़ादी को चुपचाप नाप रही होती हैं। शायद उनके लिए शादी सुरक्षा थी, हमारे लिए विकल्प है

शायद आंटियों की सोच में कोई ग़लती नहीं, उन्हें भी तो यही सिखाया गया था। उनकी ज़िंदगी में शादी ही वो मोड़ थी जहां उनकी कहानियां खत्म कर दी गईं और उन्होंने मान लिया कि यही नॉर्मल है। पर हम उस पीढ़ी से हैं जो नॉर्मल बदल रही है। हम जानते हैं कि शादी ज़िंदगी का हिस्सा हो सकती है, लेकिन मुकाम नहीं।

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हमें भी प्यार चाहिए, लेकिन साथ ही इज़्ज़त, स्पेस, और समझदारी भी।हमें भी रिश्ते चाहिए, पर पहले अपनी पहचान, अपनी आज़ादी और अपने सपने पूरे करने की जगह चाहिए।

जब सवालों से थक जाती है मुस्कान

कभी मुस्कुराते हुए जवाब देती हूं, कभी टाल जाती हूं। पर हर बार मन में एक सवाल जरूर उठता है "मैं क्यों सफाई दूं?" क्यों बार-बार ये साबित करना पड़े कि मेरा 'अब तक सिंगल' होना कोई दुख की बात नहीं है? क्यों हर बार ये साबित करना पड़े कि शादी करना या न करना मेरा अधिकार है, समाज का प्रोजेक्ट नहीं?

शादी एक खूबसूरत रिश्ता हो सकता है, जब दो लोग अपने निर्णय से, अपनी मर्ज़ी से साथ आएं। लेकिन जब एक लड़की की पूरी पहचान सिर्फ इसी एक फैसले से तय होने लगे, तो फिर सवाल ज़रूरी हो जाता है।

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और अगली बार जब कोई आंटी मुझसे कहे "बेटा अब तो शादी की उम्र हो गई है..." तो मैं बस मुस्कुरा कर कहूंगी "आंटी, सपनों की कोई उम्र नहीं होती... और मंज़िलें शादी से बड़ी भी होती हैं।"